आवाज द वाॅयस / अयोध्या / दिल्ली
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के 350 श्रद्धालु छह दिन की पदयात्रा कर के लखनऊ से अयोध्या श्री राम मंदिर, राम लला के दर्शन करने पहुंचे. इस दल का नेतृत्व मंच के संयोजक राजा रईस और प्रांत संयोजक शेर अली खान ने किया.
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के मुस्लिम श्रद्धालुओं के साथ यात्रा में मंच की सीता रसोई भी चल रही थी जो श्रद्धालुगण के जलपान और भोजन की सात्विक व्यवस्था कर रही थी. इस तरह लखनऊ से अयोध्या के बीच के लगभग 150 किलोमीटर की दूरी को यह भरी लाव लश्कर ने छह दिनों में पूरा किया.
हर 25 किलोमीटर के बाद यात्रा एक पूर्व निर्धारित स्थान पर रात्रि विश्राम के लिए रुकती थी.फिर अगली सुबह निकल पड़ती. इस तरह छह दिनों के अथक परिश्रम के बाद श्रद्धालों ने आखिरकार श्री राम के दर्शन किए.
मीडिया प्रभारी शाहिद सईद ने बताया कि इस मौके पर श्रद्धालुओं ने कहा कि इमाम ए हिंद राम के गरिमाई दर्शन का यह पल उनके पूरे जीवनकाल के लिए सुखद स्मृति के रूप में रहेगा. मुस्लिम श्रद्धालुओं ने श्री राम मंदिर परिसर से एकता अखंडता संप्रभुता और सौहार्द का संदेश दिया.
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का मानना है कि जब तक देश में असाउद्दीन ओवैसी टाइप के मुसलमान नेता रहेंगे तब तक इस देश का मुसलमान अशिक्षित, पीड़ित, पिछड़ा, गरीब और असुरक्षित रहेगा. मंच के संयोजक राजा रईस ने यह बातें अयोध्या के श्री राम मंदिर में राम लला के दर्शन के बाद मंदिर परिसर में कही. उन्होंने कहा कि राम हम सभी के पूर्वज थे, हैं और रहेंगे.
राजा रईस और शेर अली खान ने कहा कि हमारे नबी ने फरमाया है देश से मुहब्बत आधा ईमान है. देश और इंसानियत सर्वोपरि है. धर्म, मजहब, जात, पात... ये सब छोटी चीज है. धर्म, पूजा पद्धति, ऊपर वाले को याद करने का तरीका भले ही अपने अपने अकीदे के हिसाब से होता है लेकिन किसी भी मजहब में यह नहीं सिखाया जाता है कि दूसरे धर्म की निंदा करो, मजाक उड़ाओ, या उन पर तशद्दुद करो। यह सभी ईमान, इंसानियत, इस्लाम और वतन की तौहीन है.
मंच का मानना है कि हमारा मुल्क, हमारी सभ्यता, हमारा संविधान नहीं सिखाता है आपस में बैर रखना. अगर कोई अलग धर्म का इंसान किसी अलग धर्म के इबादतगाह या पूजा स्थल पर चला जाए तो इसका मतलब यह कतई नहीं मानना चाहिए कि उसने खुद का धर्म और मजहब छोड़ दिया है.
राजा रईस और शेर खान ने इसको विस्तार से बताया कि यदि मुसलमानों के घर ईद और बकरीद के मौके पर गैर मुस्लिम आते हैं, मुहब्बत का पैगाम देते हैं और खुशियों में शामिल होते हैं, खाते पीते हैं तो क्या उन गैर मुस्लिम का धर्म भ्रष्ट हो जाता है?
किसी गैर मुस्लिम के गम में अगर हम शरीक होते हैं, मौत पर मातम छाया होता है, पूजा पाठ हो रहा होता है तो क्या मुसलमानों का दीन, ईमान और इस्लाम इतना कमज़ोर है कि वो खतरे में आजाएगा?
इसी तरह अगर उमेर इलियासी राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा में शिरकत करने गए या हम सभी 350 मुस्लिम श्रद्धालु दर्शन करने आए तो देश और इंसानियत का सम्मान करते हुए मान बढ़ाने आए.