हरजिंदर
इक्कसवी सदी के दो दशक बाद हम एक जटिल दौर में पहुंच चुके हैं.हमारे आस-पास इतनी सुविधाएं हैं जितनी पहले कभी नहीं थीं.खासकर सूचना तकनीक ने संवाद और संचार को बहुत आसान और सहज बना दिया है.लेकिन इसी से परेशानियां भी उपज रही हैं.कहीं हम एक दूसरे के नजदीक आए हैं तो कहीं एक दूसरे से दूर हो जाने के दबाव भी समाज में बहुत बढ़ रहे हैं.
एक दूसरे समुदाय के लिए नफरत फैलाने का बुरा समय भी इन्हीं सब के बीच पनपा है.दुनिया भर में अल्पसंख्यक समाजों को जिस तरह से निशाना बनाया जा रहा है उसके चलते यह जरूरी हो गया है कि उन सार्थक सूचनाओं और संवाद को फिर से खड़ा किया जाए जिनसे ये कटुता भरे दुर्दिन दूर हों.
इन सब ने मीडिया की चुनौतियों को काफी बदल दिया है.सच को सामने लाना हमेशा ही एक बड़ी चुनौती रही है, लेकिन इन दिनों यह चुनौती कुछ अलग तरह की है.इसके लिए एक बड़ी संवेदनशीलता की जरूरत है.
नफरत का पर्दाफाश करने के चक्कर में उन लोगों से उलझने का खतरा तो है जिनके उसमें निहित स्वार्थ हैं.लेकिन दूसरी तरफ इसमें डर यह भी रहता है कि कहीं इस कोशिश से कोई जवाबी नफरत न पैदा हो.यह संवेदनशीलता आवाज द वाॅयस में अच्छी तरह देखी जा सकती है.
पिछले पूरे चार साल में इस पोर्टल ने जिस तरह से देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय के सकारात्मक पहलुओं को आगे लाने की कोशिश की उससे मुख्यधारा का मीडिया भी चाहे तो बहुत कुछ सीख सकता है.अल्पसंख्यक समुदाय के सकारात्मक पहलुओं को इस तरह से आगे लाना कि उसका बाकी समुदायों से जुड़ाव पैदा हो, यह बहुत सरल काम नहीं है.
आवाज द वाॅयस जिस तरह से इस चुनौती का मुकाबला कर रहा है उसका अहसास बहुत सुखद है.इस पोर्टल के लिए निरंतर लेखन के मेरे अनुभव भी काफी सुखद रहे हैं.कईं मामलों में तो दूसरे बड़े मीडिया संस्थानों में मेरे लेखन के मुकाबले ज्यादा सुखद.
इस लेखन को लेकर जब कईं लोगों के फोन आने लगे तो यह लगा कि इसका असर हो रहा है.ऐसे लोगों के भी फोन आए जिन्हें मैं पहले नहीं जानता था और मुझे अभी भी नहीं पता कि उन्हें मेरा फोन नंबर कहां से मिला.
इसमें मुझसे असहमत होने वालों के फोन ही ज्यादा थे.दिल्ली के एक मुस्लिम नेता का तो मैं इसलिए शुक्रगुजार रहूंगा कि उन्होंने एक बार यह बताया कि मैंने अपने लेख में एक जरूरी तथ्य को नजरअंदाज कर दिया है.उन्होंने जिस बात की ओर मेरा ध्यान खींचा वह मुझे सही भी लगी.
इन सबसे एक बात और साफ हुई कि आवाज द वाॅयस वहां पहुंच रहा है जहां इसे पहुंचना चाहिए था.एक और चीज जिसने मुझे आवाज़ द वाॅयस की ओर आकर्षित किया वह यह थी कि इस पोर्टल ने अपने आप को अल्पसंख्यकों की राजनीति और धार्मिक मामलों तक ही सीमित नहीं रखा.
उसमें देश दुनिया के मसलों और संस्कृति वगैरह को जिस तरह से कवर किया जाता है वह इसे एक कंपलीट मीडिया पैकेज बनाता है.यही वजह है कि चार साल का यह सफर भविष्य के लिए काफी उम्मीदें बंधाता है.
चार साल पूरे करने के साथ ही इस धुंध भरे माहौल में भविष्य की उम्मीदें बंधाने के लिए भी आवाज द वाॅयस के सभी सहयोगियों को बधाई और शुभकामनाएं!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)