इल्म की दुनियाः अल-ख़्वारिज़्मी थे फारस के गणितज्ञ जिनके बीजगणित को यूरोपीय मानते थे जादू

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 11-04-2021
महान फारसी गणितज्ञ अल-ख़्वारिज़्मी
महान फारसी गणितज्ञ अल-ख़्वारिज़्मी

 

मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली

यह लेख अगर आप पढ़ पा रहे हैं तो इसके पीछे कंप्यूटर एलगोरिद्म काम करता है. इसी तरह फेसबुक या ट्वीटर पर आपके टाइम लाइन पर कुछ लोगों को पोस्ट दिखते हैं या गूगल पर किसी चीज को सर्च करने पर उसी के विज्ञापन आपको दिखने लगते हैं तो इसके पीछे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और प्रकारांतर से एलगोरिद्म ही काम करता है.

वैसे, अगर आप विज्ञान के नहीं मानविकी के छात्र रहे हों तो भी बीजगणित से आपकी मुठभेड़ कक्षा दसवीं तक जरूर हुई होगी. आप अंग्रेजी माध्यम के छात्र रहे होंगे तो हिंदी के बीजगणित को आप सीधे न समझे होंगे और अल-जेबरा कहने पर आपकी समझ में आया होगा कि मैं गणित की किस शाखा के बारे में कह रहा हूं.

आप सोच रहे होंगे कि आखिर यहां इस लेख में एल्गोरिद्म और बीजगणित की चर्चा की क्या जरूरत है. असल में, इसके साथ हम उन अंको की भी चर्चा करेंगे जिसके सहारे हम और आप गणितीय गणना कर पाते हैं. वही, 1, 2, 3, 4, 5 वगैरह. और वह दशमलव प्रणाली, जिसने रोमनों को अंको के जटिल जाल से निकालकर आज की गणना प्रणाली पेश की.

इन सबका श्रेय जाता है अल-ख़्वारिज़्मी को, और इन्साइक्लोपेडिया ब्रिटानिका के मुताबिक, जिनका पूरा नाम था मोहम्मद इब्न मूसा अल-ख़्वारिज़्मी.

मोहम्मद इब्न मूसा अल-ख़्वारिज़मी एक फ़ारसी गणितज्ञ, खगोलशास्त्री, ज्योतिषी, भूगोलवेत्ता और विद्वान थे, जो बग़दाद के बैतुल हिक्मत (हाउस ऑफ़ विज़डम) से जुड़े थे. इन्साइक्लोपेडिया ब्रिटानिका के मुताबिक, अल-ख़्वारिज़्मी का जन्म 780 ईस्वी में हुआ था और जिनका निधन 850 ईस्वी में हो गया. उन्होंने यूरोप को हिंदू-अरब अंकों से परिचित करवाया था और उन्हें अल-जेबरा का ज्ञान भी दिया था. यह एल्गोरिद्म उनके नाम से ही निकला लैटिन शब्दावली है.

नवीं सदी में बैतुल हिक्मत वैज्ञानिक अनुसंधान और शिक्षा का एक प्रसिद्ध केंद्र था और इस्लामिक स्वर्ण युग के आला दिमाग यहां इकट्ठा होकर ज्ञान की रोशनी फैलाते थे.

अल-ख़्वारिज़मी उस दौर के उन पढ़े-लिखे लोगों में शामिल थे जिन्हें, ख़लीफ़ा हारून रशीद के बेटे ख़लीफ़ा अल-मामून के मार्गदर्शन में बैतुल हिक्मत में काम करने का मौक़ा मिला था.

अल-ख़्वारिज़्मी ने गणित की जटिलतम समस्याओं को सुलझाने के लिए अरबी भाषा में किताब लिखी थी जिसका नाम था ‘अल-किताब अल-मुख़्तसर फ़ी हिसाब अल-जबर वा’ल-मुक़ाबला’, जिसे 12वीं सदी में लैटिन में अनुवाद किया गया और जाहिर है अल-जेबरा वहीं से निकला है.

अल-ख़्वारिज़्मी के नाम से ही पता चलता है कि वह मध्य एशिया के आज के देश उज़बेकिस्तान के ख्वारिज़्म सूबे के थे. वह नौवीं सदी की शुरुआत में बग़दाद आ गए थे. उस समय, बग़दाद शक्तिशाली अब्बासी ख़लीफ़ा का शासन था और उन दिनों बगदाद एक विशाल इस्लामी साम्राज्य की राजधानी था.

अल-ख़्वारिज़्मी ख़लीफ़ा अल-मामून के लिए काम करते थे, जो खुद भी यूनानी किताबों का अरबी भाषा में अनुवाद करवाने के प्रशंसक थे, और इतिहास में वैज्ञानिक अनुसंधान और इसके महत्व को समझने वाले अग्रणी व्यक्तियों में से एक थे. बैतुल-हिकमत में खासतौर पर यूनान के वैज्ञानिक और दार्शनिक लेखों का अनुवाद उपलब्ध कराया जाता था. पर वहां मौलिक अनुसंधान भी होता था.

बहरहाल, अल-जबरा किताब इस्लामी कानूनों के हिसाब से ज्यामितीय आकृतियों के क्षेत्रफल और उनके आयतन की माप करना बताता है, साथ ही जायदाद और विरासत से जुड़ी समस्याएं हल करने के तरीके भी बताता है. इस किताब में बेबीलोन के गणित के तरीकों, हिब्रू और हिंदू पद्धतियों का ज्ञान स्पष्ट दिखता है.

नौवीं सदी के दूसरे दशक में ख़लीफ़ा अल-मामून ने खगोलीय अनुसंधान के लिए बग़दाद में वेधशालाएं (ऑब्ज़र्वेटरी) बनवाई. इसके एक या दो साल बाद, यूनानी खगोल विज्ञान के आलोचनात्मक अध्ययन की शुरूआत हुई. इस दौरान अल-ख़्वारिज़मी की निगरानी में कई शोधकर्ताओं ने मिल कर सूर्य और चंद्रमा पर कई अवलोकन किए.

इस दौरान, एक ही स्थान पर स्थित 22सितारों के अक्षांश और देशांतर की तालिका बनाई गई थी. इस बीच अल-मामून ने माउंट कासियन की ढलानों पर एक और वेधशाला के निर्माण का आदेश दिया,जहां से दमिश्क़ शहर साफ़ दिखाई देता था. इस वेधशाला के निर्माण का उद्देश्य इस संबंध में अधिक डाटा एकत्र करना था.

इस काम के पूरा होने पर अल-ख़्वारिज़मी और उनके सहयोगी कई सितारों के स्थान से संबंधित डाटा की तालिका बना चुके थे. एक और शानदार प्रोजेक्ट जो इन स्कॉलर्स द्वारा शुरू किया गया वो और भी दूरदर्शी था. 

यूनानी खगोलशास्त्री टोलेमी ने अपनी मशहूर किताब 'द जियोग्राफी' में दुनिया के भूगोल से संबंधित जो कुछ भी मौजूद था हर चीज को दर्ज किया था. ऐसा कहा जाता है कि उनके काम के अरबी अनुवाद ने ही भूगोल में इस्लामी दुनिया की रुचि पैदा की.

अल-मामून ने अपने विद्वानों को दुनिया का एक नया नक्शा बनाने का निर्देश दिया क्योंकि टॉलेमी के नक्शे में मक्का या राजधानी बग़दाद जैसे प्रमुख इस्लामिक शहर शामिल नहीं थे. टॉलेमी के दौर में मक्का शहर का इतना महत्व नहीं था और बग़दाद उस समय अस्तित्व में ही नहीं आया था.

