सुमेरा समीना / मुबई
अपनी सर-जमीं की अहमियत तब और बढ़ जाती है, जब आप किसी दूसरे देश में हों. कुछ ऐसा ही मुंबई के पालघर के मूल निवासी सुहैल लुलानिया के साथ भी है. लुलानिया मुंबई से मार्च 2013 में ऑस्ट्रेलिया गए, तो वहीं के होकर रह गए. वहां वह अर्बनेस्ट कंपनी के लिए काम करने के अलावा बैचलर ऑफ इनफार्मेशन टेकनॉजी की पढ़ाई भी कर रहे हैं .इन दिनों वह अपने गृह शहर मुंबई आए हुए हैं.
30 वर्शीय लुलानिया आवाज-द वॉयस से बातचीत में कहते हैं कि जब अपने देश में था, तब अपने यहां की सौ बुराइयां दिखती थीं. कई बार तो मैं कुछ घटनाओं और सरकार के निर्णयों को लेकर बेहद आलोचक हो जाता था. अब इतने दिनों से विदेश में हूं, तो मुझे भी चांद पर जाने वाले राकेश शर्मा की तरह ‘अपना देश सबसे महान और खूबसूरत दिखता है.‘
सुहैल लुलानिया ने बातचीत में ऑस्ट्रेलिया के अपने कई अनुभव साझा किए. सुहैल लुलानिया कहते हैं कि विदेश में रहने वाले हिंदुस्तानी अपनी बात और व्यवहार से अलग पहचान रखते हैं.
मेलबर्न से हिंदुस्तान आए मुंबई के सुहैल लुलानिया कहते हैं कि उन्हें विदेशी सर-जमीन पर हर वक्त इस बात पर गुरुर होता है कि वह एक हिंदुस्तानी हैं. कहते हैं कि भारतीय मुसलमान होने पर उन्हें तब और फख्र होता है, जब दूसरे देशों के मुसलमानों के बीच उन्हें अधिक महत्व दिया जाता है. वह कहते हैं, ‘‘मैं एक भारतीय हूं. विदेश में यही हमारी सबसे बड़ी पहचान है.’’
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वह बताते हैं कि मेलबर्न में वह जिस स्थान पर रहते हैं. वहां कई अन्य देशों के लोग भी रहते हैं. पर उनके बीच उनका अलग जलवा है. वहां के लोग सुहैल को अन्य के मुकाबले अधिक रहमदिल और मिलनसार मानते हैें.
उनके मुताबिक, ऑस्ट्रेलिया में कंपनी के काम की वहज से उन्हें अक्सर विभिन्न देश-धर्म के लोगों से संपर्क करना पड़ता है. एक बार उन्हें मुंबई से ऑस्ट्रेलिया जाने के क्रम में मलेशिया से फ्लाइट बदलना था. तब उनके साथ कुछ रिश्तेदार भी पाकिस्तान से आस्ट्रेलिया शिफ्ट हो रहे थे. इत्तेफाक से उनसे उनकी मुलाकात मलेशिया एयरपोर्ट पर हो गई.
सुहैल कहते हैं कि इमिग्रेशन काउंटर पर उनसे सामान्य पूछताछ के बाद उन्हें तो वहां से आसानी से जाने दिया गया, पर उनके पाकिस्तानी रिश्तेदार को सत्यापन के लिए एक अलग लाइन में खड़ा कर दिया गया. उनका मामला बाद में इतना पेचीदा हो गया कि उन्हें अपने वतन लौटने की नौबत आ गई थी.
सुहैल अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि तब उन्हें अपने भारतीय होने पर और ज्यादा गर्व महसूस हुआ. वह बताते हैं कि आस्ट्रेलिया में भी अन्य देशों के मुसलमान काफी संख्या में हैं. इस दौरान वह ऑस्ट्रेलिया से दूसरे मुल्कों के लिए भी कंपनी के काम से सफर करते रहते हैं, पर उनका अनुभव अन्य देश वासियों के प्रति कुछ खास नहीं रहा.
