राकेश चौरासिया / नई दिल्ली
अपना देश है न्यारा. अपने प्यारे वतन हिंदुस्तान के पोर-पोर में बसी है गंगा-जमुनी तहजीब. वतन की मिट्टी और हर जर्रे में समाई है सौहार्द की मिठास. ईद-उल-फितर हो या ईद-ए-गुलाबी (यानी होली) यहां हर त्योहार मिल-जुलकर, ऊंच-नीच और मजहबों की हदों से परे मनाने का सदियों पुराना रिवाज और इतिहास रहा है. इस बार भी होली में ऐसी खुशूबदार सुर्खियां देखने और सुनने को मिल रही हैं.
पूरे देश में रंग एकादशी से ही होली का त्योहार शुरू हो चुका है. हालांकि कई नगरों में पहले से रंगो-गुलाल के बादल मंडराने लगे हैं, लेकिन धुलेंडी का मुख्य पर्व आज ही है और दोपहर तक होली का समां अपने उरूज पर पहुंचने को बेताब है. हम इस बार आपको बता रहे हैं कि हमवतनों ने देश के किन हिस्सों में और किस-किस मिजाज की होली खेली.
पुराने लखनऊ में निकला होली का जुलूस
लखनवी तहजीब के मरकज पुराने लखनऊ शहर के चौक इलाके से परंपरागत होली का जुलूस निकाला गया, जिसमें मुसलमान भाईयों ने हिंदू-भाईयों के संग अबीर-गुलाल की होली खेली. नगर होलिकोत्सव समिति 63 सालों से होली जुलूस आयोजित कर रहा है.
जुलूस में इस बार भी ऊंट और घोड़ों की बग्घी पर होरियारों ने पुराने लखनऊ का चक्कर लगाया. चौक कोनेश्वर से शुरू होकर जुलूस कमल नेहरू मार्ग, मेडिकल क्रॉसिंग, विक्टोरिया स्ट्रीट, मेफेर तिराहा, अकबरी गेट, तहसीन मस्जिद, गोटा बाजार, सर्राफा बाजार होते हुए चौक चौराहे पर खत्म हुआ. गुलाल, फूलों की होली और होली के गीतों से पूरा माहौल झूम उठा. टोलियों में मौजूद फाग गाती महिलाओं ने जुलूस का स्वागत किया.
शहनाई और डीजे की धुन पर लोग खूब थिरके. जुलूस की अगुवाई समिति के अध्यक्ष, गोविंद शर्मा, अनुराग मिश्र, उपाध्यक्ष डॉ. राजकुमार वर्मा, ओमप्रकाश दीक्षित, राजबाबू रस्तोगी आदि ने किया.
परंपरागत जुलूस में यूपी के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक, बीजेपी विधायक नीरज बोरा और विधान परिषद सदस्य मुकेश शर्मा भी पहुंचे. उन्होंने स्वर्गीय लाल टंडन की प्रतिमा का माल्यार्पण कर गुलाल लगाया. जुलूस में शामिल अमील शम्सी ने कहा कि होली सिर्फ त्योहार ही नहीं, ये हमारे लखनऊ की गंगा-जमुनी तहजीब की तस्वीर भी है. हमारे शहर की एकता, भाईचारे की मिसाल है.
जिस तरह से हमारे हिन्दू भाई हम मुस्लिम भाइयों के त्योहार में शामिल होते हैं. उसी तरह हम भी शामिल होते थे, शामिल हैं और हमेशा होते रहेंगे. मो. उस्मान, आरिफ जैदी, अकील अब्बास, लाला आदि ने पूरे जोश के साथ होरियारों का स्वागत कर होली खेली.
मस्जिद के बाहर शेखों की चौपाल पर होली
शाहजहांपुर के भटपुरा-रसूलपुर में होली मिलन कार्यक्रम बिल्कुल अलग अंदाज में होता है. हिंदू-मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग मिल-जुलकर होली खेलते हैं. होली खत्म होने के बाद पहला होली मिलन समारोह 60 प्रतिशत मुस्लिम और 40 प्रतिशत हिंदू आबादी वाले इस गांव की मस्जिद के बाहर शेखों की चौपाल पर होता है.
वर्षों से यह आयोजन मुस्लिम समुदाय की ओर से होता आ रहा है. शेखों की चौपाल के कार्यक्रम में शिरकत करने के बाद ही लोग एक-दूसरे के घर होली मिलन के लिए जाते हैं. शाम करीब चार बजे शेखों की चौपाल पर मुस्लिम भाई शामियसाने लगाकर नाश्ते और फूलों से हिंदू भाईयों का स्वागत करते हैं.
