सेराज अनवर / पटना
राजधानी पटना से मात्र 25 किलोमीटर की दूरी पर है मनेर शरीफ दरगाह. गंगा, सोन और सरयु नदी के संगम पर स्थित इस दरगाह का इतिहास 900 साल पुराना है. भारत में सूफी सिलसिले की शुरुआत का गवाह मनेर शरीफ दरगाह को ही माना जाता है. हजरत मखदूम शाह कमाल उद्दीन अहमद यहिया मनेरी का तीन दिवसीय उर्स का रविवार अर्थात 28 मार्च को समापन हुआ है. खानकाह मनेर शरीफ में हर साल इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक 10, 11 और 12 शाबान उल मुअज्जम को बड़े तुज्क व एहतेशाम के साथ मनाया जाता है.
इस दरगाह के प्रति हिंदू-मुसलमानों की जबर्दस्त आस्था है. पिछले साल कोरोना महामारी के कारण मेले का आयोजन नहीं हो सका था. यहां हर साल उर्स मेला का आयोजन होता है. इस उर्स मेले में काफी दूर से लोग यहां चादर चढ़ाने आते हैं. 26, 27, 28 मार्च को आयोजित 752वें उर्स में इस बार अकीदतमंदों की भीड़ उमड़ पड़ी. पटना हाईकोर्ट के जज से लेकर नेता और किन्नरों ने भी चादरपोशी की.
इस दरगाह की बुनियाद 1180 ई. (576 हिजरी) में रखी गयी थी. यह खानकाह देश के सबसे पुराने खानकाहों में से एक है. ग्यारहवीं शताब्दी में और उसके बाद भी यह सूफी फकीरों का आध्यात्मिक केंद्र बना रहा. यहां पूरे भारत से सूफी-संत आया करते थे और सूफी मत के प्रसार के लिए उपाय सोचा करते थे. मध्ययुग के मुस्लिम इतिहास में मनेर का नाम बड़ी इज्जत के साथ लिया जाता था. मनेर किसी समय मुस्लिम संस्कृति का बिहार में सबसे पुराना केंद्र था. आज भी मुसलमानों के दिल में इसके प्रति बहुत आदर है.
मनेर में इस समय दो दरगाह हैं, बड़ी और छोटी. बड़ी दरगाह में महान सूफी संत हजरत मखदूम यहिया मनेरी की कब्र है. वह हजरत ताज फकीह के पोते थे. छोटी दरगाह में शाह दौलत का मकबरा है. छठी सदी हिजरी में हजरत सैयदना इमाम मोहम्मद ताज फकीह हाशमी रहमतुल्लाह अलैह ने बैतुल मुकद्दस के कुदसुल खलील से सूबे बिहार के कसबा मनेर शरीफ में अपने अहलो अयाल के साथ तशरीफ लाए और इस्लाम की शमा रौशन की.
कहा जाता है कि मनेर में पहले एक रक्षा-दुर्ग भी था. परंपरा से कहानी चली आती है और चट्टानों पर खुदे लेखों से भी साबित होता है कि इतिख्तयारुद्दीन मोहम्मद बिन बख्तियार की लड़ाई के बहुत पहले मनेर तुर्कों के कब्जे में था.
इतिहास कहता है कि अरब के फकीर हजरत मोमिन को मनेर के राजा ने बहुत सताया, तो वह मदीना वापस चले गए और येरुशलम के हजरत ताज फकीह के सेनापतित्व में दरवेशों की एक फौज लेकर मनेर लौटे. राजा हार गया और 576 हिजरी यानी सन् 1180 में खुदा के बंदों ने किले पर अधिकार जमा लिया.
मनेर के उत्तर-पूर्व कोने पर अब भी ऊंचा गढ़ है. वही राजा का किला था. यह बड़ी खूबसूरत इमारत है. समूची दरगाह चुनार के सुंदर पत्थर से बनी है. पत्थर की इन नक्काशियों की तुलना प्रसिद्ध फतेहपुर सीकरी की उत्तम से उत्तम नक्काशियों से की जा सकती है.
दिल्ली में बाजाब्ता तौर पर सुल्तान मोहम्मद गौरी की मुस्लिम सल्तनत कायम होने से कबल हजरत सय्यदना इमाम मोहम्मद ताज फकीह हाशमी रहमतुल्लाह अलैह ने 576 हिजरी मुताबिक 1180 ई0 में खानकाह मनेर शरीफ की बुनियाद डाली.
चादरपोशी करते अनुयायी
यही वह प्रथम केंद्र है, जहां से पुरे बिहार में इस्लाम के साथ-साथ सूफीमत की किरणें फूटी और फिर दूर दराज इलाकों तक इसकी रौशनी फैली. जिसे मोखतलिफ औलिया और सूफीया का मस्कन होने का शरफ हासिल है. जिसकी शोहरत सुन मुल्क और मुल्क के बाहर के भी बहुत से नामी गिरामी लोग, सूफीया, मशायख, उलेमा, बादशाह आए और इसकी खाक में आसूदा हो गए.
