देसी नुस्ख़े बनाम आधुनिक दवाएं: स्वास्थ्य के लिए कौन सा रास्ता चुनें?

Story by  फिदौस खान | Published by  [email protected] | Date 15-10-2024
Home Remedies vs Modern Medicines: Which Path to Choose for Health?
Home Remedies vs Modern Medicines: Which Path to Choose for Health?

 

फ़िरदौस ख़ान
 
इलाज के लिए दुनिया भर में अनेक चिकित्सा पद्धतियां मौजूद हैं. इनमें सबसे जल्दी फ़ायदा करने वाली पद्धति एलोपैथी है. यह आधुनिक चिकित्सा पद्धति है. इसमें इलाज का सिद्धांत लक्षण से उलट है जैसे गर्म का तोड़ ठंडा है. इस पद्धति में विभिन्न प्रकार की जांच की सुविधा है. सर्जरी की सुविधा है. मरीज़ भले ही किसी भी चिकित्सा पद्धति के इलाज का हिमायती हो, उसे कभी न कभी इस पद्धति की मदद लेनी ही पड़ती है. होम्योपैथी भी एक कारगर चिकित्सा पद्धति है. इसके इलाज का सिद्धांत है जैसे को तैसा यानी लोहे को लोहा ही काटता है.

इसके अलावा सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों में आयुर्वेद और हिकमत भी शामिल हैं. रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में यही दो चिकित्सा पद्धतियां सबसे ज़्यादा काम आती हैं. इनकी सबसे ख़ास बात यह भी है कि इनके इलाज में शामिल होने वाली चीज़ें हमारे रसोईघरों में, बग़ीचों में और हमारे आसपास ही मिल जाती हैं. इनके अलावा इलेक्ट्रोपैथी जैसी चिकित्सा पद्धतियां भी हैं, लेकिन इनके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं. 
 
आवाज़ ने कुछ लोगों से बात करके यह जानने की कोशिश की है कि वे किस चिकित्सा पद्धति के ज़रिये इलाज करवाना पसंद करते हैं और इसकी क्या वजह है?  
 
सरफ़राज़ ख़ान को होम्योपैथिक इलाज में यक़ीन है. उनका कहना है कि होम्योपैथिक दवा मर्ज़ को जड़ से ख़त्म कर देती है. यह दवा फ़ौरन असर नहीं दिखाती, लेकिन यह बहुत कारगर साबित होती है. यह एक भरोसेमंद इलाज है, क्योंकि इसके साइड इफ़ेक्ट न के बराबर होते हैं.
 
यह मधुमेह, रक्तचाप, गठिया, थायराइड, पथरी और त्वचा संबंधी रोगों आदि में बहुत कारगर साबित हुई है. उनका कहना है कि कुछ लोग कहते हैं कि वहम का कोई इलाज नहीं होता, लेकिन होम्योपैथी में इसका भी इलाज है. यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि आज होम्योपैथी में हर बीमारी का इलाज मुमकिन हो गया है. बहुत सी लाइलाज बीमारियों के संबंध में शोध जारी हैं और उनके अच्छे नतीजे सामने आ रहे हैं.  
 
 
सरफ़राज़ ख़ान 
 
 
वे कहते हैं कि ज़्यादातर लोगों के साथ ऐसा होता है कि उन्हें कोई चीज़ मुआफ़िक़ नहीं होती यानी दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि उन्हें किसी न किसी चीज़ से एलर्जी होती है, जैसे बहुत से लोगों को चुकंदर और अरबी के पत्तों से एलर्जी होती है. इन्हें मुंह में रखते ही उनका गला ख़राब हो जाता है और उन्हें लम्बा इलाज करवाना पड़ता है. इसलिए बेहतर है कि जिन चीज़ों से एलर्जी हो, उससे दूर ही रहा जाए. आज के दौर में चिकित्सक लोगों को ज़्यादा तेल और मसालों के इस्तेमाल से परहेज़ करने की सलाह दे रहे हैं, लेकिन ज़ायक़े की वजह से लोग इस नसीहत की अनदेखी करते हैं और हृदयघात जैसी स्थिति का सामना कर रहे हैं.          
 
अनस बहार चिश्ती को भी होम्योपैथिक इलाज पर ज़्यादा भरोसा है. वे कहते हैं कि इसमें दवा थोड़ा देर से अपना असर दिखाती है, लेकिन काम अच्छा करती है. मरीज़ को यह भरोसा रहता है कि उसका मर्ज़ जड़ से ख़त्म हो जाएगा. उसे साइड इफ़ेक्ट का भी डर नहीं रहता.
 
