इमान सकीना
मानवता के सामने सबसे गंभीर और चुनौतीपूर्ण समस्याओं में से एक गरीबी, भूख और भुखमरी है. इस धरती पर लाखों लोग ऐसे हैं जो बुनियादी आवश्यकताओं से वंचित हैं, जबकि कई लोग आरामदायक जीवन जी रहे हैं. इस्लाम एक ऐसा धर्म है जो सामाजिक न्याय, सहानुभूति और परोपकार पर ज़ोर देता है. पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया: “सबसे अच्छा दान वह है जो एक अमीर व्यक्ति द्वारा किया जाता है, और सबसे पहले अपने आश्रितों को देना शुरू करो.” [सहीह अल-बुखारी]
इस्लाम में दान और परोपकार को अनिवार्य और अनुशंसित दोनों रूपों में अपनाया गया है. कुरान और हदीस में गरीबों की मदद करने के कई तरीके बताए गए हैं, जिनका उद्देश्य आर्थिक असमानता को कम करना और समाज में संतुलन स्थापित करना है. आइए जानते हैं कि इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार गरीबों की मदद कैसे की जा सकती है.
ज़कात इस्लाम के पाँच स्तंभों में से एक है और यह एक अनिवार्य दान है. जो भी मुसलमान आर्थिक रूप से सक्षम होता है, उसे अपनी बचत का 2.5% सालाना ज़कात के रूप में देना आवश्यक होता है. यह व्यवस्था समाज में धन के संतुलन को बनाए रखने में मदद करती है और आर्थिक असमानता को कम करती है. कुरान में ज़कात देने के पात्र लोगों की सूची इस प्रकार दी गई है:
"ज़कात तो केवल फक़ीरों और मिस्कीनों और उसमें काम करने वालों और जिनके दिलों को मेल करना अभीष्ट हो और गर्दनों के छुड़ाने में और कर्ज़दारों में और अल्लाह के मार्ग में और यात्री के लिए है. यह अल्लाह की ओर से निर्धारित है और अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, तत्त्वदर्शी है." (कुरान 9:60)
सदक़ा एक स्वैच्छिक दान है जो ज़कात से अलग है और यह किसी भी रूप में दिया जा सकता है, जैसे धन, भोजन, कपड़े, शिक्षा, या यहां तक कि मुस्कान के रूप में भी. पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया:
"हर दिन सूरज उगने पर हर व्यक्ति के हर जोड़ के लिए दान देना चाहिए." (सहीह अल-बुखारी)
सदक़ा किसी भी रूप में किया जा सकता है और यह गरीबों की मदद का सबसे आसान और प्रभावी तरीका है.
वक्फ एक ऐसा धर्मार्थ कार्य है जिसमें कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति या धन को समाज के कल्याण के लिए समर्पित कर देता है. इसका उपयोग स्कूलों, अस्पतालों, मस्जिदों, अनाथालयों और अन्य सार्वजनिक संस्थानों के निर्माण और संचालन के लिए किया जाता है. वक्फ गरीबों को स्थायी रूप से सहायता प्रदान करता है और उनके जीवन स्तर को सुधारने में सहायक होता है.
भूखे को भोजन कराना इस्लाम में बहुत बड़ा पुण्य माना गया है। कुरान में कहा गया है:
"और वे जरूरतमंदों, अनाथों और बंदी को, इसके लिए प्यार के बावजूद, भोजन देते हैं." (कुरान 76:8)
खासकर रमज़ान के महीने में इफ़्तार के दौरान गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन कराना बहुत पुण्य का कार्य माना जाता है.
इस्लाम सिर्फ़ दान देने की बात नहीं करता, बल्कि गरीबों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रोत्साहित करता है. इस्लाम में यह सिखाया गया है कि किसी को मछली देने के बजाय उसे मछली पकड़ना सिखाना अधिक फायदेमंद है. गरीबों को शिक्षा, कौशल प्रशिक्षण और रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना उनके भविष्य को सुरक्षित बनाने का सबसे बेहतर तरीका है.
इस्लाम अनाथों और विधवाओं की मदद करने को बहुत महत्वपूर्ण मानता है. पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया:
"जो अनाथ की देखभाल करता है, वह स्वर्ग में मेरे साथ इस तरह होगा," और उन्होंने अपनी दो उंगलियों को साथ रखा. (सहीह अल-बुखारी)
इस्लामी समाज में अनाथों और विधवाओं की आर्थिक, सामाजिक और भावनात्मक सहायता का विशेष ध्यान रखा जाता है.
इस्लाम में ऋणग्रस्त लोगों की मदद करने को एक महान कार्य माना गया है। कुरान में कहा गया है:
"और यदि कोई कठिनाई में है, तो उसे आराम के समय तक टाल देना चाहिए. लेकिन यदि आप अपने धन से दान करते हैं, तो यह आपके लिए बेहतर है." (कुरान 2:280)
कई बार गरीब लोग कर्ज़ के बोझ के कारण अपनी जिंदगी गुजारने में असमर्थ होते हैं. ऐसे में उनके कर्ज़ को माफ़ करना या उन्हें ऋण मुक्त करने के लिए सहायता करना इस्लामिक शिक्षा के अनुसार एक महान कार्य है.
गरीबों की मदद केवल वित्तीय सहायता तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके साथ सम्मानजनक व्यवहार करना भी बहुत ज़रूरी है. इस्लाम गरीबों और ज़रूरतमंदों के अधिकारों की रक्षा करने और उनके साथ अच्छा व्यवहार करने की शिक्षा देता है.
"तुम किसी पर ज़ुल्म मत करो और न ही किसी के साथ अन्याय करो." (हदीस)
इस्लाम हमें गरीबों के अधिकारों की रक्षा करने, उन्हें न्याय दिलाने और गरीबी के कारणों को खत्म करने के लिए काम करने की शिक्षा देता है.
इस्लाम में गरीबों और ज़रूरतमंदों की सहायता करने के कई तरीके बताए गए हैं. ज़कात, सदक़ा, वक्फ, भोजन कराना, रोजगार उपलब्ध कराना, अनाथों और विधवाओं की सहायता करना, ऋण मुक्त करना और दयालुता दिखाना इस्लामी समाज में गरीबी को कम करने के प्रमुख उपाय हैं.
यदि हम इन शिक्षाओं का पालन करें, तो समाज में आर्थिक संतुलन स्थापित किया जा सकता है और कोई भी व्यक्ति भूखा और बेसहारा नहीं रहेगा.
अल्लाह हमें इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार गरीबों की मदद करने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए, आमीन!