गुलाम रसूल देहलवी
ईद मिलाद- उन- नबी को ईद-ए-मिलाद के नाम से भी जाना जाता है. यह दिन पैगंबर मोहम्मद की जयंती और पुण्यतिथि का भी है. यह दिन इस्लामिक कैलेंडर के तीसरे महीने रबी अल-अव्वल के दौरान मनाया जाता है.
इस्लाम के विद्वानों के अनुसार, पैगंबर मोहम्मद का जन्म मक्का में लगभग 570 ईस्वी में रबी अल-अव्वल महीने के 12वें दिन हुआ था. ईद-ए-मिलाद को ख़ुशी और गम, दोनों भावों के साथ मनाया जाता है. इसी दिन 632 ईस्वी में पैगंबर की मृत्यु हो गई थी, इसलिए यह जन्म और मृत्यु दोनों की याद दिलाता है. पगैम्बर मोहम्मद इस्लाम में अंतिम पैगम्बर है.
उनके व्यक्तित्व और जीवन ने केवल मुस्लिम समुदाय ही नहीं, अन्य धर्मों पर भी विशेष छाप छोड़ी है. उन्हें धार्मिकता, करूणा और शांति के मार्ग की ओर निर्देशित किया है.मोहम्मद (उन पर शांति हो) का जन्म वर्तमान सऊदी अरब के हिजाज़ क्षेत्र में मक्का के कुरैश जनजाति के एक कुलीन परिवार में हुआ था.
वह कम उम्र में अनाथ हो गए.मोहम्मद ((उन पर शांति हो) का पालन-पोषण उनके दादा और बाद में उनके चाचा ने किया. वह अपनी ईमानदारी, भरोसेमंद और विनम्र स्वभाव के लिए जाने जाते थे, जिससे उन्हें "अल-अमीन" की उपाधि मिली.
40 साल की उम्र में, हीरा की गुफा में ध्यान करते समय, मोहम्मद को देवदूत जिब्रील से पहला रहस्योद्घाटन प्राप्त हुआ. इससे उनके नबूवत की शुरुआत हुई. अगले 23 वर्षों में, उन्हें रहस्योद्घाटन प्राप्त हुए जिन्हें पवित्र कुरान में संकलित किया गया.
उनका मिशन एकेश्वरवाद का संदेश देना और लोगों को धार्मिक जीवन जीने के लिए मार्गदर्शन करना था. पैगंबर मोहम्मद की शिक्षाओं ने विश्वास, करुणा और न्याय के महत्व पर जोर दिया.
उन्होंने अपने अनुयायियों को एक ईश्वर की इबादत करना, दूसरों के प्रति दयालु होना, गरीबों की मदद करना और न्याय के लिए प्रयास करना सिखाया. उनकी शिक्षाओं में नैतिकता, परिवार, सामुदायिक संबंध और व्यक्तियों के अधिकार सहित जीवन के सभी पहलू शामिल हैं.
एक मरतबा पैगंबर मोहम्मद के साथी (सहाबा) ने पूछा कि सच्चा मुसलमान कौन है ? इसका उत्तर देते हुए इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा : "मुसलमान वह है जिसकी ज़बान और हाथ से दूसरे लोग सुरक्षित रहते हैं." (सहीह अल-बुखारी).
पैगंबर मोहम्मद की यह हदीस हमें बताती है कि एक सच्चा मुसलमान और उसका व्यक्तित्व कैसा होना चाहिए.वास्तव में सभी इस्लामिक प्रथाओ का सार यही है. मनुष्य के हृदय और उसके कर्मों की शुद्धि करना जिसे एक महान मानवीय चरित्र का निर्माण हो सके.
इस्लिए कुरान सभी मुसलमानों को पैगंबर मोहम्मद की सुन्नत (पदचिन्हो) पर चलने की हिदायत देता है.पैगंबर मोहम्मद ने कहा: "तुमसे सबसे बेहतरीन वो लोग हैं जिनका चरित्र और अखलाक सबसे बेहतरीन हैं."
उन्होंने कहा: “क़यामत के दिन मेरे सबसे प्रिय और निकटतम वह होगा जो व्यवहार में तुममें से सबसे अच्छा होगा; और मुझसे सबसे दूर घमंडी और अहंकारी लोग होंगे.'' (तिर्मिज़ी)
पैगंबर मोहम्मद ने कहा : "अल्लाह उन लोगों पर दयालु नहीं होगा जो मानव जाति के प्रति दयालु नहीं हैं." (साहिह बुखारी)"
कुरान की आयतों के साथ ऐसी कई हदीसें भी हैं, जिन्हें दुर्भाग्य से, आज अधिकांश मुस्लिम समाज में नजरअंदाज किया जाता है. आज, हमारे कई मुस्लिम भाई हैं जो मुस्लिम समुदाय की दुर्दशा पर गहरी चिंता व्यक्त करते हैं, लेकिन जब मानवता के उत्थान के लिए निस्वार्थ सेवाएं प्रदान करने की बात आती है, तो वे पैगंबर के आदर्शों से बहुत दूर हो जाते हैं.
उन्हें इस्लाम और विज्ञान, इस्लाम और राजनीति, महिला अधिकार, इस्लाम और आतंकवाद आदि जैसे बड़े मुद्दों पर बहस करने में आनंद आता है, लेकिन जब उनके दैनिक व्यावहारिक जीवन की बात आती है; वे अनाचार से भरे हुए और शिष्टाचार से रहित साबित होते हैं.
आज मुस्लिम समुदाय शैक्षिक, वैज्ञानिक, आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन से ग्रस्त है और तब तक वे जीवन के अन्य क्षेत्रों में किसी ठोस विकास की कल्पना नहीं कर सकते, जब तक कि अपने व्यक्तित्व, अखलाक और इस्लाम द्वार स्थापित नैतिक मूल्यों को नहीं अपनाते.
ईद मिलाद- उन- नबी के अवसर पर हमें चाहिए कि हम अपनी युवा पीढ़ी को पैगंबर मोहम्मद के जीवन और उनकी शिक्षा से परिचित कराएं.माता-पिता और शिक्षकों को चहिये के वो इस अवसर का उपयोग बच्चों को दया, ईमानदारी और करुणा जैसे मूल्यों को सिखाने के लिए प्रेरित करें .
ईद मिलाद-उन-नबी का ये दिन सभी के लिए व्यक्तिगत चिंतन का है. यह स्वयं के जीवन, कार्यों और ईश्वर के साथ संबंध का मूल्यांकन करने का समय है.हमें ये सोचना चाहिए कि हम कैसे खुद को बेहतर बना सकते हैं . समाज में सकारात्मक योगदान दे सकते हैं.
यह आध्यात्मिक चिंतन और सामुदायिक सेवा का दिन है. हालाँकि इस दिन को कैसे मनाया जाए, इस पर अलग-अलग विचार हो सकते हैं. ईद मिलाद-उन-नबी का सार पैगंबर की शिक्षाओं को याद करने और उनके अनुसार जीने का प्रयास करने में निहित है.ये अपने ईमान को ताजा करने का दिन है. मानवता के लिए प्रेम, दया और न्याय जैसा नैतिक मूल्यों पर काम करने के लिए प्रेरित करता है.