वाल्मीकि रामायण पर नाटक लिखने वाले डॉ मोहम्मद अलीम कहते हैं,देश के विकास के लिए अंतरधार्मिक संवाद जरूरी

Story by  मोहम्मद अकरम | Published by  [email protected] | Date 15-07-2024
Dr. Mohammad Aleem, who wrote a play on Valmiki Ramayana, says inter-religious dialogue is necessary for the development of the country
Dr. Mohammad Aleem, who wrote a play on Valmiki Ramayana, says inter-religious dialogue is necessary for the development of the country

 

मोहम्मद अकरम / नई दिल्ली

हमारा देश विभिन्न धर्मों, जातियों और समुदायों वाला है. इसके बावजूद यहां के लोग पहले भारतीय हैं उसके बाद किसी धर्म से खुद को जोड़ते हैं. जब जब नफरत की आवाज उठाने की कोशिश होती है तो उस समय अमन पसंद लोग एक साथ आवाज बुलंद कर इसे खत्म कर देते हैं. देश में समय समय पर अंतरधार्मिक संवाद, विशेष कर मुसलमानों और हिन्दुओं के बीच खुल कर बातें भी होती रही हैं.

वाल्मीकि रामायण पर आधारित पहली बार ड्रामा पेशकश करने वाले और कई अवार्ड से सम्मानित नाटककार, उपन्यासकार एवं पटकथा लेखक डॉ मोहम्मद अलीम ने खुल कर इस विषय पर बात की.उनका मानना है कि देश में इस समय अंतरधार्मिक संवाद बेहद जरूरी है.

डॉ मोहम्मद अलीम ने कहा कि हर समाज, देश में एकरूपता कभी नहीं रही. इसका मतलब यह नहीं है कि दुनिया में जिस धर्म के लोग जहां कही हैं वे अपने धर्म को लेकर जागरूक नहीं है. संपूर्ण विश्व एक प्रकार से बहु-समाज में परिवर्तित हो गया है. हर जगह हर तरह के लोग रहते हैं.इसकी सबसे बड़ी खूबसूरती यह है कि लोग चाहे किसी भी विचार और धर्म के हों, मतभेद हो सकते हैं,लेकिन हम एक साथ रहते हैं .वर्तमान युग में इसकी सख्त जरूरत है.

वैश्विक पृष्ठभूमि पर नजर डालें तो इस समय इजरायल और फिलिस्तीन के बीच युद्ध चल रहा है. यहूदी मुसलमानों के खिलाफ हैं. परिणामस्वरूप, लड़ाई झगड़े हैं, नौकरियाँ बंद हो चुकी हैं.गरीबी और बेरोजगारी का बोलबाला है. इसलिए जरूरी है कि हम जल्द से जल्द नफरत को दूर करने की कोशिश करें.

अगर इसे अपने देश भारत के नजरिए से देखें तो यह बहुत महत्वपूर्ण है.हमारे लिए यह इस लिए भी महत्वपूर्ण  है,क्योंकि पिछले कुछ वर्षों से देश में जिस तरह का माहौल बना है,उससे मुसलमानों और हिंदुओं के बीच झगड़े बढ़ गए हैं.यह देश के अस्तित्व और सुरक्षा के लिए कदापि बेहतर नहीं.

अगर हमें देश को विकसित और वैश्विक स्तर पर कामयाब देखना है तो यह सौहार्द के जरिए ही संभव है. हम अपने दुश्मनों से मुकाबला लड़ाई झगड़े के होते हुए कर ही नहीं सकते. और मेलजोल और सौहार्द बनाने के लिए विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच संवाद ही एक रास्ता है.

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 हर स्तर पर संवाद बढ़ाने की जरूरत

डॉ अलीम आगे कहते है कि इसके लिए हमें दोनों तरफ के हर स्तर के लोगों से संवाद बढ़ाना होगा. ऐसा नहीं कि दस या बीस मुस्लिम बुद्धिजीवियों से बात कर लेने से समस्या हल हो हो जाएगी.समाज के हर वर्ग के लोगों से बातचीत कर शांति कायम करने का प्रयास किया जाना चाहिए.

कोई भी धर्म हिंसा या कत्ल नहीं सिखाता. सभी धर्म शांति, प्यार का पैगाम देता है. हम इस्लाम को देखे तो कुरान में एक जगह लिखा है कि अगर किसी एक इंसान का कत्ल बेगुनाही में हो तो गोया वह पूरी इंसानियत का कत्ल है. यहां पर ये भेदभाव नहीं किया गया कि वह हिन्दू है या मुसलमान, ईसाई है या यहूदी है. इससे पता चलता है कि इस्लाम में भी इंसानियत को कितनी अहमियत दी गई है.

