जानिए, भारतीय शास्त्रीय संगीत को चार चांद लगाने वाले कौन-कौन से हैं अहम अभिन्न वाद्ययंत्र

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  [email protected] | Date 21-10-2023
भारतीय शास्त्रीय संगीत के अभिन्न वाद्ययंत्र
भारतीय शास्त्रीय संगीत के अभिन्न वाद्ययंत्र

 

ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली 

भारत के वाद्य यंत्रों  की एक समृद्ध विरासत है और ये इस देश की सांस्कृतिक परंपराओं का अभिन्न अंग हैं. इस लेख में संगीत सुनना सभी को पसंद है लेकिन संगीत वाद्य यंत्रों के बारे में हर किसी को नही पता है. संगीत के कई यंत्र है जिनकी जानकारी देने का प्रयास इस लेख के द्वारा मैंने किया हैं, ये वाद्य यंत्रों से निकली सुरीली धुन मन को मोह लेती है.

डफली वाले डफली बजा

डफली
कश्मीर में शूट हुआ बॉलीवुड का मशहूर गाना 'डफली वाले डफली बजा' तो अपने सुना ही होगा यही से डफली फेमस हुई वैसे डफली या डफ का उपयोग अक्सर ग्रामीण लोक मेलों, धार्मिक उत्सवों या भजनों में किया जाता है. कुछ लोग ऐसे संगीत वाद्ययंत्र बजाकर अपनी आजीविका कमाते हैं. अन्य संगीत वाद्ययंत्रों के विपरीत इसमें बहुत अधिक सीखने की आवश्यकता नहीं है और कोई भी जल्द ही इस पर एक संगीत पैटर्न बनाना सीख सकता है.
 
उस्ताद जाकिर हुसैन

तबला
 
तबले की मूल उत्पत्ति मुस्लिम सेनाओं के साथ चलने वाले जोड़े ड्रम से हुई है. भारत के सर्वकालिक 7 महानतम तबला वादक उस्ताद अल्लाह रक्खा, उस्ताद जाकिर हुसैन, पंडित शंकर घोष, पंडित उदय मजूमदार, अनुराधा पाल, पंडित स्वपन चौधरी, पंडित विजय घाटे हैं.
 
तबला भारतीय संगीत में प्रयोग होने वाला एक तालवाद्य है जो मुख्य रूप से दक्षिण एशियाई देशों में बहुत प्रचलित है. नाम तबला की उत्पत्ति अरबी-फ़ारसी मूल के शब्द "तब्ल" से बतायी जाती है. अलाउद्दीन खिलजी के समय में, अमीर ख़ुसरो ने "आवाज़ बाजा" (बीच में पतला तालवाद्य) को काट कर तबले का रूप देने की बात कही जाती है.
 
भारतीय संतूर 

संतूर
 
संतूर जम्मू और कश्मीर का एक पारंपरिक वाद्ययंत्र है और इसका इतिहास प्राचीन काल से है. प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में इसे शठ तंत्री वीणा कहा जाता था. इसे संगीत की एक शैली में बजाया जाता है जिसे सूफियाना मौसिकी के नाम से जाना जाता है. भारतीय संतूर अधिक आयताकार है और इसमें फ़ारसी समकक्ष की तुलना में अधिक तार हो सकते हैं, जिसमें आम तौर पर 72 तार होते हैं.
 
बिस्मिल्लाह खान 
शहनाई 
शहनाई भारत के सबसे लोकप्रिय वाद्ययंत्र में से एक है जिसका प्रयोग शास्त्रीय संगीत से लेकर हर तरह के संगीत में किया जाता है. स्वर्गीय उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ां भारत में शहनाई के सबसे प्रसिद्ध वादक समझे जाते हैं. माना जाता है कि शहनाई का विकास पुंगी (लकड़ी से बने लोक वाद्ययंत्र जो मुख्य रूप से साँप के लिए आकर्षक होता है) में सुधार करके किया गया है. बिस्मिल्लाह खान, एस बल्लेश, अनंत लाल, अली अहमद हुसैन खान, लोकेश आनंद उल्लेखनीय भारतीय शहनाई वादक हैं.
 
 
हारमोनियम
 
हारमोनियम का आविष्कार यूरोप में किया गया था और 19वीं सदी के बीच में इसे कुछ फ़्रांसिसी लोग भारत-पाकिस्तान क्षेत्र में लाए जहाँ यह सीखने की आसानी और भारतीय संगीत के लिए अनुकूल होने की वजह से जड़ पकड़ गया. हारमोनियम भारतीय शास्त्रीय संगीत का अभिन्न हिस्सा है. हारमोनियम को सरल शब्दों में "पेटी बाजा" भी कहा जाता है. हारमोनियम का उपयोग शास्त्रीय, सुगम, भजन, फ़िल्मी, इत्यादि में लाया जाता है.
 
अन्नपूर्णा देवी मशहूर संगीतज्ञ
विणा
 
विचित्र वीणा को अंडाकार या गोल कांच के टुकड़े से बजाया जाता है, जो सितार के रूप  में भारतीय मुस्लिम संगीतकारों के बीच लोकप्रिय रहा है. वीणा सुर ध्वनिओं के लिये भारतीय संगीत में प्रयुक्त सबसे प्राचीन वाद्ययंत्र है.
 
समय के साथ इसके कई प्रकार विकसित हुए हैं (रुद्रवीणा, विचित्रवीणा इत्यादि). भारतीय संगीत वाद्य में प्रसिद्ध विचित्र वीणा वादक डॉ लालमणि मिश्र ने इसे प्राचीन त्रितंत्री वीणा का विकसित रूप सिद्ध किया. सितार पूर्ण भारतीय वाद्य है क्योंकि इसमें भारतीय वाद्योँ की तीनों विशेषताएं हैं. वीणा वस्तुत: तंत्री वाद्यों का सँरचनात्मक नाम है.
 
पं. हरिप्रसाद चौरसिया

बांसुरी
 
श्रीकृष्ण को बांसुरी अत्यंत  प्रिय रही बांसुरी की मधुर धुन से ना सिर्फ मनुष्य, बल्कि मवेशी भी मंत्रमुग्ध होकर नृत्य करने लगते थे. बांसुरी भारत और नेपाल से उत्पन्न होने वाली एक प्राचीन वाद्ययंत्र है जिसका उपयोग कई नेपाली और भारतीयों लोक गीतों में किया जाता है.
 
बांसुरी को अंगूठे और छोटी उंगली द्वारा समर्थित किया जाता है. बांसुरी पारंपरिक रूप से बांस से बनाई जाती है. जब पं. हरिप्रसाद चौरसिया को स्वरवेणु लाइफ टाइम अचीवमेंट से सम्मानीत किया गया तो उन्होनें कहा कि बांसुरी नहीं होती तो शायद मैं भी न होता. रोनू मजूमदार, राजेंद्र प्रसन्ना, पारस नाथ, राकेश चौरसिया, प्रवीण गोदखिंडी, नवीन कुमार फेमस बांसुरी वादक हैं.
 
 

 
घुँघरू
 
घुँघरू की छनकार किसी भी म्यूजिक कम्पोज़िशन में एक अलग खनक लाती है. इन्हें नर्तक या नर्तकियाँ पैरों में भी बांधतीं हैं. घुँघरू, शास्त्रीय नर्तकियों के प्रमुख आभूषण है. समय बीतने के साथ, घुँघरू ने कविता, साहित्य और सिनेमा के माध्यम से अपने अस्तित्व को हासिल किया है इसका उदाहरण 'इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं', 'हमपे ये किसने हरा रंग डाला', 'एक राधा, एक  मीरा', 'पग घुँघरू बांध मीरा नाची थी', मेरे पैरों में घुँघरू बँधाये दे' आदि बॉलीवुड गानें हैं.
 
संगीत वाद्ययंत्रों को ध्वनि के आधार पर चार मुख्य प्रमुखों में वर्गीकृत किया गया है. भरत मुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में भारतीय संगीत वाद्ययंत्रों को चार व्यापक श्रेणियों में वर्गीकृत किया है – घन-वाद्य, अवनद्ध-वाद्य, सुषिर -वाद्य और तत-वाद्य.