योगेश जगताप/ सातारा
महाराष्ट्र के सातारा शहर में गणपति का विशेष महत्व है. यहाँ के लोग सिर्फ गणेशोत्सव के दौरान ही नहीं, पूरे साल गणपति की पूजा-अर्चना के लिए जाने जाते हैं. सदाशिव पेठ के पंचमुखी गणपति, शनिवार पेठ के फुटका तालाव गणपति, सातारा शहर के ग्रामदेवता माने जाने वाले गुरुवार पेठ के ढोल्या गणपति, शुक्रवार पेठ के बदामी विहीर गणपति, चिमनपुरा पेठ के गारेचा गणपति और कुरणेश्वर के खिंडीतला गणपति की सातारकर बड़ी श्रद्धा से पूजा करते हैं.
सातारा, जिसे स्वराज्य की राजधानी के रूप में भी जाना जाता है, शिवाजी महाराज के कुछ समय तक यहाँ निवास करने और उनके वंश की गद्दी यहाँ होने के कारण यहां के मंदिरों में हमेशा श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है.
सातारा का गणेशोत्सव भी कई खासियतों के चलते आकर्षण का केंद्र होता है. यहाँ के कई गणेश मंडलों का 100 साल से भी ज्यादा पुराना इतिहास है. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सैनिकों की मदद हो या सामाजिक सौहार्द बनाए रखने के प्रयास, सातारा के मंडलों ने हमेशा अपनी विशेष पहचान बनाई है.
पुणे की तरह ही सातारा में भी मानाचे यानि सन्माननीय पांच गणपति हैं. ये सभी गणेशोत्सव मंडल पहले कुश्ती की तालिमें थीं. यहाँ आने वाले पहलवानों ने लोकमान्य तिलक की प्रेरणा से लोगों को एकत्र कर गणेशोत्सव मंडलों की स्थापना की. 1907 में स्थापित 'आजाद हिंद गणेशोत्सव मंडल' इनमें से एक है, जिसका 118 वर्षों का गौरवशाली इतिहास है.
सन्मान के अनुसार, सातारा में शनिवार पेठ का 'जयहिंद गणेशोत्सव मंडल' पहले स्थान पर आता है. सोमवार पेठ का 'आजाद हिंद मंडल' दूसरे, गुरुवार तालिम मंडल तीसरे, बुधवार तालिम मंडल चौथे और जय जवान मंडल पांचवें स्थान पर माने जाते हैं. जिला प्रशासन में भी इसी प्रकार से इन मंडलों की दर्जी है, ऐसा विभिन्न मंडलों के कार्यकर्ता बताते हैं.
इसके अलावा 'शंकर पार्वती मंडल' भी विशेष मान्यता रखता है. 'शंकर' की आराधना करने वाले तेली और गवली समाज के लोगों ने गणेशोत्सव मंडलों की स्थापना में अहम भूमिका निभाई है, ऐसा 'आजाद हिंद मंडल' के विशाल निगडकर बताते हैं.
'आजाद हिंद गणेशोत्सव मंडल' सातारा का सबसे पुराना मंडल है. इसकी स्थापना 1907 में माजगांवकर वाड़े में हुई थी. उस वाड़े के दामोदर कृष्णराव माजगांवकर का बड़ा नाम था. मंडल के कार्यकर्ताओं के अनुसार, मनमोहन सिंह के कार्यकाल में उनकी आर्थिक सलाहकार समिति में भी माजगांवकर ने काम किया था.
शुरुआत के 8-9 वर्षों तक माजगांवकर वाड़े में गणेशोत्सव मनाया जाता था, लेकिन 1916 से इसे पास ही स्थित दत्त मंदिर में मनाया जाने लगा और यह परंपरा आज भी जारी है. गणेशोत्सव शुरू होने के करीब 35 साल बाद, सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद सेना से प्रेरित होकर मंडल का नाम 'आजाद हिंद मंडल' रखा गया. उससे पहले, इस मंडल को 'सोमवार पेठ के दत्त मंदिर का गणपति' के नाम से जाना जाता था.
हिंदू-मुस्लिम एकता की अनूठी परंपरा
सन्माननीय दूसरा गणपति माने जाने वाले आजाद हिंद गणेशोत्सव मंडल में हिंदू-मुस्लिम एकता की अनोखी परंपरा देखने को मिलती है. मंडल के आसपास सभी जाति और धर्म के लोग रहते हैं, जिनमें मुस्लिम समुदाय का हिस्सा शुरू से ही 20-25 फीसद रहा है.
मंडल के अध्यक्ष पद को कई सालों तक मुस्लिम समुदाय के लोग संभालते आए हैं, जिनमें सुरज मुल्ला और शकील बागवान शामिल हैं. वर्तमान में मंडल के खजांची शाहिद शेख हैं. इस साल गणेशोत्सव मंडल के 80-90 कार्यकर्ताओं में से 20-25 कार्यकर्ता और उनके परिवार मुस्लिम समुदाय से हैं.