इस्लामिक देशों के मुस्लिम पासपोर्ट धारकों को शक की निगाहों से देखा जाता है. आस्ट्रेलिया में भी स्थिति कुछ ऐसी ही है. मगर उनकी कंपनी उनके काम और व्यवहार के चलते उन पर काफी भरोसा करती है. उन्हें नाइट शिफ्ट में लड़कियों का इंचार्ज भी बनाया गया है. सुहैल कहते हैं कि उनके काम से उनके अधिकारी भी काफी प्रभावित हैं.
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सुहैल कहते हैं कि वो खाने-पीने के बहुत शौकीन हैं. हिंदुस्तान से आस्ट्रेलिया जाने पर उन्हें कई हफ्तों तक उनके मिजाज के अनुसार भोजन नहीं मिला. मगर जल्द ही उनके कुछ हिंदुस्तानी दोस्तों ने उनकी यह कमी दूर कर दी. उनके साथियों में पाकिस्तानी, बांग्लादेशी और सीरिया के लोग भी हैं, पर उनके हाथ का बना भोजन उन्हें पसंद नहीं .
वह कहते हैं कि दुनिया में ऐसे कई देश हैं, जहां मुसलमान ही आपस में मारपीट मचाए हुए हैं. मगर हिंदुस्तान में ऐसा बिल्कुल नहीं. यहां तक अपवाद स्वरूप कुछ घटनाओं को छोड़ दें, तो अपने देश में हिंदू, मुसलमान, ईसाई आदि सभी धर्मों के लोग आपस में मिलकर रहते हैं. ऐसा माहौल किसी अन्य देश में कहां है?
सुहैल बताते हैं कि वह पांच साल के असाइनमेंट पर ऑस्ट्रेलिया गए थे. तब समय काटना भारी पड़ रहा था. अब वहां हिंदुस्तानी दोस्तों की मंडली के साथ अच्छे दिन कट रहे हैं. हमारे बीच सबसे अहम बात तो यही है कि हममें से कौन हिंदू है, कौन मुसलमान और कौन सिख? लेकिन इससे क्या कोई फर्क नहीं पड़ता?
भारतीयता के बारे में सुहैल लुलानिया कहते हैं कि हम लोगों ने ऑस्ट्रेलिया में भी हिंदुस्तानी गंगा-जमुनी संस्कृति बरकरार रखी हुई है. आस्ट्रेलिया में रहते हुए हमें अपनी परंपरा को देखने का एक नया दृष्टिकोण मिला है.
वह कहते हैं कि मैं हिंदुस्तानी हूं. यह सोचकर ही गर्व से भर जाता हूं. मैं खुद को भाग्यशाली मानता हूं कि भारत में पैदा हुआ. उनके मेलबर्न में भी कई अच्छे दोस्त हैं. वह कहते हैं कि परदेस में वह देश के तीज-त्योहारों को मिस करते हैं.
जब हिंदुस्तान में होता था, तो क्या ईद और क्या दिवाली होती थी, दोस्तों के साथ मिलकर खूब धमाल मचाते थे. ऑस्ट्रेलिया में यह सब तो नहीं होता, पर त्योहारों पर हम हिंदुस्तानी साथी एक जगह इकट्ठे जरूर होते हैं. रक्षाबंधन के दिनों में मैं मुंबई में अपनी पड़ोस की बहनों से राखी बंधवाता था. आस्ट्रेलिया में यह नहीं हो पाता है. बिरयानी भी वहां खाने को यदाकदा ही नसीब होती है. मेरे ऑस्ट्रेलियन दोस्तों को भी बिरयानी बहुत पसंद है.
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वह कहते हैं कि आपको मेरी इस बात पर हंसी आएगी कि मेरे हाथ की बनी बिरयानी मेरे ऑस्ट्रेलियाई दोस्तों में बहुत मशहूर है. हालांकि इसे बनाने से पहले मुंबई में अपने घर पर किसी ना किसी से इसकी रेसिपी जरूर पूछता हूं.
आखिर में वे कहते हैं कि जैसे यहां एक हिंदुस्तानी का दिल देश के लिए धड़कता है, वैसे ही विदेश में मैंने भी इसे महसूस किया है.