Jews kept their language alive for two thousand years, you started losing it in 75 years: Javed Akhtar
मोहम्मद अकरम / नई दिल्ली
दो हजार वर्षों तक यहूदियों ने अपनी भाषा को जीवित रखा और आप 75 साल में ही हारने लगे हैं. बच्चों को किसने मना किया है उर्दू पढ़ाने से ? जितना समय आप धर्म सिखाने में बिताते हैं, उतना समय यदि आप उर्दू पढ़ाई तो आप एक अच्छा इंसान बन जाएगा.
उर्दू मेरी मातृभाषा है, मैं उर्दू की रोटी खाता हूं और उर्दू से प्यार करता हूं. उक्त बातें मशहूर गीतकार जावेद अख्तर ने इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में अंजुमन तरक्की उर्दू द्वारा चार दिवसीय आयोजित मीर तकी मीर कार्यक्रम में एक श्रोता के सवाल के जवाब में कहीं.
जावेद अख्तर ने आगे कहा कि अगर आप ये साहित्य देखेंगे तो आपको समझ आएगा कि अन्य भाषाओं की तुलना में देवनागरी भाषा में उर्दू की किताबें बड़ी संख्या में बिक रही हैं. जो लोग अपने बच्चों को उर्दू लिपि के माध्यम से उर्दू सिखाते हैं उन्हें इसे अवश्य सिखाना चाहिए और इस तरह भाषा जीवित रहेगी.
जावेद अख्तर ने कहा उर्दू शायरी में ऐसी भी शायरी की गई है जिसमें किसी दूसरे भाषा के शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है.
उसने भीगे हुए बालों से जो झटका पानी
झूम के आई घटा टूट के बरसा पानी
भाषाएं जाहिर हैं प्रभावित होती है. उसके परिवेश की आर्थिक व्यवस्था से लेकर इस समाज के जो भी मूल्य हैं, उसका असर भाषा पर पड़ता है, लेकिन यह एकतरफा यातायात नहीं है, तब भाषा भी एक प्यासा समाज बनने लगती है..
मुझे संदेह है कि अकबर क्या....
जावेद अख्तर ने कहा कि बहुत से लोग जो इतिहास से परिचित नहीं हैं, वे सोचते हैं कि उर्दू मुगलों की अपनाई हुई भाषा है. मुझे वास्तव में संदेह है कि क्या अकबर जानता था कि उर्दू नामक एक भाषा भी है? यह उर्दू नाम भी बाद में पड़ा, इसे रेख़्ता और हिंदुवी के नाम से जाना गया, इसलिए मूल को हिन्दवी कहा गया.
भाषाएं धर्मों की नहीं क्षेत्रों की होती हैं
जावेद अख्तर ने आगे कहा कि भाषाएं धर्मों की नहीं होती, भाषाएं क्षेत्रों की होती हैं. धर्म के आधार पर देखें तो यूरोप के सभी ईसाइयों की एक युग होनी चाहिए और भारत के सभी हिंदुओं की एक भाषा होनी चाहिए. हिंदी हिंदुओं की भाषा है आइए स्टाइलिन से बात करते हैं कि आप कैसे नहीं जानते कि हिंदुओं की भाषा क्या है.
अरब के मुसलमानों की भाषा अरबी है, अगर ये मुसलमानों की भाषा होती तो दूसरे देशों के मुसलमानों की ज़बान भी उर्दू होनी चाहिए, ऐसा वाकई नहीं है. इस चर्चा सत्र का संचालन डॉ सैयद सैफ़ महमूद ने की.