-फ़िरदौस ख़ान
हृदय में यदि कोई तीक्ष्ण हूक उठती है.एक अनाम-सी व्यग्रता सम्पूर्ण व्यक्तित्व पर छाई रहती है और कुछ कर गुज़रने की उत्कट भावना हमारी आत्मा को झिंझोड़ती रहती है.ऐसी परिस्थिति में, कितना ही दीर्घ समय का अंतराल हमारी रचनाशीलता में पसर गया हो, तब भी अवसर मिलते ही, हृदय में एकत्रित समस्त भावनाएं, विचार और संवेदनाएं अपनी सम्पूर्णता से अभिव्यक्त होती ही हैं.
केवल ज्वलंत अग्नि पर जमी हुई राख को हटाने मात्र का अवसर चाहिए होता है.इसके उपरान्त जिस अभिव्यक्ति का जन्म होता है, वह सृजनात्मक एवं गहन अनुभूति का चरमोत्कर्ष होता है.शौकत हुसैन मंसूरी की रचनाएं ऐसी ही अभिव्यक्ति का संग्रह हैं.
राजस्थान के उदयपुर में जन्मे शौकत हुसैन मंसूरी कवि और कहानीकार हैं.उनकी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं.उनका 1985 में पहला कहानी संग्रह ‘खोई हुईं दिशाएँ’ और 2022 में दूसरा कहानी संग्रह ‘दावानल’ प्रकाशित हुआ.
उनका 2018 में काव्य संग्रह ‘कर जाऊँगा पार मैं दरिया आग का’ और 2023 urduमें शायरी की पुस्तक ‘रक़्स ए ज़िंदगी’ प्रकाशित हुई.'युगमंथन' प्रतिनिधि नामक काव्य संग्रह में भी उनकी कविताएं प्रकाशित हो चुकी हैं.
उनकी तीन पुस्तकें शीघ्र प्रकाशित होने वाली हैं, जिनमें नज़्म और ग़ज़ल की पुस्तक यादों का सिलसिला, उपन्यास आदम और हव्वा तथा नाटक दिशाहीन शामिल हैं.उदयपुर के आकाशवाणी केंद्र से उनकी कविताएं, लघु नाटक और कहानियों का प्रसारण होता रहता है.देश की विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में उनकी रचननाएं प्रकाशित होती रहती हैं.
शौकत हुसैन मंसूरी ने दिल्ली में हुई एक मुलाक़ात में बताया कि जिस समय मेरा पहला कहानी संग्रह प्रकाशित हुआ था.उस समय मेरे भीतर एक अग्नि प्रज्ज्वलित थी.ऐसी अग्नि कि सबकुछ बदल देने की उत्कट् इच्छाशक्ति ह्रदय में ज्वाला बनकर धधक रही थी.किन्तु असुरक्षित वर्तमान और अंधकारमय भविष्य मुंह बाएं खड़ा था:
जीवन जो बन गया छलावा !
आत्मा को झिंझोड़ रहा
आख़िरी श्वास लेती मेरी ये ज़िन्दगी
शब्दजाल में क़ैद छटपटाती है
वसन्त...
नहीं-नहीं
पतझड़ें भोगी हैं मैंने
जान ही नहीं पाया
वसन्त का लालित्य
उल्लासित अनुभूति का अर्थ
किंकर्तव्यविमूढ़-सा
शनै: शनै: विष का उतरना देख रहा हूं
देख रहा हूं... मृत्यु को टलते
और
अभिशप्त नियति को
पसरते इस अनभिज्ञ...
तब से लेकर अब तक न जाने किन-किन मरहलों, जीवन की कठोर परीक्षाओं और स्थितियों-परिस्थितियों के हैरत-अंगेज़ चक्रव्यूह को पार किया है.कितनी ही आज़माइशें ज़िन्दगी ले चुकी हैं.सन् 1994 में हुए एक भीषण हादसे ने जीवन की धारा को अवरुद्ध कर दिया था.कुंठित चेतना, शून्यता और निर्विकार भाव ने सारे जीवन को गतिहीन कर दिया था.