जब राम को समझने की गहरी इच्छा हुई

डॉ मोहम्मद अलीम आगे कहते हैं कि रामायण पर उर्दू में “इमाम ए हिंद: राम नाटक लिखने का मेरा एक उद्देश्य यह था कि राम को आक्रामक के रूप में चित्रित किया जा रहा था. जिस तरह से हिंदुत्व के नाम पर उनके व्यक्तित्व को कमजोर किया जा रहा था, जिस तरह से उन्हें नारे के रूप में हिंसा के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था, जिसके बाद मुझे राम को समझने की गहरी इच्छा हुई.

उनका व्यक्तित्व, उनकी सोच क्या थी, उनका जीवन क्या था और संयोग से वाल्मीकि रामायण में चूँकि उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया है, इसलिए उन्हें भगवान के रूप में नहीं बल्कि एक इंसान के रूप में देखा. तो मुझे लगा कि अगर हम वाल्मीकि रामायण को आधार बना कर कोई नाटक लिखें लोगों को समझाने में ज्यादा मददगार साबित होगा. भगवान और देवता में सभी अच्छे गुण होते हैं,लेकिन अगर इंसान में अच्छे गुण हैं तो उससे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं.

मुसलमानों और हिंदुओं के बीच दूरी साहित्य के माध्यम से खत्म हो सकती है

इन सबका उद्देश्य उनके जीवन को समझना था.जब नाटक लिखा तो मेरा दूसरा उद्देश्य यह भी था कि मुसलमानों और हिंदुओं के बीच दूरी पैदा हो रही है उसे साहित्य के माध्यम से कैसे खत्म किया जाए.इसके लिए आम लोगों तक पहुंचना जरूरी है. पहुंच कैसे बढ़ाई जाए?

इसका तरीका साहित्य के माध्यम से, सांस्कृतिक कार्यक्रम जैसे नाटक, सेमिनार आयोजित करना हो सकता है. गांव जहां लोगों में ज्यादा जागरूकता नहीं है,व्यक्तिगत संपर्क करें. सभाएँ और जुलूस आयोजित करके ऐसे भाषण देना जिससे लोगों के बीच मिलने-जुलने का सिलसिला बढ़े और एक-दूसरे की राय को महत्व देते हुए एक-दूसरे तक संदेश पहुँचाएं.

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कैसे दूर की जाए गलतफहमियां?

डॉ अलीम इस बात पर जोर देते हैं कि दुनिया में धर्मों के बीच जिहाद के नाम पर भी कई गलतफहमियां हैं. इस्लाम में जिहाद पवित्र चीज़ है. इस बारे में कहा गया है कि जिहाद उस वक्त कर सकते हैं जब किसी के खिलाफ अत्याचार हो.क्रूरता के खिलाफ लड़ सकते हैं. इस तरह की गलत फहमियाँ तभी खत्म हो सकती हैं जब हम एक-दूसरे से संवाद करें और संवाद करने का सबसे अच्छा तरीका इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का उपयोग कर सकते हैं.

साहित्य का उपयोग कर सकते हैं. अखबारों में लेख लिखे जा सकते हैं. इसके अलावा छोटे-छोटे वीडियो बनाकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट कर सकते हैं. इससे लोगों को एक-दूसरे की राय समझने में मदद मिलेगी.जैसे कि रामायण लिखने से पहले मुझे हिन्दू धर्म के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी.

किताबें पढ़ने के बाद हिंदू धर्म के बारे में मेरी राय बहुत सकारात्मक हो गई., जब मैं बाबा नीम करौली पर शोध कर रहा था, मैंने छह महीने तक शोध किया, तब मुझे लगा कि वह ऐसे व्यक्तित्व हैं जो केवल प्रेम का संदेश देते हैं.उनके बारे में लोग कम जानते हैं. इसका प्रसार करना अधिक महत्वपूर्ण है.

खुशहाली केवल प्रेम और सौहार्द में

डॉ मोहम्मद अलीम इस बात को मानते है कि प्रधानमंत्री कहते हैं कि हमें देश को 2045तक अमेरिका और चीन से आगे ले जाना है. अगर हम घर के झगड़े में ही फंसे रहेंगे तो देश विकसित कैसे होगा? जरूरी है संवाद, जिससे समाज और देश का विकास हो.

सबसे बड़ा धर्म मानवता है. हम इंसान एक दूसरे का सम्मान नहीं करेंगे तो कौन करेगा? राजनीतिक दल आज रहेंगे कल नहीं. सत्ता आती जाती है. आज किसी का उत्थान है तो कल किसी का पतन.यह चलता रहेगा. लेकिन मानव जीवन की बका और खुशहाली केवल प्रेम और सौहार्द में छुपी है. जो लोग इसे नुकसान पहुंचाने की कोशिश करें इसका सख्ती से मुकाबला कीजिए. राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखिए.