प्रख्यात कथक नृत्यांगना कुमुदिनी लाखिया का निधन; प्रधानमंत्री मोदी ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 12-04-2025
Renowned Kathak dancer Kumudini Lakhia passes away; PM Modi condoles her demise
Renowned Kathak dancer Kumudini Lakhia passes away; PM Modi condoles her demise

 

अहमदाबाद
 
प्रख्यात कथक कलाकार और कदंब नृत्य केंद्र की संस्थापक कुमुदिनी लाखिया का शनिवार को अहमदाबाद में 95 वर्ष की आयु में निधन हो गया.
 
भारतीय शास्त्रीय नृत्य की एक महान हस्ती लाखिया अपनी बेटी, प्रशंसित नृत्यांगना मैत्रेयी हट्टंगड़ी के साथ रह रही थीं.
 
कथक के प्रति आजीवन समर्पण के लिए हाल ही में इस वर्ष गणतंत्र दिवस पर लाखिया को पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था.
 
उन्हें इससे पहले 1987 में पद्म श्री और 2010 में पद्म भूषण के साथ-साथ उनके शानदार करियर के दौरान कई अन्य प्रतिष्ठित सम्मानों से सम्मानित किया गया था.
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नृत्य की इस महान हस्ती को श्रद्धांजलि देते हुए कहा, "कुमुदिनी लाखिया जी के निधन से बहुत दुखी हूं, जिन्होंने एक उत्कृष्ट सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में अपनी पहचान बनाई. कथक और भारतीय शास्त्रीय नृत्यों के प्रति उनका जुनून पिछले कई वर्षों में उनके उल्लेखनीय कार्यों में झलकता है."
 
उन्होंने कहा, "एक सच्ची अग्रणी, उन्होंने नर्तकियों की कई पीढ़ियों का पालन-पोषण भी किया. उनके योगदान को हमेशा संजोया जाएगा. उनके परिवार, छात्रों और प्रशंसकों के प्रति संवेदना. ओम शांति." गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने भी दुख व्यक्त करते हुए उन्हें "शास्त्रीय कला के क्षेत्र में गुजरात और भारत का गौरव" बताया. उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया, "उन्होंने शास्त्रीय नृत्य में कई शिष्यों को प्रशिक्षित किया और देश और दुनिया में कथक नृत्य की महिमा को उजागर किया. भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें और उनके रिश्तेदारों और अनगिनत शिष्यों और प्रशंसकों को इस दुख को सहन करने की शक्ति दें. ओम शांति." लखिया का जन्म 1929 में हुआ था. उन्होंने राम गोपाल के साथ नृत्य करके अपना करियर शुरू किया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दौरा किया, जिससे भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियों को वैश्विक दर्शकों तक पहुंचाया. बाद में उन्होंने जयपुर घराने के उस्तादों और पंडित शंभू महाराज से प्रशिक्षण लिया. समय के साथ, वह एक एकल कलाकार से एक अग्रणी कोरियोग्राफर के रूप में विकसित हुईं. दो दशक से ज़्यादा समय तक एकल प्रदर्शन करने के बाद, 1967 में, लाखिया ने अहमदाबाद में कदम्ब नृत्य केंद्र की स्थापना की. 1973 तक, उन्होंने पूर्णकालिक कोरियोग्राफी में कदम रखा, अक्सर समूह रचनाओं के साथ नवाचार करते हुए, जिसने पारंपरिक एकल कथक प्रारूप को तोड़ दिया.
 
उनकी सबसे प्रसिद्ध कोरियोग्राफ़ी कृतियों में धबकर (पल्स), युगल (द डुएट) और अताह किम (व्हेयर नाउ?) शामिल हैं, जिनमें से बाद वाली कृति को उन्होंने 1980 में दिल्ली में कथक महोत्सव में प्रस्तुत किया.
 
उन्होंने गोपी कृष्ण के साथ मुज़फ़्फ़र अली की प्रशंसित फ़िल्म 'उमराव जान' (1981) में कोरियोग्राफ़र के रूप में भी योगदान दिया.
 
लाखिया ने कई प्रमुख कथक नर्तकियों को प्रशिक्षित किया, जिनमें अदिति मंगलदास, वैशाली त्रिवेदी, संध्या देसाई, दक्षा शेठ, मौलिक शाह, इशिरा पारिख, प्रशांत शाह, उर्जा ठाकोर और पारुल शाह शामिल हैं.