स्वीटरजलैंड और आस्ट्रेलिया में सिक्का चलता है मोहम्मद रफीक अंसारी का

Story by  दयाराम वशिष्ठ | Published by  [email protected] | Date 22-02-2024
Mohammed Rafiq Ansari's coin is in use in Switzerland and Australia
Mohammed Rafiq Ansari's coin is in use in Switzerland and Australia

 

दयाराम वशिष्ठ

हस्त निर्मित दरी के क्षेत्र में काम करने वाले कानपुर के गांव चंदारी के हस्तशिल्पकार मोहम्मद रफीक अंसारी न केवल युवाओं को ट्रैनिंग देकर रोजगार दिलवा रहे हैं,खुद भी अपने हुनर से लाखों रूपये प्रति महीने कमाई कर रहे हैं.वे अपनी मेहनत से काफी खुश हैं.

 उन्होंने हाथ से बनी दरी व मैट की डिजाइन और बुनाई का यह पुस्तैनी काम अपने बाप दादा से सीखा.परिवार तीन पीढ़ियों से यह काम कर रहा है.शुरू से उनकी सोच रही कि एक दिन उसे बुनकर व डिजाइनिंग में पूर्वजों का नाम रोशन करना है.इसी भाव से वे निरंतर आगे बढते चले गए.उनकी मेहनत रंग लाई.विदेशों में उनकी दरियां खरीदी जाने लगी हैं.

एक्सपोर्टर के जरिए दरियों की सेल

10 वीं तक पढाई करने वाले मोहम्मद रफीक अंसारी का कारोबार देश विदेश में फैला है.तीन बेटों में बडा बेटा मोहम्मद इफितहाज ग्रेजुएशन की पढाई पूरी करने के बाद पिता का कारोबार संभालने लगा है.युवा सोच के चलते अब इनका कारोबार देश विदेश तक होने लगा है.

 रफीक अंसारी ने बताया,“उनकी दरियों की ज्यादातर मांग ठंडे मुल्क स्वीटरजलैंड, आस्ट्रेलिया व चाइना समेत कई मुल्कों में है.कई मूल्कों में घोडें के ऊपर बिछाई जाने वाली पैट के नीचे उनकी दरी 3फीट गुना ढाई फीट का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि चलते वक्त लकडी या चमडे के पैट से घोडे को चोट न लगे.”

इसी तरह इन देशों में बैड के नीचे मैट का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि बैड से उतरते वक्त ठंड से बचाव हो सके.एक्सपोर्टर की ओर से दी जाने वाली डिजाइन के मुताबिक वे विदेशों के अनुरूप 6 फीट गुना 2 फीट मैट बनाने का काम करते हैं.

mat

आस्ट्रेलिया का ऊन का होता है इस्तेमाल

ठंडे मुल्क में भेजी जाने वाली दरी या मैट में ज्यादातर आस्ट्रेलिया की ऊन का इस्तेमाल किया जाता है.आस्ट्रेलिया व चाइना की ऊन सबसे अच्छी मानी जाती है.यह ऊन हरियाणा के पानीपत व यूपी के मिर्जापुर में एक्सपोर्टर के जरिए मंगाई जाती है.ऊन 200से 250रूपये तक बाजार में मिल जाती है.

बेटे की तमन्ना बनेगा बडा एक्सपोर्टर

रफीक अंसारी अपने बेटे की काबलियत पर बहुत खुश हैं.उनका कहना है कि युवा सोच की बहुत फर्क होता है.उनका बेटा जहां उनके बिजनेस को ऑन लाइन बढावा दे रहे हैं, वहीं अब वह एक दिन बडा एक्सपोर्टर बनने का सपना देख रहा है.

उनका मानना है कि हम भले ही ज्यादा नहीं पढ सके, लेकिन बाप दादा से सीखकर अपने जीवन को सफल बनाया है.जरूर उन्हें देखकर उनका बेटा भी एक दिन भारत का नाम रोशन करेगा.उसके तीन बेटे हैं, इनमें छोटे दो बेटे अभी पढाई कर रहे हैं, जबकि पांच बेटियां हैं.

art

6 महीने की ट्रैनिंग,रोजगार

शहबाद अंसारी ने बताया कि उनके यहां 10युवाओं का एक साथ ट्रैनिंग देने की व्यवस्था है.6महीने का कोर्स करने के बाद युवाओं को इस क्षेत्र में रोजगार आसानी से मिल जाता है.उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से उन्हें 4000 रूपये महीना ट्रैनिंग के लिए दिया जाता है.

जिसमें युवाओं को दरी बुनाना, डिजाइन तैयार कराना समेत कई तरह के कार्य सिखाते हैं.अब तक वे काफी संख्या में युवाओं को ट्रैनिंग देकर निपुण कर चुके हैं, जो अलग_अलग स्थानों पर काम धंधा कर अपना गुजर बसर करने लगे हैं.

हाथ से दरी की बुनाई

स्टेट अवार्डी मोहम्मद रफीक अंसारी कहते हैं, “उन्होंने हाथ से दरी की बुनाई करने व मनमोहक डिजाइन बनाने का काम अपने माता पिता मोहम्मद अयुब अंसारी से सीखा.दादा भी दरी का काम करते थे.उनसे काम सीखने के बाद वह खुद भी इसमें परफेक्ट हो गए.

काम करते करते हाथ से दरी की बुनाई व डिजाइन को लेकर जब उन्हें स्टेट अवार्ड मिला तो उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा.वह एक सप्ताह में लगातार 7-8घंटे काम करते हैं.

वर्ष 2010 के बाद उनके कारोबार ने तेजी पकड़ा .कारोबार से वे बच्चों की पढाई व घर खर्च चलाते हैं.उनके तीन बेटे हैं,जो पढाई के साथ काम में हाथ बंटाते हैं.इस काम की बदौलत उन्हें देश के विभिन्न शहरों कानपुर, उडीसा, गोआ, चैन्नई समेत कई शहरों में लगाए जाने वाले मेले में जाने का मौका मिला.

 उनका यह कारोबार निरंतर बढ रहा.उनकी पत्नी सायरा बानो का सहयोग भी कारोबार को बढाने में अहम रहा। दरी में इस्तेमाल किए जाने वाला धागा लच्छे की शक्ल में होता है, जिसे वे दरी की बुनाई में इस्तेमाल के लिए नली व नार में डालने का काम करती हैं.

इससे उन्हें काफी मदद मिलती है.पहले घर खर्च मुश्किल से चल पाता था.अब पूरे परिवार की मेहनत के चलते लाखों रूपये की कमाई कर लेते हैं.

यूपी में धागा मिल बंद होने से बचत कम

हस्तशिल्पी मोहम्मद रफीक अंसारी ने बताया, “उत्तर प्रदेश में धागा मिल बंद होने से उन्हें पानीपत से धागा मंगाना पडता है.इससे उनके आयटम पर कॉस्ट बढ गई है.400 रूपये में बिकने वाली दरी पर उन्हें मुश्किल से 50 रूपये ही बच पाते हैं.

इससे बुनकरों का धंधा भी काफी प्रभावित हुआ है.इससे उनकी लागत बढ जाती है.इससे बुनकरों के परिवारों की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं.यही कारण है कि नए युवा बुनकर के क्षेत्र में आने से बच रहे हैं.