मंजीत ठाकुर
होली रंग-राग का त्योहार है,आनंद-उमंग का पर्व है और ये उत्सव है प्रेम और उल्लास का. अपने सतरंगी देश के अलग-अलग हिस्सों में होली को मनाने का तरीका भी अलग-अलग है.
उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से लेकर पश्चिम तक पूरे देश में होली की अलग ही धूम रहती है. इसके साथ ही हमारे देश में इस त्योहार से जुड़ी अनोखी परंपराएं प्रचलित हैं जिन्हें सुनकर आप हैरत में पड़ जाएंगे.
भारत की विविधता इस त्योहार की स्थान-स्थान पर बदलती परंपराओं में भी नज़र आती है. मोक्ष की नगरी काशी की होली दूसरी जगहों से अलग बिलकुल अद्भुत, अकल्पनीय और बेमिसाल है.
आखिर बेमिसाल हो भी क्यों न...
मौका भोले शंकर के गौने का हो, गुलाल की फुहारों के बीच माता पार्वती विदा हो रही हों, बराती रंगों से सराबोर हों और चिता के भस्म के साथ होली शुरू हो रही हो, तो यह उत्सव अलग तो होगा ही.
फागुन शुक्ल एकादशी के दिन यानी होली से चार दिन पहले बाबा भोलेनाथ अपनी पत्नी पार्वती को ससुराल से विदा कराने के लिए गौने की बारात लेकर जाते हैं. चूंकि यह फागुन का महीना होता है लिहाजा बाबा की बारात अबीर गुलाल और ढोल नगाड़ों की गूंज के साथ निकलती है. इसलिए इसे रंगभरी एकादशी कहा जाता है.
इस दिन बाबा के भक्त उनके गाल पर पहला गुलाल मलने के साथ ही उनसे होली के हुड़दंग की इज़ाज़त भी ले लेते हैं.
बनारस की विश्वनाथ गली में मस्ती का ऐसा नज़ारा दिखता है और वहां अबीर-गुलाल इतना उड़ता है कि जमीन लाल गलीचे सी नज़र आने लगती है. फिजाओं में शंखनाद और डमरुओं की गड़गड़ाहट गूंज उठती है और रंग से सराबोर हज़ारों भक्तों की भव्यता के बीच चांदी की पालकी में बाबा की बारात निकलती है.
भोर होते ही महन्त निवास पर बाबा की बारात का उल्लास नज़र आने लगता है. वेदमन्त्रों की सस्वर ध्वनियों के बीच वर-वधू को पंचामृत स्नान कराकर उनका श्रृंगार किया जाता है. रेशमी साड़ी में सजी होती हैं माता गौरा और खादी की धोती, सुन्दर परिधान और सिर पर सेहरा बांधे भोलेनाथ की निकलती है बारात.
गौरा के घर पहुंचकर बाबा के साथ पालकी पर पार्वती विदा होती हैं तो हर तरफ हर हर महादेव के नारे गूंजने लगते हैं.
मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन गौना बारात में उनके भक्तगण रहते हैं लेकिन उनके दूसरे गण यानी भूत प्रेत औघड़ वहां नहीं जा पाते. लिहाजा दूसरे दिन भोलेनाथ बनारस के मणिकर्णिका घाट जाते हैं और इस बार स्नान कर चिता भस्म मलने.
मणिकर्णिका के श्मशान घाट पर एक तरफ जहां चिताएं जल रही थीं और ग़म के सागर में डूबे उनके परिजन होते हैं तो वहीं दूसरी तरफ चिता भस्म से खेली जा रही होली की मस्ती.
परम्पराओं और जीवन जीने की यही विविधिता शायद बनारस को पूरी दुनिया से अलग करती है. मान्यता भी है कि 'काश्याम् मरणाम् मुक्तिः' यानी काशी में मरने पर मुक्ति मिल जाती है. ये मुक्ति स्वयं भगवान शंकर यहां अपने तारक मन्त्र से देते हैं.
ऐसे मुक्ति के देवता की इस श्मशान की होली में सभी शामिल होते हैं और बनारस में इसके बाद से होली की धूम करने की इज़ाज़त भी भक्तों को मिल जाती है. और महादेव के भक्त गा उठते हैं,
खेले मसाने में होरी दिगंबर
खेल मसाने में होरी.