कश्मीर में पारंपरिक ढोल बजाने वाले 'सेहर खान' आज भी रख रहे हैं रमज़ान की प्राचीन परंपराओं को जीवित

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 07-03-2025
Kashmir's traditional dhol player 'Sehar Khan' is still keeping the ancient traditions of Ramadan alive
Kashmir's traditional dhol player 'Sehar Khan' is still keeping the ancient traditions of Ramadan alive

 

आवाज द वाॅयस / भद्रवाह (जम्मू और कश्मीर)

कश्मीर में रमज़ान के पवित्र महीने के दौरान एक अनोखी और प्राचीन परंपरा का निर्वहन किया जाता है, जिसे "सेहर खान" के नाम से जाना जाता है. यह परंपरा आज भी कश्मीर के कई हिस्सों में जीवित है, जहां पारंपरिक ढोल बजाने वाले सहरी के समय लोगों को जगाते हैं. सहरी वह भोजन है, जो उपवास से पहले लिया जाता है, और यह रस्म पिछले कई दशकों से चली आ रही है.

पारंपरिक ढोल बजाने वाले 'सेहर खान' की भूमिका और महत्व

भद्रवाह के एक पारंपरिक ढोल बजाने वाले ने एएनआई से बातचीत करते हुए बताया कि यह एक पूजा की रस्म है, जो सदियों से चली आ रही है. उन्होंने कहा, "पहले हिंदू भी इसमें भाग लिया करते थे. हालांकि आजकल लोग मोबाइल, टीवी और अलार्म जैसी आधुनिक सुविधाओं का इस्तेमाल करते हैं, फिर भी लोग कहते हैं कि 'सेहर खान' के बिना यह रस्म अधूरी होती है. यह एक इबादत का महीना है, जिसमें भाईचारे और बधाई देने की परंपरा है. हम पिछले 30-35 वर्षों से इस परंपरा को निभा रहे हैं, और इसमें अधिकतम चार लोग होते हैं."

इस समय जब लोग तकनीकी गैजेट्स जैसे अलार्म पर निर्भर हैं, तब भी ये पारंपरिक ढोल बजाने वाले अपनी संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखने का प्रयास कर रहे हैं. यह एक सशक्त उदाहरण है कि कैसे पारंपरिक परंपराएं आधुनिक समय में भी अपनी जगह बनाए रखती हैं.

रमज़ान के पवित्र महीने के दौरान सरकार की पहल

इस बीच, जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने 1 मार्च को रमज़ान के पवित्र महीने के मद्देनजर विभिन्न विभागों के अधिकारियों के साथ बैठक की थी. इस बैठक में मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिए कि पूरे रमज़ान महीने में बिजली और अन्य बुनियादी सेवाओं की सुचारू आपूर्ति सुनिश्चित की जाए.

उन्होंने कहा, "लोगों को बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराना सरकार की जिम्मेदारी है. बैठक के दौरान हर विभाग की समीक्षा की गई और सभी को निर्देश दिया गया कि सेहरी और इफ्तार के समय बिजली, पानी की आपूर्ति, राशन, सफाई, स्वच्छता और यातायात में कोई कमी नहीं होनी चाहिए."

ramzan

रमज़ान के महीने का महत्व और ईद-उल-फितर का प्रतीक

रमज़ान का महीना मुस्लिम समुदाय के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इसमें सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक उपवास किया जाता है. यह 30 दिनों का उपवास होता है, जो आत्मनिर्भरता और धार्मिक भक्ति की प्रतीक है. इसके अंत में, ईद-उल-फितर का त्योहार मनाया जाता है, जो रमज़ान के महीने भर के उपवास के समापन का प्रतीक होता है.

कश्मीर में 'सेहर खान' की परंपरा और सरकार की व्यवस्थाएं इस बात का प्रमाण हैं कि कैसे आधुनिकता और परंपराएं एक साथ चल सकती हैं. रमज़ान के दौरान, यह पारंपरिक ढोल बजाने वाले लोगों की भूमिका न केवल धार्मिक आस्थाओं को बनाए रखने में मदद करती है, बल्कि यह समाज में भाईचारे और सद्भाव को भी बढ़ावा देती है.

सरकार की पहल और समुदाय की सक्रिय भागीदारी से यह सुनिश्चित किया जाता है कि रमज़ान का महीना न केवल भक्ति से भरा हो, बल्कि जनता को सभी आवश्यक सुविधाएं भी उपलब्ध हों.