-फ़िरदौस ख़ान
साहित्यकार के दिल में मुहब्बत रहती है. वह क़ुदरत के ज़र्रे-ज़र्रे से मुहब्बत करता है. और जिस चीज़ से मुहब्बत की जाती है, तो उसकी हिफ़ाज़त करना भी लाज़िमी हो जाता है. जी हाँ, आज हम ऐसे ही मुहब्बत के जज़्बे से लबरेज़ साहित्यकार आबिद सुरती साहब की बात कर रहे हैं, जो बहुमुखी प्रतिभा के धनी है.
वे कहानीकार, उपन्यासकार, चित्रकार, कार्टूनिस्ट, व्यंग्यकार, और पर्यावरणविद हैं. वे जल संरक्षण को लेकर जो मुहिम चला रहे हैं उसे देश ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में सराहा जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र भी उन्हें तवज्जो दे रहा है. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के पूर्व कार्यकारी निदेशक एरिक सोल्हेम ने भी कई बार उनकी प्रशंसा की है.
आबिद सुरती साहब ने बताया कि उनका जन्म गुजरात में हुआ था. बचपन में ही उनका परिवार मुम्बई आकर बस गया. यहां पानी को लेकर ख़ूब मारामारी थी. लोग पानी के लिए आपस में लड़ते-झगड़ते रहते थे.
उन्होंने फ़ुटपाथ पर रहने वाले लोगों को पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसते हुए देखा है. भले ही मुम्बई समन्दर के किनारे बसी है, लेकिन यहां के बाशिन्दों की ज़िन्दगी में पानी की बहुत कमी है. लेकिन उन्हें ये देखकर बहुत अफ़सोस होता था कि जल संकट के बावजूद लोग पानी की क़द्र नहीं करते और ज़रूरत से ज़्यादा पानी बहाते हैं.
उन्होंने बताया कि बात साल 2007 की है. वे अपने एक दोस्त के घर बैठे हुए थे, तभी उनके कानों ने कहीं टपक रहे नल की आवाज़ पकड़ ली. उन्होंने अपने दोस्त से कहा कि कहीं पानी टपक रहा है, नल ठीक करवा लो. उनके दोस्त ने इस पर कोई ख़ास तवज्जो नहीं दी.
वे जब भी अपने दोस्त के घर जाते थे, तो उसे टोकते. इस पर उनके दोस्त ने उनसे कहा कि कुछ बूंदें ही तो टपक रही हैं, क्यों परेशान हो रहे हो. उन्होंने कहीं पढ़ा था कि अगर हर सेकेंड एक बूंद पानी फ़ुज़ूल बहता है, तो हर महीने तक़रीबन एक हज़ार लीटर पानी गटर में बह जाता है.
उन्होंने बचपन से ही पानी की क़िल्लत देखी थी. तभी उनके ज़ेहन में पानी बचाने के लिए मुहिम शुरू करने का ख़्याल आया. अब इसके लिए पैसों की ज़रूरत थी. उसी दौरान उन्हें उत्तर प्रदेश के हिन्दी साहित्य संस्थान की तरफ़ से एक लाख रुपये का पुरस्कार मिला था.
उन्होंने इन पैसों को मुहिम में ख़र्च कर दिया और स्वयंसेवी संस्था की स्थापना की, जिसका नाम ‘ड्रॉप डेड’ फ़ाउंडेशन रखा गया. इसकी टैगलाइन है- सेव एवरी ड्रॉप ऑर ड्रॉप डेड. इस तरह वे पुरस्कारों में मिली रक़म को अपनी मुहिम में ख़र्च करते रहते हैं. उनके काम पर लोगों का ध्यान गया.
वे ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए कहते हैं कि मार्च 2008 में फ़िल्म निर्माता शेखर कपूर जल संरक्षण पर फ़िल्म बना रहे थे. उन्होंने अपनी वेबसाइट पर उनके जल संरक्षण की मुहिम की ख़ूब तारीफ़ की. सुप्रसिद्ध अभिनेता शाहरुख़ ख़ान ने भी उनके काम की सराहना की. शाहरुख़ ख़ान उनसे बचपन से ही मुतासिर रहे हैं, क्योंकि बचपन में वे उनके बहादुर कॉमिक्स पढ़ा करते थे.