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अल-ख़्वारिज़मी और उनके सहयोगियों ने इन दोनों शहरों के बीच की दूरी को मापने का फ़ैसला किया. इस संबंध में उन्होंने चंद्र ग्रहण के दौरान पैमाइश के और आंकड़ों को जमा किया.उस प्राचीन काल में उन्होंने इन दोनों शहरों के बीच की जो दूरी निकाली, वो वर्तमान समय के आंकड़ों की तुलना में दो प्रतिशत से भी कम ग़लत थी. इसके बाद उन्होंने अन्य महत्वपूर्ण स्थानों की, उन सीमाओं की फिर से जांच करने की कोशिश की, जिनसे इन स्थानों के केंद्र बिंदु का स्थान पता चल सके.

उदाहरण के लिए, उनके नक्शे में अटलांटिक महासागर और हिंद महासागर को खुले जल मार्ग के रूप में दर्शाया गया है न कि ज़मीन से घिरे हुए समंदर, जैसा कि टोनॉमी ने अपनी किताब में बताया है.

अल-ख़्वारिज़मी की किताब 'सूरत अल-अर्ज़' यानी (दुनिया का नक़्शा) की वजह से उन्हें ‘इस्लाम के पहले भूगोलवेत्ता’होने का सम्मान प्राप्त है. यह किताब 833ईस्वी में पूरी हुई थी.इस साल ख़लीफ़ा अल-मामून की मृत्यु हो गई पर अल-ख़्वारिज़्मी ने खलीफा का दिया काम पूरा किया और अपनी किताब में पांच सौ शहरों के अक्षांश और देशांतर की तालिका बनाई.

इस किताब में, विभिन्न स्थानों को कस्बों, नदियों, पहाड़ों, समुद्रों और द्वीपों में विभाजित किया गया है. हर टेबल में, इन स्थानों को दक्षिण से उत्तर की ओर व्यवस्थित किया गया था.

पर अल-ख़्वारिज़्मी की गणित की उपलब्धियां इतनी बड़ी हैं कि उसके सामने उनकी दीगर उपलब्धियां छोटी मालूम होती है. संख्याओं और अंकों पर लिखे उनके शोध पत्रों के कारण ही मुस्लिम दुनिया में दशमलव संख्या प्रणाली  शुरू की गई थी.

गणित के उपविषय में उनकी किताब 'अल-जुम वल-तफ्रीक बिल-हिंद' का बहुत महत्व है. यह किताब 825ईस्वी के आसपास लिखी गई थी. लेकिन इसका कोई प्रामाणिक अरबी अनुवाद मौजूद नहीं है और किताब का शीर्षक भी केवल एक अनुमान है.

इस किताब में गणित से संबंधित कई चीज़ें बताई गई हैं और यहीं से एल्गोरिथम की शब्दावली अस्तित्व में आई जो वास्तव में लैटिन भाषा में अल-ख़्वारिज़्मी बोलने का तरीका है.

वास्तव में,अल-ख़्वारिज़मी के इस काम और इससे पहले किये गए कामों के जो अनुवाद किये गए. इन अनुवादों की यूरोप में आलोचना की गई. यह वो समय था जब यूरोप एक अंधेरे दौर से गुज़र रहा था. यही वजह थी कि ख़्वारिज़मी के काम को 'ख़तरनाक' या 'जादुई' माना जाता था.

हालांकि, अल-ख़्वारिज़्मी को आमतौर पर बीजगणित का जनक मान लिया जाता है लेकिन कुछ जानकारों का कहना है कि अल-ख़्वारिज़मी से बहुत पहले महान यूनानी गणितज्ञ डायफेंट और हिंदू गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त भी इस पर काम कर चुके थे.

फिर भी, अल-ख़्वारिज़्मी ने बीजगणित को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भूगोल के क्षेत्र में उनका योगदान बेहद महत्वपूर्ण रहा है.

 

(यह लेख इल्म की दुनिया सीरीज का हिस्सा है)

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