धधकती अग्नि राख में परिवर्तित हो गई थी.उस भीषण हादसे की मैंने बहुत बड़ी क़ीमत चुकाई है और अब भी चुका रहा हूं.सारा व्यक्तित्व बदल चुका था। सबकुछ ध्वस्त हो गया था... सब कुछ ठहर-सा गया था:
परिंदों की चहचाहट लुप्त हो गई हैं
पेड़ निर्विकार गर्दन झुकाए खड़े हैं
लगा मुझे जैसे कि
एक कहावत चरितार्थ हुई है
समय की गति को सांप सूंघ गया हो
अनुभूतियां चुक गईं हैं
संवेदनशीलताएं ढह गई हैं
वे आगे कहते हैं कि लिखने- पढ़ने की ललक तो जैसे बीते दिनों की विस्मृत कहानी होकर रह गई थी.पढ़ने के नाम पर सिर्फ़ अखबार था। साहित्य से कोई सरोकार नहीं रह गया था.मेरे और साहित्य के मध्य अंतहीन दूरी विद्यमान हो गई थी.विगत वर्षों में न पढ़ने की और न ही लिखने की इच्छा शक्ति पैदा हुई... और न मैंने ही कोई चेष्टा की थी:
हिज्र की तारीक रातें, वस्ल के गर्दिशी दिन
राहतो- क़रार नहीं गुलनार हूं ख़ारों में कहीं
वीराने सहरा में तिश्नालबी के मायने बहुत आसान
उफ़नते समन्दर में सूखते हलक़ देखे अभी अभी
समय गुज़रता रहा... गुज़रता ही रहा... और मैं निर्विकार रहा, चेतना शून्य-सा। न कुछ पाने की लालसा... न कोई उमंग... यहां तक कि मनोस्थिति वैराग्य भाव-सी हो गई थी.सबकुछ हाथों से फिसलता जा रहा था... साधने का कोई प्रयास भी मेरी ओर से नहीं हो पाया था.समय के बहाव के विपरीत निर्लिप्त-सा रहा हूं और जीवन के अमूल्य उपहार मुझसे दूर होते गए.
जीवन्त अग्नि कोयले में परिवर्तित हो चुकी थी.कोयलों पर राख की मोटी परत चढ़ चुकी थी, किन्तु मैंने साहस बटोरा और पुरानी रचनाओं को एकत्रित किया.फिर उन्हें प्रकाशित करवाया.
शौक़ नहीं दिखाने का रेज़े-रेज़े हयातो-ज़ख्मे-दिल
दिल के जज़्बात बेख़्याल क़लम ने बयां कर दिए
उनकी कविताओं में जीवन के अनेक रंग हैं.अपनी कविता ‘आत्महन्ता’ में जीवन के संघर्ष को बयां करते हुए वे कहते हैं-
विपत्तियां क्या हैं
रहती हैं आती-जातीं
सारा जीवन ही यूं
भरा होता है संघर्षों से...
कविताओं में मौसम के भी इन्द्रधनुषी रंग भी समाये हुए हैं.उन्होंने फागुन के ख़ुशनुमा रंग बिखेरते हुए बयां किया है-
खिल गए हैं फूल सरसों के
पड़ गया है दूध
गेहूं की बाली में
लगे बौराने आम
खट्टी-मीठी महक से बौरा गए वन-उपवन
आज मौसम के साथ संबंध भी बदल रहे हैं। वे कहते हैं-
रिश्तों की अपनी-अपनी
होती है दुनिया
कुछ रिश्ते होते हैं दिल के
क़रीब और कुछ सिर्फ़
होते हैं निबाहने की ख़ातिर...
उन्होंने समाज में व्याप्त बुराइयों पर भी कड़ा प्रहार किया है, वह चाहे महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध हों, भ्रष्टाचार हो, सांप्रदायिकता हो, रूढ़ियों में जकड़ी ज़िन्दगियां हों, या फिर दरकती मानवीय संवेदनाएं हों.उन्होंने इस पर गंभीरता से चिंतन किया है.वे आशावादी हैं, इसलिए उन्होंने निराशा के इस घने अंधकार में भी आशा का एक नन्हा दीपक जलाकर रखा है.उनका कहना है-
ज़िन्दगी में फैले अंधेरे को
मिटाने का आत्म विश्वास इंसानों को
स्वयं पैदा करना होता है
उनकी कविताओं की तरह ही उनकी कहानियों में भी जीवन से जुड़े सरोकार, ज्वलंत मुद्दे तथा मानवीय पीड़ा-व्यथा को अभिव्यक्त किया गया है, जो कि किसी भी संवेदनशील मनुष्य को उद्वेलित करते हैं.
ईश्वर में उनका दृढ़ विश्वास है.वे कहते हैं कि मेरा दृढ़ विश्वास है कि ईश्वर ने यदि कुछ विशेष उपहार आपके जन्म लेने के साथ ही आपको प्रदत किए हैं, तो वे आपको किसी न किसी रूप में अवश्य ही मिलेंगे.उनका जीवन और उनकी रचनाएं जीवन में लगातार आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं.
(लेखिका शायरा, कहानीकार व पत्रकार हैं)