साकिब सलीम
भारत एक ऐसी सभ्यता है जो हजारों वर्षों से तमाम आंतरिक और बाहरी हमलों का सामना करते हुए आज भी गर्व से खड़ी है.इसकी शक्ति केवल इसकी सांस्कृतिक धरोहर में नहीं, बल्कि इसकी “विविधता में एकता” की भावना में निहित है.इसी एकता को नष्ट करना उन ताकतों का लक्ष्य रहा है जो भारत को कमज़ोर करना चाहते हैं — और हाल ही में कश्मीर के पहलगाम में हुआ आतंकी हमला इस साजिश की ताज़ा मिसाल है.
इस हमले में आतंकवादियों ने केवल गोलियां नहीं चलाईं, बल्कि एक सांप्रदायिक संदेश भी दिया.रिपोर्ट्स के अनुसार, आतंकवादियों ने यात्रियों से उनके नाम पूछे, धार्मिक पहचान की पुष्टि के लिए कुरान की आयतें सुनाने को कहा और जब उनकी पहचान हिंदू के रूप में पक्की हो गई, तो उन्हें बेरहमी से गोली मार दी गई.यह नृशंसता केवल हत्या नहीं थी, यह एक साजिश थी — यह बताने की कि हिंदुओं पर हमला हो रहा है और हमलावर मुसलमान हैं.
अगर आतंकी केवल अधिकतम जनहानि करना चाहते, तो वे बिना भेदभाव के पूरे पर्यटक समूह पर हमला कर सकते थे.लेकिन उन्होंने सोचा-समझा तरीका अपनाया.इसका उद्देश्य एक खास मानसिकता को जन्म देना था — हिंदुओं के मन में मुसलमानों के प्रति घृणा और संदेह पैदा करना.
इसका परिणाम यह होता कि बदले की भावना जन्म ले और देश में साम्प्रदायिक तनाव फैल जाए.इस प्रकार, यह हमला एक 'चक्र' शुरू करने की कोशिश थी जिसमें एक समुदाय की घृणा दूसरे समुदाय की प्रतिक्रिया में और अधिक घृणा को जन्म दे.
इतिहास गवाह है: भारत को जब भी कमजोर करना चाहा गया, सबसे पहले उसकी एकता पर वार हुआ
यह कोई पहली बार नहीं है जब भारत की एकता को तोड़ने की कोशिश की गई है.18वीं और 19वीं सदी में भी ब्रिटिश उपनिवेशवादियों ने यही रणनीति अपनाई थी.1757 में जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल पर नियंत्रण किया, तो जल्दी ही उन्हें फकीरों और संन्यासियों के विद्रोह का सामना करना पड़ा — एक ऐसा आंदोलन जिसमें हिंदू और मुस्लिम साधु एक साथ अंग्रेजों के खिलाफ लड़ रहे थे.
1857 की क्रांति में हिंदू और मुसलमानों ने मिलकर लड़ाई लड़ी.बहादुर शाह जफर, एक मुस्लिम, को हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों ने एकमत से अपना सम्राट और स्वतंत्रता संग्राम का नेता चुना.रानी लक्ष्मीबाई की सेना का तोपखाना मुसलमानों ने संभाला, वहीं नाना साहब के रणनीतिकार अज़ीमुल्ला खान थे। यह सब उस ऐतिहासिक सत्य को दर्शाता है कि जब-जब भारत एक हुआ है, वह अपराजेय बना है.
ब्रिटिश शासन के लिए यह एकता सबसे बड़ा खतरा थी.उन्होंने यह समझ लिया था कि अगर हिंदू-मुस्लिम एकता बनी रही, तो भारत पर शासन करना असंभव होगा.नतीजतन, उन्होंने समुदायों को बांटने की नीति अपनाई.सांप्रदायिक संगठनों को प्रोत्साहित किया गया और नफरत फैलाने वालों को समर्थन दिया गया.
गांधी, आज़ाद और बोस जैसे नेताओं ने दिखाया रास्ता
20वीं सदी में कई राष्ट्रवादी नेताओं ने सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ आवाज उठाई.गोपाल कृष्ण गोखले, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद और महात्मा गांधी ने हिंदू-मुस्लिम एकता को आज़ादी की लड़ाई का आधार बनाया.गांधी जी ने ‘हिंदू-मुसलमान की जय’ का नारा दिया और इसे स्वतंत्रता संग्राम का मूल मंत्र बना दिया.
आज़ाद हिंद फौज के नेता सुभाष चंद्र बोस ने भी अपने संगठन को पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष रखा, जहां हिंदू, मुस्लिम, सिख सभी एक झंडे के नीचे लड़े.अंग्रेजों को यह एकता इतनी असहनीय लगी कि उन्होंने देश छोड़ने का निर्णय ले लिया — लेकिन जाते-जाते विभाजन का ज़हर बोकर गए.
विभाजन के बाद की साजिश: पाकिस्तान का एजेंडा
भारत के विभाजन के बाद पाकिस्तान अस्तित्व में आया — एक ऐसा राष्ट्र जो खुद को भारत के “विरोध” की भावना पर आधारित करता रहा.पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI ने ब्रिटिशों की अधूरी योजना को अपने हाथ में ले लिया.पिछले सात दशकों में बार-बार ऐसा सामने आया है कि पाकिस्तान ने भारत में सांप्रदायिक दंगों, आतंकी हमलों और नफरत फैलाने वाली घटनाओं की योजना बनाई.उनका उद्देश्य हमेशा दोहरा रहा:
क्या भारत इन चालों में फंसेगा?
अब सवाल यह है कि क्या हम आतंकियों और उनके आकाओं के जाल में फँसेंगे? क्या हम उनके फैलाए ज़हर को अपना लेंगे और आपस में लड़ेंगे?
हमें यह समझने की ज़रूरत है कि आतंकवादी जो चाहते हैं, वही तब होगा जब हम एक-दूसरे पर शक करना शुरू कर देंगे। उनके खिलाफ हमारी सबसे बड़ी ताकत वही है जो उन्हें सबसे अधिक खटकती है — हमारीएकता।
हमें हर उस विचारधारा को नकारना होगा जो भारत को जाति, धर्म, या भाषा के नाम पर बांटती है.भारत की आत्मा गंगा-जमुनी तहज़ीब में बसती है, जहां मंदिर की घंटियों के साथ अज़ान की आवाज़ भी गूंजती है.हमें मिलकर उस नफरत के खिलाफ खड़ा होना है जो हमारे घरों में घुसने की कोशिश कर रही है.
आतंकवादियों का जवाब एकता से
पहलगाम जैसे हमले भारत की आत्मा पर हमला हैं.ये केवल गोलियों से हुई हत्याएं नहीं हैं, बल्कि हमारी सामाजिक संरचना को तोड़ने की कोशिश हैं.हमें अपने शहीदों की कुर्बानी का अपमान नहीं करना चाहिए, नफरत फैलाकर नहीं, बल्कि आपसी भाईचारे को और मजबूत करके.
हमें यह संदेश दुनिया को देना होगा — कि भारत को डराकर, बांटकर या तोड़कर नहीं जीता जा सकता.भारत एक विचार है, एक भावना है — और जब तक यह भावना जीवित है, तब तक कोई ताकत हमें हरा नहीं सकती.
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