ग्राम प्रधान अनिल गुप्ता के अनुसार, वर्षों पुरानी परंपरा के अनुसार, रंग खत्म होने के बाद सबसे पहले मुस्लिम समाज से होली मिलते हैं. उनका गांव एकजुटता का संदेश देता है.
सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की दरगाह पर होली
बाराबंकी के कस्बा देवा में सूफी संत हाजी वारिस अली शाह ने होली खेलने और फाग जुलूस को निकालने की परंपरा शुरू की थी. इस परंपरा को आज भी निभाया जा रहा है. सुबह से लेकर शाम तक यहां होली खेली जाती है. भाईचारे का प्रतिक यह होली भारतीय परंपरा की सुंदरता को दर्शाता है. सूफी संत हाजी वारिस अली शाह के निधन के 118 साल बाद भी यह रवायत कायम है.
यहां पर गठित वारसी होली सेवा समिति के अध्यक्ष शहजादे आलम वारसी बताते हैं कि हाजी साहब के मानने वालों में जितने मुस्लिम समुदाय के लोग थे, उतने ही हिंदु संप्रदाय के लोग भी थे. तब उनसे लोग मिलने के लिए प्रतिदिन जाते ही थे, ऐसे में होली के दिन भी लोग मिलने जाते और उनको गुलाल लगाकर उनके साथ फाग खेलते.
उसी परंपरा को यहां पर जिंदा रखने की कोशिश करते हैं. रामनगर में गरीबी-अमीरी की खाई मिटाने, समानता और सौहार्द बनाए रखने के लिए सुबह से शाम तक रंग खेलने की परंपरा शुरू की गई थी.
मोहल्ला लखरौरा की फाग बाबा रामदास के मंदिर से मंडली गाते हुए कस्बे में निकलते हैं. सभी फाग दल बाजार होते हुए अमर सदन राजा की कोठी पर इकट्ठा होते हैं और फाग करते हैं. हैदरगढ़ तहसील के गुलामाबाद की होलिका को तापने से बीमारी के भागने की मान्यता है.
यहां के बुजुर्ग बताते हैं कि कई दशक पहले यहां पर एक फकीर हिमाम सैनी आए और होली दहन की जिम्मेदारी उठाने लगे. वह यहां पर होली तापने आने वाले लोगों का इलाज भी करते थे. वह लोगों को जड़ी-बूटियां भी खाने को देते थे. कई लोग उनके इलाज से ठीक हो गए. हिमाम सैनी की मृत्यु के बाद उनकी समाधि भी इसी स्थान पर बना दी गई.
बाड़मेर में हिंदू-मुस्लिम भाईयों का ‘गैर नृत्य’
बाड़मेर में मुद्दतों से हिंदू-मुस्लिम एक साथ होली खेलने का रिवाज निभा रहे हैं. होली पर खास-तौर पर मुस्लिम भाई ‘गैर नृत्य’ खेलते हुए हिन्दू भाईयों के कदमों से ताल मिलाते हैं. इस सीमावर्ती बाड़मेर जिले के सोडियार में होली पर खेली जाने वाली गैर नृत्य आज भी पारंपरिक तरीके से खेली जाती है.
कई वर्षों से यह सांप्रदायिक सौहार्द की भावना होली सहित अन्य पर्वो पर देखने को मिलती है. चार पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा आज भी कायम है. होली ऐतिहासिक तौर पर मनाई जाती है. मुस्लिम समाज के लोग हिंदुओं के साथ होली के रंग में सराबोर होकर सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश करते हैं.
यहां होली खेलने आए बुजुर्ग सुलेमान खान बताते हैं कि कई सालो से होली पर ‘गैर’ खेलते आ रहे हैं. कभी धर्म व जाति का भेदभाव नहीं रखा. यही वजह है कि पिछले चार पीढ़ियों से एक साथ होली का त्योहार मनाते आ रहे है.
गांव के ही चिमाराम बताते है कि ईद के दिन हम लोग मुस्लिम भाइयों को मिठाई खिलाकर उन्हें ईद की मुबारकबाद देते है. साथ ही, होली के दिन एक-दूसरे को रंग लगाकर बधाइयां देते हैं.
मुस्लिम भाईयों ने कृष्ण-बलराम डोले का किया खैरमकदम
फिरोजाबाद में यहां होली के दिन कृष्ण बलराम का डोला जब मुस्लिम बहुल इमामबाड़ा क्षेत्र निकलता है, तो वहां लोग स्वागत में खड़े हो जाते हैं. आयोजकों को पुष्प मालाएं पहनाते हॅैं. कोल्ड ड्रिंक, पानी और नाश्ता बांटते हैं.