जल संरक्षण की मुहिम के लिए एक ख़बरिया चैनल ने उन्हें 'बी द चेंज' अवॉर्ड से भी सम्मानित किया था. सोनी चैनल के लोकप्रिय कार्यक्रम ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में उन्हें आमंत्रित किया गया था.
अमिताभ बच्चन ने उनकी जल संरक्षण मुहिम की सराहना करते हुए कहा था कि रविवार के दिन जब लोग अपने घरों में आराम करते हैं और दोपहर में सो जाते हैं, तो उस वक़्त आबिद सुरती साहब लोगों के घरों में टपकते हुए नलों की मरम्मत करवा रहे होते हैं.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल भी उनसे बहुत प्रभावित हैं. उन्होंने आबिद सुरती साहब को दिल्ली आमंत्रित किया और उनके वॉटर मॉडल को अपने राज्य में लागू करने का फ़ैसला किया.
आज के दौर में जब दुनियाभर में अपने स्वार्थ के लिए मज़हब का नकारात्मक इस्तेमाल हो रहा है, ऐसे में आबिद साहब मज़हब का सकारात्मक इस्तेमाल कर रहे हैं. उन्होंने जल संरक्षण के बारे में इस्लाम की हदीसों के पोस्टर छपवाये और उन्हें मस्जिदों के वुज़ूख़ानों में लगवाया.
इस काम में शुरू में उन्हें कई दिक़्क़तों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. नतीजन उनके इस काम की सराहना होने लगी. मस्जिदों के मौलवियों ने उन्हें बताया कि पहले हर रोज़ पानी की टंकी तक़रीबन 80 फ़ीसद ख़ाली हो जाती थी, लेकिन अब बहुत कम पानी ख़र्च हो रहा है.
पानी के साथ-साथ बिजली की भी बचत हो रही है. इसके बाद आबिद साहब ने गणेश चतुर्थी के मौक़े पर गणेश के पोस्टर छपवाये. उन्होंने शिवशंकर के पोस्टर भी छपवाये. वे ईसाई, बौद्ध, जैन और सिख आदि मज़हबों से संबंधित पोस्टर छपवा रहे हैं. वे पोस्टर के ज़रिये भी जल संरक्षण की इस मुहिम को दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचाना चाहते हैं.
आबिद साहब ने बताया कि वे हर इतवार को एक नलसाज़ को साथ लेकर अपने मुम्बई के मीरा रोड इलाक़े में घर-घर जाते हैं और उनके घर में टपक रहे नलों को मुफ़्त में ठीक करवाते हैं. उनकी संस्था के सदस्य घर-घर जाकर लोगों को जल संरक्षण के प्रति जागरूक कर रहे हैं. वे कहते हैं कि जल संरक्षण बहुत ज़रूरी है. इसलिए पानी को व्यर्थ न बहायें.
आबिद सुरती साहब का जन्म 5म ई 1935को गुजरात के राजुला में हुआ था. उनके पिता ग़ुलाम हसन सूफ़िज़्म से जुड़े थे. उनकी माँ सकीना बेगम भी बहुत ही रहम दिल महिला थीं. उन्हें बचपन से ही ऐसा माहौल मिला, जिसमें दूसरों की मदद करने और भलाई के कामों की सीख दी गई.
उनके वजूद पर ही नहीं, बल्कि उनकी कला व उनके लेखन में भी इसका साफ़ असर देखा जा सकता है. आबिद साहब ने कहानियां या उपन्यास सिर्फ़ मनोरंजन के लिए नहीं लिखे, बल्कि इनके ज़रिये उन्होंने जनसाधारण को जागरूक किया है. जिस उम्र में लोग थककर बैठ जाते हैं, उस उम्र में भी वे कला का सृजन कर रहे हैं. इसके साथ ही वे जल संरक्षण के लिए मुहिम भी चला रहे हैं.
आबिद सुरती साहब के साहित्यिक सफ़र पर एक नज़र
आबिद सुरती साहब बचपन से ही कला प्रेमी रहे हैं. इसीलिए उन्होंने ललित कला में डिप्लोमा किया और कला व साहित्य में ख़ूब शौहरत हासिल की. उन्होंने कार्टून पात्र 'ढब्बू जी' का सृजन किया.
यह कार्टून उन्होंने अपने पिता को ज़ेहन में रखकर बनाया था. उन्होंने सुप्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका 'धर्मयुग' में तीस साल तक लगातार 'कार्टून कोना ढब्बूजी' पेश किया. यह कार्टून बहुत लोकप्रिय हुआ.
