किशोरों के लिए इंटरमिटेंट फास्टिंग असुरक्षित, कोशिका विकास हो सकता है प्रभावित : अध्ययन

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 14-02-2025
Intermittent fasting unsafe for teenagers, may affect cell growth: Study
Intermittent fasting unsafe for teenagers, may affect cell growth: Study

 

नई दिल्ली
 
फास्ट रखने का तरीका जिसे "इंटरमिटेंट फास्टिंग" कहा जाता है, वजन घटाने और सेहत सुधारने के लिए बहुत लोकप्रिय है. लेकिन एक नए शोध के मुताबिक, यह किशोरों के लिए सुरक्षित नहीं हो सकता, क्योंकि इससे उनकी कोशिकाओं के विकास पर असर पड़ सकता है. 
 
जर्मनी के टेक्निकल यूनिवर्सिटी ऑफ म्यूनिख (टीयूएम), एलएमयू हॉस्पिटल म्यूनिख और हेल्महोल्त्ज म्यूनिख के वैज्ञानिकों ने बताया कि उम्र के अनुसार इंटरमिटेंट फास्टिंग के प्रभाव अलग हो सकते हैं.
 
इंटरमिटेंट फास्टिंग का मतलब है कि व्यक्ति हर दिन केवल 6 से 8 घंटे के भीतर ही भोजन करे और बाकी समय उपवास रखे. यह डायबिटीज और हृदय रोग से बचाव में मददगार माना जाता है और वजन कम करने में भी सहायक होता है.
 
हाल ही में जर्नल सेल रिपोर्ट्स में प्रकाशित एक शोध में पाया गया कि लंबे समय तक इंटरमिटेंट फास्टिंग करने से कम उम्र के चूहों में इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं (बीटा सेल्स) के विकास में रुकावट आ गई.
 
शोधकर्ता प्रोफेसर स्टीफन हर्जिग ने बताया, "हमारी स्टडी में यह साफ हुआ कि इंटरमिटेंट फास्टिंग वयस्कों के लिए फायदेमंद हो सकता है, लेकिन बच्चों और किशोरों के लिए इसमें कुछ खतरे हो सकते हैं."
 
इस अध्ययन में किशोर, वयस्क और बुजुर्ग चूहों को एक दिन बिना भोजन रखा गया और अगले दो दिन सामान्य आहार दिया गया. दस हफ्तों बाद देखा गया कि वयस्क और बुजुर्ग चूहों के शरीर में इंसुलिन के प्रति संवेदनशीलता बढ़ गई, जिससे उनका मेटाबॉलिज्म बेहतर हुआ. यह रक्त में शुगर के स्तर को नियंत्रित करने और टाइप 2 डायबिटीज से बचाने के लिए जरूरी है.
 
लेकिन किशोर चूहों में बीटा सेल्स की कार्यक्षमता कम हो गई, जिससे इंसुलिन का उत्पादन घट गया. इंसुलिन की कमी डायबिटीज और अन्य मेटाबॉलिक समस्याओं का कारण बन सकती है.
 
शोधकर्ता लियोनार्डो मट्टा के अनुसार, "आमतौर पर माना जाता है कि इंटरमिटेंट फास्टिंग बीटा सेल्स के लिए फायदेमंद होता है, लेकिन हमने पाया कि कम उम्र के चूहे लंबे समय तक उपवास के बाद कम इंसुलिन बना रहे थे."
 
जब वैज्ञानिकों ने इसका कारण जानने की कोशिश की, तो पाया कि कम उम्र के चूहों के बीटा सेल्स पूरी तरह विकसित नहीं हो सके.
 
इस शोध की तुलना जब इंसानों के टिशू डेटा से की गई, तो पता चला कि टाइप 1 डायबिटीज वाले मरीजों में भी बीटा सेल्स का विकास बाधित हो सकता है.