शगुफ्ता नेमत
इस भाग दौड़ वाली ज़िन्दगी में किसी के पास ख़ुद के लिए समय नहीं है न टहलने , न व्यायाम, न योगासन और न ही सही खान-पान के लिए, जिसके परिणामस्वरूप अधिकांशतः लोग किसी न किसी बीमारी में जकड़े हुए हैं.अपनी अपनी आस्था के अनुसार सब डॉक्टर के चक्कर काट रहे हैं.कोई एलोपैथी, कोई होम्योपैथी, कोई आयर्वेद तो कोई यूनानी.इस संबंध में सबकी अपनी- अपनी दलीलें हैं.मन की संतुष्टि के लिए तो दलीलें तो होनी ही चाहिए.
हमारी पारिवारिक परंपराएँ, व्यक्तिगत अनुभव, बीमारी की गंभीरता तथा हमारी धार्मिक आस्थाओं का भी हमारी चिकित्सा पद्धति पर गहरा असर होता है.उदाहरण स्वरूप अगर हमारे परिवार में अधिकांश लोग चिकित्सा के लिए होम्योपैथ या आयुर्वेद का सहारा लेते हैं और उसके सकारात्मक परिणाम उन्हें देखने को मिलते हैं तो परिवार के अन्य सदस्यों का भी रुझान उस ओर चला जाता है.
व्यक्तिगत अनुभव भी हमें विभिन्न चिकित्सा पद्धति को चुनने में कारगर साबित होते हैं,जिसप्रकार जिन बीमारियों में तत्काल ईलाज की आवश्यकता होती है जैसे हृदयाघात, मधुमेह, कैंसर, किडनी फ़ेलर आदि में एलोपैथी औषधि का सेवन हमारी आवश्यकता बन जाती है.हम उनसे पीछा नहीं छुड़ा सकते.कभी कभी बीमारी की गंभीरता भी हमें एलोपैथी दवाओं के सेवन के लिए विवश कर देती है और उस समय अपनी जान हेतु दूसरा कोई विकल्प हमें नज़र नहीं आता है.
यूनानी चिकित्सा पद्धति से मुस्लिम समुदाय की धार्मिक आस्थाएँ भी जुड़ी होती है.जैसे ज़ैतून, मंगरैला,शहद, खजूर आदि का सेवन लोग सुन्नत समझकर भी करते हैं.यूनानी चिकित्सा पद्धति में माहिर हकीम केवल नब्ज़ पकड़ कर बीमारी बता देते हैं.
होम्योपैथ चिकित्सा पद्धति को अपनाने वाले का यह मानना है कि इसकी दवा का कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होता,इसलिए वो इसे अपनाना पसंद करते हैं.आवाज़ द वाॅयस के लिए साक्षात्कार में एक स्कूल की उप प्रधानाचार्या हीरा इरफ़ान रक्तचाप के लिए होम्योपैथी ओषधि का सेवन करती हैं और इसके अच्छे परिणाम से वह संतुष्ट भी हैं.
हालांकि पूरी तरह यह मान लेना कि होम्योपैथी दवाओं का कुछ भी साइट इफ़ेक्ट नहीं होता गलत है.होम्योपैथी दवाएँ जिन बीमारियों के लिए तैयार की जाती हैं, उन्हीं बीमारियों के रोगाणु द्वारा निर्मित दवाओं से उनका उपचार भी किया जाता है जो कहीं न कहीं हमारे स्वास्थ्य को क्षति पहुँचाते ही हैं.हाँ यह ज़रूर है कि कुछ बीमारियाँ जैसे त्वचा संबंधित, पाचन संबंधित तथा किसी भी प्रकार की एलर्जी का होम्योपैथी औषधि दवारा ईलाज करवाना सस्ता और स्थायी होता है.
जहाँ तक बात की जाती एलोपैथी औषधि की तो तत्काल उपचार के लिए इससे बेहतर कोई विकल्प नहीं होता है.इस स्थिति में हमारे सामने दो ही रास्ते रह जाते हैं या तो हम बीमारी से जूझते रहें या फिर एलोपैथी औषधि से कुछ समय के लिए अपने को सुरक्षित कर लें,क्योंकि आपातकालीन परिस्थितियों में जैसे हृदयाघात, कैसर पीड़ित, डायलिसिस,किडनी तथा यकृत ट्रांसप्लांट आदि कई घातक बीमारियों हैं जिनके ईलाज के लिए एलोपैथी औषधि का ही सेवन करना पड़ता है.
एक्सरे, सीटी स्कैन, सर्जरी की सुविधाएं भी एलोपैथी चिकित्सा पद्धति में ही उपलब्ध होती हैं.इसलिए इनके दुष्परिणामों के बावजूद भी इन्हें पूरी तरह नकारा भी नहीं जा सकता है.उत्तर प्रदेश की एक सेवानिवृत्त वरिष्ठ अध्यापिका के ईलाज के दौरान उनके एक किडनी में संक्रमण पाया गया तो उसे तत्काल सर्जरी द्वारा निकाला गया, ऐसा करके उनकी दूसरी किडनी को संक्रमित होने से बचाया जा सका.
आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति 5000 वर्ष पुरानी है,जिसकी तरफ़ फ़िर लोग लौट रहे हैं.यह चिकित्सा पद्धति बीमारी के लक्षण से अधिक कारण पर बल देता है.उसे विभिन्न औषधीय गुणों वाली जड़ीबूटियों से दूर करता है.चूंकि आयुर्वेद पूरी तरह हमारी वनस्पति जगत पर आधारित है,इसलिए यह हमें लाभ अधिक और नुकसान न के बराबर पहुँचाते हैं.
उपचार से पहले उनके बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त कर लेना बेहद ज़रूरी होता है ताकि जड़ीबूटियों के गरम तथा ठंडे स्वभाव के बारे में भी हमें मालूम हो सके.वरना कम जानकारी के कारण कभी दवाएँ हमें लाभ के बदले हानि अधिक पहुँचा देती हैं.आयुर्वेद चिकित्सा का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह बीमारियों को जड़ से खत्म करने में मददगार साबित होता है.शारीरिक विकारों के साथ- साथ यह मन और आत्मा को भी शीतलता प्रदान करता है.
यूनानी दवाओं के संबंध में भी यही बात कही जा सकती है कि यह बीमारी के लक्षण नहीं बल्कि उसके कारण का पता लगा कर उसे जड़ से दूर करता है.इसलिए शारीरिक तथा मानसिक संतुलन को बनाए रखने में काफ़ी मुफ़ीद साबित होता है.लेखक के कई परिचित जो अपनी वृदधावस्था के कारण चल नहीं पाते थे,लेकिन एक लंबे समय तक यूनानी दवाओं के सेवन से उनमें काफ़ी सुधार देखने को मिला है.
यूनानी चिकित्सा पद्धति में शरीर के अशुद्ध रक्त को कपिंग थेरेपी (हिजामा) द्वारा भी निकाल दिया जाता है जिससे भी कई गंभीर बीमारियों से झुटकारा पाया जा सकता है. दूसरी तरफ़ कुछ लोगों का यह भी मानना है कि कभी कभी यूनानी दवाओं को तैयार करने के लिए जिन बरतनों का इस्तेमाल किया जाता है वो जंग आलूदा होते हैं.अर्थात उनमें ज़ग लगा होता है जो भी हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं.
इन सभी बातों से यह बात सामने आती है कि बीमारी से पहले स्वास्थ्य को बहुमूल्य समझा जाए और उसे बचाए रखने का भरपूर प्रयास किया जाए वरना दवाएँ चाहे जो भी हों सही अनुपात और सही जानकारी के बिना उसका कोई महत्व नहीं रह जाता है.
एक कहावत भी है
नीम हकीम ख़तरे जान
बेहतर है हम अपने स्वास्थ्य को लेकर सदैव सचेत रहें और इसको जीवन में प्राथमिक दें.संतुलित भोजन के अतिरिक्त व्यायाम, प्रातःकाल सैरतथा योगासन के लिए भी समय निकालें.अपने मन मस्तिष्क को स्वस्थ रखने के लिए सदा अपने पालनहार का स्मरण करते हुए बुराईयों से दूर रहने का प्रयास करें.
( लेखिका दिल्ली के एक स्कूल में शिक्षक हैं )
ALSO READ इस्लाम और सहिष्णुता: समाज में शांति और सद्भावना का संदेश