हजरत सैयदना इमाम मोहम्मद ताज फकीह हाशमी रहमतुल्लाह अलैह के तीन साहबजादे हुए. बड़े साहबजादे हजरत मखदूम इमादउद्दीन इस्राइल मनेरी रहमतुल्लाह अलैह, दूसरे हजरत मखदूम इस्माइल मनेरी रहमतुल्लाह अलैह और छोटे साहबजादे हजरत मखदूम अब्दुल अजीज रहमतुल्लाह अलैह और एक साहबजादी हुयीं. हजरत मखदूम इस्राइल मनेरी र0अ0 के बड़े साहबजादे हजरत सुल्तानुल मखदूम सय्यदना कमालउद्दीन यहिया सोहरवरदी मनेरी रहमतुल्लाह अलैह हैं. यहिया मनेरी रहमतुल्लाह अलैह की शादी पटना के अजीम बुजुर्ग हजरत मखदूम शहाबुद्दीन पीर जगजोत कच्ची दरगाह पटना सिटी की बड़ी साहबजादी बीबी रजिया उर्फ बड़ी बुआ से हुई. हजरत सुल्तानुल मखदूम के चार साहबजादे और एक साहबजादी थीं. सबसे बड़े साहबजादे हजरत मखदूम शैख जलीलउद्दीन अहमद यहिया मनेरी रहमतुल्लाह अलैह जो अपने वालिद के बाद मनेर शरीफ में गद्दी पर रौनक अफरोज हुए. जिनकर मजार अपने वालिद के पायताने बड़ी दरगाह मनेर शरीफ में है. दूसरे साहबजादे हिन्दुस्तान के मशहूर व मारूफ बुजुर्ग हजरत मखदूम ए जहां शैख शरफुद्दीन अहमद यहिया मनेरी रहमतुल्लाह अलैह हैं, जिनकी मजार बड़ी दरगाह बिहार शरीफ में है. तीसरे साहबजादे हजरत मखदूम खलीलउद्दीन अहमद यहिया मनेरी रहमतुल्लाह अलैह, जिनकी मजार हजरत मखदूम ए जहाँ के पायताने बड़ी दरगाह बिहार शरीफ में है और छोटे साहबजादे हजरत मखदूम हबीबउद्दीन अहमद यहिया मनेरी, जिनकी मजार मखदूम नगर सिकड्डा पश्चिम बंगाल में है और एक साहबजादी जिनकी शादी हजरत मौलाना मीर शम्सउद्दीन माजनदरानी रहमतुल्लाह अलैह से हुई, दोनों की मजार बड़ी दरगाह मनेर शरीफ में है.
शेख कमालुद्दीन अहमद यहिया मनेरी के 752वें तीन दिवसीय सलाना उर्स मुबारक के मौके पर पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजय करोल और न्यायमूर्ति जस्टिस संजय कुमार बड़ी और छोटी दरगाह पर चादरपोशी की और दुआ मांगी. दोनों जजों ने खानकाह परिसर में सूफी संत शरफुद्दीन अहमद याहिया मनेरी की जन्मस्थली रब्बाक में जाकर मन्नती पत्थर को भी उठाया. उनकी चौकी को देखा. मखदूम उल मुल्क और मखदूम जहां के नाम से प्रसिद्ध शेख शरफुद्दीन अहमद यहिया मनेरी का जन्म 1263 में मनेर के इसी स्थान पर हुआ था. न्यायाधीश की चादरपोशी से पहले उर्स मेले में चादरपोशी करने दानापुर से राजद विधायक रीतलाल यादव अपने समर्थकों के साथ पहुंचे. उन्होंने छोटी और बड़ी दरगाह पर चादरपोशी कर प्रदेश और क्षेत्र की जनता के लिए दुआ मांगी. रीतलाल दबंग छवि के नेता हैं.
इसके अलावा किन्नर समाज के लोग भी धूमधाम से चादर पोशी करने मनेर शरीफ दरगाह पहुंचे. किन्नरों के चादरपोशी के दौरान काफी संख्या में लोगों की भीड़ उमर पड़ी. किन्नरों का कहना है कि यहां पर हर मनोकामना पूर्ण होती है. इसलिए हर साल वो सभी यहां चादरपोशी करने के लिए आते हैं. मनेर का एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व रहा है और यह अब नए पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित हो रहा है. बिहार सरकार का इसके विकास पर खास ध्यान है. मनेर सर्व धर्म समन्वय का प्रतीक भी बन गया है.