मोहम्मद अकरम/ नई दिल्ली
दिल्ली की बड़ी-बड़ी ऐतिहासिक इमारतों के अलावा यहां के व्यंजन भी पूरी दुनिया में मशहूर हैं. जब भी लोग इस शहर में पहुंचते हैं तो यहां के लजीज व्यंजनों का स्वाद चखने के लिए आतुर रहते हैं. पुरानी दिल्ली का मुगलकालीन खाना कबाब, बिरयानी, चिकन चंगेजी, निहारी आदी विश्व प्रसिद्ध है.
दरअसल, निहारी अरबी भाषा नेहार से निकला है जिसका अर्थ होता है सुबह सवेरे खाना. इसकी शुरुआत 18वीं सदी में पुरानी दिल्ली के दरियागंज और नवाबों के शहर लखनऊ में हुआ जहां मुस्लिम नवाब सुबह सवेरे निहारी खाते थे, इस वक्त निहारी उपमहाद्वीप के अलावा अमेरिका, कनाडा, यूरोप में बड़े शौक़ से खाई जाती है.
हम आपको दिल्ली के एक ऐसी ही मशहूर निहारी दुकान से रूबरू करा रहे हैं जिसकी एक अलग पहचान इस वक्त सिर्फ देश वासियों के दिल में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में है. यहां शाम छह बजे से देर रात दस बजे तक पाव रखने के लिए जगह नहीं होती है, लोगों को कई कई घंटे इंतजार करना पड़ते हैं.
हम बात कर रहे हैं जावेद निहारी की. जो दिल्ली के जामिया नगर और शाहीन बाग़ इलाके में मौजूद है. इस दुकान ने कम समय में अपने लजीज पकवान के कारण लोगों के दिलों में जगह बना ली है. जिन लोगों को निहारी खाने की ललक पैदा होती है वह सीधे जावेद निहारी के यहां दोस्तों के साथ पहुंच जाते हैं.
कैसे हुई इसकी शुरुआत
दिल्ली के शाहीन बाग़ में मौजूद जावेद निहारी के मालिक आमिर खान जो बीसीए तक शिक्षित है, ने बताया कि जावेद निहारी की शुरुआत उनके नाना मिर्जा अमीर बेग ने साल 1990 से पहले की थी. उनके तीन बेटे वजीर बेग (मरहूम), महताब बेग और सबसे छोटे का नाम जावेद बेग है जिसके नाम पर जावेद निहारी नाम रखा गया है.
जाकिर नगर में मौजूद जावेद निहारी के मालिक महताब बेग ने बताया कि इसकी शुरुआत मेरे पिता अमीर बेग ने की थी, उस समय यह ज्यादा चलन में नहीं था, लेकिन वक्त गुजरने के साथ हमने अपने व्यंजंन में स्वाद लाने की कोशिश की जिसका नतीजा है कि आज जावेद निहारी एक ब्रैंड बन गया है.
शाहीन बाग़ में 2 अप्रैल 2022 को हुई शुरुआत
आमिर खान ने बताया कि शाहीन बाग़ में जावेद निहारी की शुरुआत 2 अप्रैल 2022 को हुई, जहां उम्मीद से ज्यादा लोग पहुंच रहे हैं. उनके साथ उनके छोटे भाई भी इस काम में मदद करते हैं.
आमिर खान ने बताया कि प्रतिदिन ये दुकान दोपहर दो बजे खुलती है और शाम 6 बजे से रात 10 बजे तक हमें फुर्सत नहीं मिलती हैं. लोग दूर-दूर से खाने पहुंचते हैं, भीड़ को देखते हुए ग्राउंड और प्रथम तल पर काम को बांट दिया गया है. इसके बावजूद लोगों को घंटों इंतजार करना पड़ता है.
प्रतिदिन हजार से ज्यादा लोग पहुंचते हैं
जब सवाल किया गया कि एक दिन में कितनी किलो गोश्त की खपत होती है, तो इस बारे में वे कहते हैं कि 100 किलो ज्यादा बड़े का गोश्त, 250 किलो आटा का इस्तेमाल होता है. इसमें मसाले के तौर पर हरी इलायची, कबाब चीनी ,पिप्पली ,दगड़ का फूल, काला जीरा, शाही जीरा, सूखे गंगाजल, पान की जड़ ,खस की जड़, दालचीनी ,काली ,सूखी गुलाब की पंखुड़ियां, गुलाब की पंखुड़ियां समेत 30 तरह के मसालों का उपयोग किया जाता है. प्रतिदिन एक हजार से ज्यादा लोग यहां दूर-दूर से पहुंचते हैं.
कुछ खास मसाले हैं जिसे लोगों को नहीं बताते
जब इस बारे में पूछा गया कि आप का कौन सा मसाला स्पेशल है जिसके कारण निहारी लजीज हो जाती है और लोग इसकी ओर दौड़ पड़ते हैं तो इस बारे में उन्होंने कहा कि हमारे कुछ खास मसाले हैं वो हम सीक्रेट रखते हैं. हमारी कोशिश होती है कि लोगों को पसंदीदा और लजीज समान दें, यहीं कारण है कि लोग हमारे ऊपर भरोसा करते हैं और आज खाने-पीने के मैदान में हमारा एक बड़ा नाम है.
ऑनलाइन ऑर्डर्स भी आते हैं
ऑनलाइन करीब सौ से ज्यादा ऑर्डर आते हैं. आमिर के बक़ौल उनके यहां इस काम में 45 लोग काम करते हैं. जावेद निहारी के यहां मटन रान, मटन कबाब, मटन बड़ा, मटन निहारी, फिश टिक्का, चिकन लॉलीपॉप, चिकन फ्राई मिलता है.
कैसे पहुंचे यहां?
अगर आप भी निहारी का मज़ा लेना चाहते हैं तो साल में किसी भी दिन दोस्तों के साथ पहुंच सकते हैं. दिल्ली के किसी कोने या नोएडा में रहते हैं तो यहां तक आने के लिए बस और मेट्रो या आप अपनी निजी गाड़ी से आ सकते हैं. मेट्रो से आने के लिए कालिंदी कुंज मेट्रो या शाहीन बाग़ मेट्रो उतर कर, कुछ देर पैदल चलने के बाद शाहीन बाग़ बीस फुट्टा पर पहुंच सकते हैं जहां दूर से ही आपको निहारी की खुशबु खींच लेगी.