धौलपुर, मथुरा, वृंदावन के मुस्लिम कारीगरों ने भगवान श्रीकृष्ण और राधा के लिए बनाई खूबसूरत पोशाकें

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 28-08-2024
Muslim artisans from Dholpur, Mathura, Vrindavan made beautiful costumes for Lord Krishna and Radha
Muslim artisans from Dholpur, Mathura, Vrindavan made beautiful costumes for Lord Krishna and Radha

 

गुलाम कादिर / मथुरा / जयपुर

राजस्थान के धौलपुर जिले में हर साल की तरह इस वर्ष भी मुस्लिम कारीगरों ने भगवान श्रीकृष्ण और राधा की पोशाकें तैयार की हैं, जो जन्माष्टमी के पावन पर्व पर देश भर में श्रीकृष्ण मंदिरों में विराजमान ठाकुरजी को पहनाई जाएंगी. इन पोशाकों को उत्तर प्रदेश के आगरा, मथुरा, वृंदावन, और मध्य प्रदेश सहित देश के अन्य इलाकों में भेजा जाता है.

धौलपुर के मुस्लिम कारीगर, उवेश खान, महीनों पहले से ही मोतियों, नग, शीशा, और स्टोन से बनी पचरंगी और जरी की सुंदर और आकर्षक पोशाकों को तैयार करने में जुट जाते हैं. ये कारीगर पूरे साल भगवानों की पोशाक बनाकर अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं. यही उनके जीवनयापन का मुख्य साधन है.

धौलपुर में करीब पचास से अधिक कारखाने हैं, जिनमें 7 से 15 कारीगर काम करते हैं. ये विशेष रूप से कान्हा और अन्य भगवानों की पोशाकें तैयार करते हैं. जन्माष्टमी के मौके पर कान्हा और राधा की पोशाकों की मांग बहुत बढ़ जाती है.

हालांकि, कारीगरों को पोशाक बनाने की मजदूरी मिलती है, जबकि मुनाफा व्यापारी कमाते हैं, फिर भी इन कारीगरों को गर्व है कि वे भगवान की पोशाक बना रहे हैं.धौलपुर में तैयार की गई भगवान श्रीकृष्ण, भगवान श्रीराम, और आदि शक्ति माता सीता और राधा की पोशाकों की मांग देश के कोने-कोने में है.

उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, गुजरात, और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में विशेष रूप से ये पोशाकें सप्लाई की जाती हैं.इस तरह धौलपुर के मुस्लिम कारीगर हर साल अपने हुनर से धर्म और संस्कृति के इस महत्वपूर्ण पर्व को एक नई पहचान देते हैं और भाईचारे की मिसाल कायम करते हैं.

musim

मथुरा में गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल

भगवान कृष्ण की नगरी मथुरा में गंगा-जमुनी तहजीब की एक बेहतरीन मिसाल देखने को मिलती है. इस जन्माष्टमी पर कान्हा की हजारों पोशाकें मथुरा और वृंदावन के मुस्लिम कारीगरों द्वारा बनाई गई हैं.

दावा है कि इस साल करीब 300 करोड़ की पोशाकें थोक बाजारों में गई हैं. वहीं, अकेले जन्माष्टमी पर 5 करोड़ का कारोबार पोशाक, मुकुट, और श्रृंगार से हो जाता है. यहां के बाजारों में बुनकरों की टीम कपड़े को खूबसूरती देने में दिन-रात जुटी रहती है.

muslim

विदेशों में बढ़ी सोने-चांदी की पोशाकों की मांग

वृंदावन के पोशाक कारीगर असफाक सिद्दिकी के अनुसार, पिछले वर्षों की अपेक्षा इस साल पोशाक श्रृंगार की मांग विदेशों में बढ़ी है. इस बार जरी, सनील मोती के अलावा सोने-चांदी से निर्मित पोशाकों की मांग अधिक है.

मचकुंड स्थित ठाकुर जी की पोशाक और मुकुट श्रृंगार में बेहतरीन कलाकारी देखने को मिलेगी. पोशाकों की मांग कनाडा, अमेरिका, इंग्लैंड, और ऑस्ट्रेलिया के भारतीय मूल के लोगों के अलावा विदेशी भी अधिक पसंद करते हैं। देश-विदेश के इस्कॉन मंदिरों में तो खासकर वृंदावन की पोशाक और मुकुट का श्रृंगार किया जाता है.

muslim

एक मुस्लि परिवार 50 वर्षों से तैयार कर रहा भगवान कृष्ण की पोशाकें 

 मथुरा शहर में, एक मुस्लिम परिवार पिछले 50 सालों से भगवान कृष्ण, जिन्हें लड्डू गोपाल के नाम से भी जाना जाता है, के लिए विस्तृत पोशाकें तैयार कर रहा है. लड्डू गोपाल के लिए पोशाक बनाने की परिवार की परंपरा मथुरा में जन्माष्टमी समारोह का एक प्रिय हिस्सा बन गई है.

उनके जीवंत और सावधानीपूर्वक डिज़ाइन किए गए परिधान, जिनकी कीमत 10 रुपये से लेकर 10,000 रुपये तक है, न केवल मथुरा में बल्कि पूरे भारत में मांगे जाते हैं. इन खूबसूरती से तैयार किए गए परिधानों की मांग हर साल भारी भीड़ खींचती है.

मथुरा अपने त्यौहारों के माध्यम से सांप्रदायिक सद्भाव को दर्शाता है. यहाँ, एक-दूसरे के त्यौहारों में भाग लेना एक आम बात है. मुस्लिम लोग होली और जन्माष्टमी जैसे हिंदू त्यौहारों में उत्साहपूर्वक शामिल होते हैं, जबकि हिंदू भी मुस्लिम त्यौहारों को समान उत्साह के साथ मनाते हैं.



एकता की यह भावना मुस्लिम परिवार द्वारा मूर्त रूप में दिखाई देती है जो भगवान कृष्ण की पोशाक बनाने की लंबे समय से चली आ रही परंपरा को जारी रखे हुए है. लड्डू गोपाल के लिए पोशाक बनाने की परंपरा मोहम्मद इकरार के परदादा से शुरू हुई और पीढ़ियों से चली आ रही है.

इकरार और उनका परिवार अपने शिल्प के प्रति गहराई से समर्पित हैं. अपने काम के माध्यम से आध्यात्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं. इकरार ने कहा, "जब हम लड्डू गोपाल की पोशाक तैयार करते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे भगवान कृष्ण हमें मार्गदर्शन दे रहे हैं.

डिजाइन ऐसे जीवंत होते हैं जैसे कि उनके द्वारा निर्देशित हो. इन जटिल पोशाकों को बनाना प्रेम का श्रम है जिसके लिए कई घंटों की सावधानीपूर्वक मेहनत की आवश्यकता होती है." इकरार ने कहा,"इस प्रक्रिया में कपड़ों को पूरी तरह से फिट करने और उनकी सुंदरता को बनाए रखने के लिए विवरणों पर सावधानीपूर्वक ध्यान देना शामिल है.

विस्तृत काम के बावजूद, किसी मशीन का उपयोग नहीं किया जाता है. सब कुछ सटीकता और देखभाल के साथ हस्तनिर्मित किया जाता है. वर्तमान में लगभग 20 पुरुष यहां काम करते हैं. इन पोशाकों की मांग केवल मथुरा वृंदावन में ही नहीं बल्कि पूरे देश में है."