इस क्षेत्र में एक दो नहीं बल्कि तीन स्थानों पर इस डोले का स्वागत होता है. ये परंपरा साल दो साल से नहीं बल्कि 140 साल पुरानी परंपरा है. इमामबाड़ा क्षेत्र में तंग गलिया हैं. वहां से डोला निकलने में कोई परेशानी न हो इसके लिए वहां के दुकानदार दुकानों के आगे लगे तिरपाल और पल्लियां खोलते जाते हैं.
शहर काजी सैय्यद शाह नियाज अली बताते हैं कि कृष्ण-बलराम के डोले का स्वागत करने की परंपरा वर्ष 1885 में हमारे पूर्वज एवं तत्कालीन शहर काजी हकीम हाजी सूफी सैय्यद अमजद अली ने शुरू की थी. यहां राम बरात का भी स्वागत होता है. इसके पीछे उद्देश्य यही है कि शहर में अमन-चौन बना रहे. हम सब एक दूसरे के पूरक हैं.
लखीमपुर खीरी की मोहम्मदी होली
लखीमपुर खीरी में होली के पर्व पर मोहम्मदी में भाईचारे और सौहार्द के रंग बिखरते हैं. यहां हिंदू-मुस्लिम मिलकर होली मनाते हैं. एक-दूसरे के गले मिलकर सद्भावना का संदेश देते हैं. मुस्लिम बहुल मोहल्ला पूर्वी लखपेड़ा में होली जलाई जाती है.
मोहम्मदी के अच्छन मियां के घर के पास होली जलती है. इसमें पूरा मोहल्ला सहयोग करता है और लकड़ी जमा करता है. मुस्लिम भाईयों के सहयोग से होली मनाने की यह परंपरा दशकों से चली आ रही है.
मोहल्ले में सिर्फ पांच-छह घर हिंदुओं के हैं. मुस्लिम समुदाय के लोग होलिका दहन में पूरा सहयोग करते हैं. इसे कस्बे की बड़ी होली कहा जाता है. पूर्व सभासद मोहम्मद हनीफ कहते हैं कि सुबह दोनों धर्मों के लोग होलिका दहन स्थल पर एकत्र होते हैं और एक दूसरे को होली की बधाई और शुभकामनाएं देते हैं.
लोग घरों को आग बचाने के लिए अपनी छतों पर पानी स्टोर कर लेते हैं. पहले दोनों धर्मों के बच्चे और बुजुर्ग होली में आग लगने के बाद होली की आग में आलू भूनकर खाते थे, लेकिन अब यह परंपरा खत्म हो गई है. शहवाज सिद्दीकी कहते हैं कि यहां पर सभी एक दूसरे का सहयोग करते हैं.
मुस्लिम भाई आयोजित करते हैं होलिका दहन
कानपुर के बाबू पुरवा के बेगम पुरवा इलाके में गंगा-जमुनी तहजीब की अनोखी मिसाल देखने को मिलती है. यहां के हिंदू परिवारों के लिए सैकड़ों मुस्लिम परिवार मिलकर होलिका जलाते हैं और अगले दिन एक दूसरे के अभी और गुलाल लगाकर होली का यह त्योहार मनाते हैं.
यहां पर लगभग 16 हजार की मुस्लिम आबादी है, तो वहीं 10 घर हिंदुओं के हैं. जिनकी आबादी लगभग 25 लोगों की है. लेकिन यहां होली हो, दीपावली हो, ईद हो, बकरीद हो सभी मिलजुल कर त्योहार मनाते हैं.
क्षेत्र के रहने वाले बुजुर्ग बताते हैं यहां का होली का त्योहार बेहद पुराना है. आजादी के बाद से यहां पर होली का त्यौहार मनाया जाता है. पहले यह क्षेत्र हिंदू बाहुल्य था, यहां पर ज्यादातर हिंदुओं के परिवार रहते थे.
बाद में ज्यादातर हिंदू परिवार अपने घर बेचकर दूसरे इलाकों में चले गए. सिर्फ 8 से 10 घर यहां पर बचे हैं. जिनके लिए यहां पर बड़ी धूमधाम से सभी मुस्लिम परिवार होली मनाते हैं. अकील शानू बताते हैं कि मुस्लिम और हिंदू परिवार सभी लोग चंदा इकट्ठा करते हैं और यह त्योहार मनाते हैं.