इमरान खान/नई दिल्ली
एक दूसरे के धर्म के प्रति बढ़ती असहिष्णुता,देश में नफरत की एक बड़ी फसल तैयार कर रही है, जिन्हें रोज़ ख़ाद और पानी दिया जा रहा है. लेकिन देश में अभी भी आपसी सद्भाव को बनाये रखने वाले लोग हैं,जो चाहते हैं कि देश शान्ति के रास्ते पर आगे बढ़े.
आवाज़ द वाॅयस ने अंतर धार्मिक संवाद पर सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक और व्यापारी कलीमुल हफ़ीज़ से बात की. वह कांग्रेस के अहमद पटेल के भी नजदीकी रहे हैं.उन्होंने असम और कश्मीर में आई बाढ़ में लोगो की मदद की.आज भी गरीबों की मदद में लगे हैं. यह एक लेखक भी हैं और उन्होंने 'इंडियन इस्लामिक कल्चरल सेंटर:एक ख्वाब नामक एक किताब भी लिखी है. वह बदायूं में अल-हज़ीज़ नामक स्कूल भी चलाते हैं.
आवाज द वाॅयस से बातचीत में उन्होंने कहा, “द्वेष को हम अंतर धार्मिक संवाद के माध्यम से कम कर सकते हैं.इसके लिए हमें सामाजिक तौर पर कदम उठाने होंगे.
त्योहारों की भूमिका
कलीमुल हफ़ीज़ का मानना है कि हमें बच्चों को प्राथमिक शिक्षा सेही सभी धर्मों के त्योहारों के महत्त्व केबारे में बताना चाहिए ताकि सभी धर्मों की जानकारी हो पाए. त्योहारों के माध्यम से बच्चों में उस त्योहार और धर्म के बारे जानने की जिज्ञासा पैदा होगी. जिससे बच्चे में नफरत और गलत फ़हमी पैदा नहीं होगी. उनके ज्ञान का विस्तार होगा.वे समझ पाएंगे कि कोई समाज कैसे चालता और बर्ताव करता है.
कलीम आगे बताते हैं कि त्योहारों से हमें उस धर्म के दर्शन(philosophy) का पता चलता है. मुस्लिम ईद से पहले रोजा क्यों रखते हैं. बकरीद क्यों मनाई जाती है या फिर दिवाली, होली,रक्षाबंधन, लोहड़ी या क्रिसमस क्यों मनाया जाता है?दुनिया का ज्यादातर हिस्सा धर्म के आधार पर चलता है. जिससे बच्चे की सोचने और समझेने की शक्ति बढ़ती है.
कैसे बढ़ेगा अंतर धार्मिक संवाद
हर धर्म को अपने धार्मिक स्थलों को सब के लिए खोल देना चाहिए. मस्जिद में गैर मुस्लिम आ सकें, मंदिरों में गैर हिन्दू जा सके. इसका कारण बताते हुए कलीमुल बताते हैं कि ऐसा करने से लोग एक दूसरे का कल्चर और धार्मिक पद्धति को और करीब से जान पाएंगे.
कलीमुल हफ़ीज़ का कहना है किसूफिज्म के लिहाज से भारत में दो ऐसे धार्मिक स्थल हैं जो आपसी भाई चारा बचाए हुए हैं. दरगाह,जिन्हें लगातार बदनाम किया जा रहा है.लोगो को रोका जा रहा है.उसके बाद भी लोग नहीं रुक रहे हैं.उनका विश्वास आज भी सूफ़ी संतो में बना हुआ है.
वह सालों से इन दरगाहों पर जाते रहे हैं और आज भी जा रहे हैं. दूसरा गुरुद्वारे को बताया.उनका मानना है कि हर धर्म का व्यक्ति गुरुद्वारे जाता है.उनका लंगर खाता है. गुरूद्वारे से देश में आपसी भाईचारे और धार्मिक संवाद को बहुत बढ़ावा मिलता रहा है.
अंतर धार्मिक संवाद पर मीडिया की भूमिका
कलीमुल हफ़ीज़ का मानना है,"देश में आपसी भाईचारे और प्रेम के खात्मे में टीवी मीडियालगा है. कुछ मीडिया घराने ऐसे हैं जिनका मुनाफा ही सांप्रदायिकता के बढ़ावे से हो रहा है. उन्हें इस बात से तनिक भी परेशानी नहीं होती है कि देश को उनकी ख़बरों से कितना नुकसान हो रहा है.
मुझे बिलकुल भी ऐसी उम्मीद टीवी मीडिया से नहीं है कि वह अमन या गंगा - जमुनी तहज़ीब को आगे बढ़ाने में कोई भूमिका निभाएगा.ऐसे में उनसे धार्मिक संवाद की उम्मीद रखना फिज़ूल है. आज का टीवी मीडिया ख़बर को उसकी सत्यता पर भी दिखाना शुरू करदे तो वह किसी क्रांति से कम नहीं होगा. 'भारत के लोगो का मिज़ाज़ नफरत या लड़ाई वाला नहीं है.वह रहना ही अमन और शांति से चाहते हैं.'
अंतर धार्मिक संवाद पर शिक्षा का प्रभाव
देश की शिक्षा व्यवस्था में हमें ऐसे हीरो और राजाओं को ज्यादा पढ़ाना चाहिए जिन्होंने देश में गंगा -जमुनी तहजीब के बढ़ावे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. लेकिन इसका उल्टा रहा है.धीरे - धीरे नोटबुक में से ऐसे लोगो को समाप्त किया जा रहा है. मुग़ल काल को शिक्षा से बाहर कर दिया गया है. ऐसे क़दमों से देश में द्वेष को ही बढ़ावा मिलेगा.
अंतर धार्मिक संवाद देश की जनता को अपने स्तर से शुरू करना होगा.इसके लिए किसी खास शख्सियत का इंतजार किया तो बहुत देर हो जाएगी. लोगों की बर्दाश्त करने की क्षमता कम हो रही है जो कि सही नहीं है.