उनकी चित्रकला भी अद्भुत और मनोहारी है. उनके चित्रों की पहली प्रदर्शनी नैनीताल में प्रदर्शित हुई थी. इसके बाद देश-विदेश में उनकी अनेक चित्र-प्रदर्शनियां प्रदर्शित हुईं. चित्रकारी में भी उन्होंने ख़ूब नाम कमाया.
उन्होंने कहानियां, उपन्यास, नाटक, वृत्तांत, व्यंग्य और बाल साहित्य लिखा. उन्होंने हिन्दी, गुजराती और अंग्रेज़ी में लेखन किया. उनकी हिन्दी की प्रमुख किताबों में काले गुलाब, कथावाचक, काली किताब, बहता पानी, बहत्तर साल का बच्चा, आदमख़ोर, अस्वाद, चमत्कारी लड़की, ज़हरीला, टूटे हुए फ़रिश्ते, दाग़, सूफ़ी (अंडरवर्ल्ड का ग़ायब इंसान), वासकसज्जा, आधी स्त्री, कैबरे डांसर, चरित्रहीन, दलदल, फ़रारी, गुलमोहर के आंसू, खोया हुआ चेहरा, सलाख़ें एंटी लव स्टोरी, मेरे पापा की शादी है, आकाश के उस पार, धूप छाँव, आतंकित, क़ब्र पर खिले दो फूल, तीसरी आंख, दूसरी बीवी, मेरी कहानियां, गुजराती की श्रेष्ठ व्यंग्य कथाएं, दस प्रतिनिधि कहानी, 21श्रेष्ठ कहानियां और 365कहानियां, मूंछों वाली बेगम, त्रिअंकी नाटक मिस्टर एंड मिसिज़ ब्रह्मचारी, नाड़ी परीक्षा, राधे-राधे हम सब आधे, आवारा आबिद, आबिद अविस्मरणीय, शेर के साथ सेल्फ़ी, टोटल फ़न और 365 चुटकुले, नवाब रंगीले, डॉक्टर टिंचू के कारनामे, बुद्ध क्यों मुस्कुराए 2500 साल के बाद आदि शामिल हैं.
उनके उपन्यासों का अंग्रेज़ी, उर्दू, पंजाबी, बंगाली, मराठी, मलयालम, कन्नड़ सहित कई प्रादेशिक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है. उन्होंने दूरदर्शन, ज़ी टीवी व अन्य चैनलों के लिए कथा, पटकथा और संवाद लिखे हैं. वे पिछले कई दशकों से हिन्दी और गुजराती की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिख रहे हैं. वे गुजराती वार्षिक पत्रिका दायरो के संपादक भी रहे हैं.
उन्होंने बताया कि नेशनल बुक ट्रस्ट ने उनकी तक़रीबन 15किताबें प्रकाशित की हैं. इनमें बच्चों के लिए शिक्षाप्रद कहानियों और कार्टून की किताबें आदि प्रमुख हैं. उनके जनहितकारी और श्रेष्ठ लेखन के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से नवाज़ा जा चुका है.
इनमें राष्ट्रीय पुरस्कार, उत्तर प्रदेश हिन्दी साहित्य संस्थान पुरस्कार, गुजरात गौरव सम्मान, लीजेंड ऑफ़ इंडियन एनिमेशन अवार्ड, श्री पंकज कापड़िया अवार्ड, प्रतिष्ठित महाराणा मेवाड़ अवार्ड, तरु लालवाणी अवार्ड, बाबा आमटे अवार्ड, मुम्बई हीरो सम्मान, ग्रीन चैम्पियन अवार्ड, विप्रो-नेचर फ़ॉरएवर सोसायटी स्पैरो अवार्ड, रोटरी क्लब पुरस्कार और अद्भुत मुम्बईकर पुरस्कार आदि प्रमुख हैं.
वे फ़िल्म सर्टिफ़िकेशन बोर्ड, फ़िल्म राइटर्स एसोसिएशन, दिल्ली की एसोसिएशन ऑफ़ राइटर्स एंड इलस्ट्रेटर्स फ़ॉर चिल्ड्रेन और मुम्बई प्रेस क्लब के सदस्य भी हैं.
(लेखिका शायरा, कहानीकार व पत्रकार हैं)