हां, इसमें उसे कुछ चीज़ों का परहेज़ ज़रूर करना पड़ता है. लेकिन ये कोई बड़ी बात नहीं है. कहते हैं कि इलाज से परहेज़ बेहतर है. इस तरह मरीज़ नुक़सान देने वाली चीज़ों से परहेज़ करना भी सीख जाता है, जो उसके लिए फ़ायदेमंद ही साबित होता है. एलोपैथी के मुक़ाबले में यह इलाज किफ़ायती भी है. वे कहते हैं कि सरकार को एलोपैथी की तर्ज़ पर गली-मुहल्लों में होम्योपैथी के भी चिकित्सालय खोलने चाहिए.    
 
 
अनस बहार चिश्ती

अमन एलोपैथिक इलाज के हिमायती हैं. उनकी दलील है कि एलोपैथिक इलाज से फ़ौरन फ़ायदा होता है. अगर किसी को बुख़ार हो जाए, तो एलोपैथिक दवा से वह फ़ौरन उतर जाता है. असहनीय दर्द होने पर एलोपैथिक दवा और इंजेक्शन से फ़ौरन राहत मिल जाती है.
 
विभिन्न प्रकार की जांचें भी इसी का हिस्सा हैं. इसमें सर्जरी भी होती है, जबकि अन्य इलाज में यह सब मुमकिन नहीं है. लेकिन जिन बीमारियां का इलाज लम्बा चलता है, उसके लिए अमन भी होम्योपैथी और आयुर्वेद को बेहतर मानते हैं. वे कहते हैं कि पथरी और गठिया जैसी बीमारियों में होम्योपैथी बेहतर साबित हुई है.      
 
     
अमन

अब्दुल माजिद नोमानी को हिकमत यानी यूनानी पर ज़्यादा भरोसा है. वे कहते हैं कि कुछ मामलों जैसे पथरी, गठिया, शुगर और वायरल आदि में होम्योपैथिक इलाज बेहतर है. फ़ौरी आराम के लिए एलोपैथिक इलाज सही रहता है, लेकिन ज़्यादातर मामलों में हिकमत ही बेहतर लगती है. वे नज़ला, ज़ुकाम, सर्दी-खांसी के लिए हर्बल चाय बनाते हैं.
 
 
इसमें लेमन ग्रास, अजवाइन और तुलसी के ताज़े पत्ते, काली मिर्च, अदरक, दालचीनी, लौंग, छोटी इलायची और शहद का इस्तमाल करते हैं. जिस्म में दर्द हो तो गिलोय के पत्तों को उबाल कर उसका पानी पी लेने से आराम मिलता है. मियादी बुख़ार में अजवाइन और मुनक़्क़ा का सेवन बहुत फ़ायदेमंद है. 
 
नहार मुंह शहद खाने से दिमाग़ तेज़ होता है और याददाश्त भी बढ़ती है. रोज़ाना रात को सोने से पहले नाभि में ज़ैतून के तेल के तीन क़तरे डालना बहुत ही फ़ायदेमंद है. इससे आंखों की रौशनी सही रहती है, बाल झड़ना बंद हो जाते हैं, जिस्म पर ख़ुश्की भी नहीं रहती और होंठ भी नहीं फटते.
 
आंखों में गुलाब जल डालने से भी आंखें ठीक रहती हैं. हाज़मे के लिए अजवाइन, लहुसन और हींग को बराबर मात्रा में सोने से पहले पानी के साथ सेवन करने से बहुत फ़ायदा होता है. काला नमक और पुदीने का इस्तेमाल करने से पेट ठीक रहता है. ज़ख़्म पर हल्दी का लेप लगाने से आराम मिलता है. बंद चोट लगने पर लोबान को देसी घी में मिलाकर सिंकाई करने से दर्द से फ़ौरन राहत मिलती है. लेकिन आज लोग ज़रा-ज़रा सी बात के लिए डॉक्टर के पास भागते हैं.     
 
 
अब्दुल माजिद नोमानी

ये कहना क़तई ग़लत नहीं है कि बहुत सी बीमारियां का इलाज हमारे अपने घर में ही मौजूद है. बस ज़रूरत है, उन्हें अपनाने की. पहले के ज़माने में लोग ज़्यादातर बीमारियों का इलाज इन देसी नुस्ख़ों से ख़ुद ही कर लिया करते थे. दादी-नानी के ये नुस्ख़े पीढ़ी-दर-पीढ़ी से चले आ रहे हैं. पिछले कुछ दशकों में समाज में बहुत बदलाव आया है. अब लोग प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों की तरफ़ लौट रहे हैं, जो एक ख़ुशनुमा बात है.
 
(लेखिका शायरा, कहानीकार व पत्रकार हैं)