ये कार्यकर्ता अपनी क्षमता के अनुसार मंडल को स्वेच्छा से 2,000 से लेकर 10,000 रुपये तक का योगदान देते हैं. यहां पर चौथी-पांचवी पीढ़ी की हिंदू-मुस्लिम एकता देखने को मिलती है. मंडल में हज यात्रा से लौटे लोगों का सम्मान किया जाता है. सिर्फ गणेशोत्सव में ही नहीं, पूरे साल के अन्य त्योहारों में भी सभी धर्मों के लोग मिलजुल कर काम करते हैं.
मंडल द्वारा आयोजित रक्तदान शिविर में भी मुस्लिम समुदाय सक्रिय रूप से हिस्सा लेता है. कुछ साल पहले, कामगार नेता बाबा आढाव ने यहां कुष्ठरोगी समुदाय के लोगों के लिए एक स्नेहभोज आयोजित किया था, जो आज भी कार्यकर्ताओं के मन में ताजा है.
2005 में किसी विवाद के कारण संभाजी ब्रिगेड नामक संस्थाने गणेशोत्सव मंडल की मूर्ति पर आपत्ति जताई थी. उस समय सुरज मुल्ला मंडल के अध्यक्ष थे. मामला तनावपूर्ण हो गया . पुलिस के पास पहुंचा. तत्कालीन पुलिस अधिकारी विश्वास पांढरे की उपस्थिति में संभाजी ब्रिगेड के पदाधिकारियों और सुरज मुल्ला के बीच बातचीत हुई.
मंडल के कार्यकर्ताओं ने स्पष्ट किया कि मुल्ला जो भी निर्णय लेंगे, वह उन्हें स्वीकार्य होगा. मुल्ला जी ने जो समझदारी दिखाई, उससे ब्रिगेड के लोग भी संतुष्ट हो गए. पुलिस प्रशासन ने आज़ाद हिंद मंडल को उसी वर्ष "गणराया अवॉर्ड" से सम्मानित किया.
सुरज मुल्ला मंडल से अपने संबंध के बारे में बताते हुए कहते हैं, "हमारी चौथी पीढ़ी मंडल की सेवा में है. बचपन में साथ खेलने वाले बच्चे जब मंडल की जिम्मेदारी उठाते हैं, तो वह अनुभव खास होता है.
गणेशोत्सव के दौरान हम रात को दो बजे तक और बाकी दिनों में रात 12 बजे तक यहाँ सेवा देते है. साथ बैठकर बातें करते हैं. देश और राज्य में चाहे जितनी भी धार्मिक कटुता हो, हमारे इलाके में ऐसा कुछ नहीं होता. मंडल ने हमारे संबंधों को और मजबूत किया है. हमें उम्मीद है कि हमारी आने वाली पीढ़ी भी इसी भावना से जीवन बिताएगी."
मंडल के पुराने और नए कार्यकर्ताओं में रामभाऊ गवळी, धोंडीराम शिंदे, हकीम मास्तर, सिकंदर बागवान, शकील बागवान, शिवाजी बागल, दयाराम खेडकर, अवधूत किर्वे, प्रल्हाद निगडकर, सागर माने, चंद्रकांत खर्षिकर, सुरज मुल्ला और विशाल निगडकर का विशेष उल्लेख किया जाता है.
गणेश आरती के लिए यहां बड़ी संख्या में महिलाएं इकट्ठा होती हैं, जिनमें मुस्लिम बहनें भी शामिल होती हैं. हर साल मंडल में गणेश की मूर्ति अलग-अलग रूप में बनाई जाती है. पिछले 12 वर्षों से यह मूर्ति वसई के मूर्तिकार कृणाल पाटील द्वारा तैयार की जाती है.
साहसी खेलों की शुरुआत करने वाला यह मंडल, दांडपट्टा (परंपरागत मराठी युद्ध कला) में कुशल योद्धाओं को तैयार करने के लिए भी जाना जाता है. गणेश विसर्जन के दौरान नेताजी सुभाष चंद्र बोस, छत्रपति शिवाजी महाराज, और लोकमान्य तिलक के चित्र गणेश मूर्ति के पास या ट्रैक्टर पर अवश्य सजाए जाते हैं.
सभी जाति और धर्म के कार्यकर्ताओं ने इस मंडल को मजबूत किया है. इसी वजह से यह मंडल 118 वर्षों से अपनी गौरवशाली परंपरा को कायम रख सका है. बिना किसी राजनीतिक नेता या पार्टी के समर्थन और हस्तक्षेप के, यह मंडल अपने आप में एक अनुकरणीय उदाहरण है.
मंडल के आसपास खेलते हुए बच्चे, दुकान की सीढ़ियों पर बैठे बुजुर्ग, और आते-जाते गणपति को प्रणाम करने वाली महिलाएं और लड़कियां, यह सब मिलकर गणेशोत्सव के दौरान एक सौहार्दपूर्ण माहौल बनाते हैं। अगर आप सातारा में हैं, तो इस मंडल को भेट देना बिल्कुल न भूलें.