क्या मुंबई में इस बार मुस्लिम मतदाताओं का रुख बदलेगा?

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 19-05-2024
Will attitude of Muslim voters change this time in Mumbai?
Will attitude of Muslim voters change this time in Mumbai?

 

दीपा कदम / मुंबई

मुंबई का राजनीतिक परिदृश्य यहां की जनता के विविध हितों और जुड़ावों के साथ जटिल रूप से बुना हुआ है. इसकी चुनावी गतिशीलता को आकार देने वाले प्रमुख घटकों में, मुस्लिम समुदाय एक महत्वपूर्ण ताकत के रूप में उभरा है. हाल के बदलावों और गठबंधनों की जांच करने पर, यह स्पष्ट हो जाता है कि मुस्लिम मतदाताओं का झुकाव शहर के चुनावी नतीजों पर काफी प्रभाव डालता है.

2019 के लोकसभा चुनाव में वंचित बहुजन अघाड़ी और ‘एमआईएम’ गठबंधन राज्य में भाजपा विरोधी गठबंधन के वोटों में बड़ा विभाजन पैदा करने में सफल रहा था. लेकिन मुंबई की सभी सीटों पर इस गठबंधन का कोई खास असर नहीं दिखा.

औरंगाबाद (छत्रपति संभाजीनगर) की सीट जीतने के अलावा गठबंधन को कोई स्कोर नहीं मिला. मुंबई शहर और उपनगरों में मुस्लिम समुदाय की आबादी लगभग 20 से 22 प्रतिशत है. पूरी तरह से मुस्लिम केंद्रित राजनीति वाली ‘एमआईएम’ को मुंबई में ज्यादा वोट नहीं मिले.

अब राज्य में शिवसेना और एनसीपी के बीच फूट पड़ गई है. ऐसे में मुंबई की तीन-चार सीटों को प्रभावित करने वाला मुस्लिम वोटर इस साल के चुनाव में किसके पास जाएगा? मुंबई में मुस्लिम समुदाय परंपरागत रूप से (92 के दंगों के बाद दो चुनावों को छोड़कर) कांग्रेस के पक्ष में रहा है.

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2019 में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की महा विकास अघाड़ी बनने के बाद राज्य में एक अलग समीकरण बना. लेकिन जब से ‘हिंदुत्व’ की कट्टर समर्थक और 30 साल से बीजेपी के साथ रहने वाली पार्टी शिव सेना कांग्रेस-एनसीपी के साथ आई है, तब से सवाल उठ रहे हैं कि क्या इससे मुस्लिम वोट बैंक पर असर पड़ेगा.

उद्धव ठाकरे इस बात पर जोर देते हैं कि ‘‘हां, शिवसैनिकों ने बाबरी को ध्वस्त किया था.’’ फिर भी उनकी सभाओं में मुस्लिम समुदाय की महत्वपूर्ण उपस्थिति देखी जाती है. कांग्रेस के साथ रहने का नतीजा यह है कि उद्धव ठाकरे बीजेपी विरोध का एक मजबूत चेहरा बनकर सामने आ रहे हैं. ऐसे में यह जांचना जरूरी हो जाता है कि परिधि पर मुस्लिम समुदाय भगवा झंडा थाम रहा है या नहीं.

मुंबई (दक्षिण), मुंबई (दक्षिण-मध्य) और मुंबई (उत्तर-मध्य) शहर में बड़ी संख्या में मुस्लिम मतदाता हैं. मुंबई (उत्तर पश्चिम), मुंबई (उत्तर पूर्व) और मुंबई (उत्तर) निर्वाचन क्षेत्रों में भी मुसलमानों की संख्या अच्छी खासी है. गठबंधन में इन तीन निर्वाचन क्षेत्रों में से, मुंबई (उत्तर-मध्य) निर्वाचन क्षेत्र को छोड़कर, शिवसेना (ठाकरे समूह) के पास दो अन्य निर्वाचन क्षेत्र हैं.

2014 से बीजेपी-शिवसेना गठबंधन में इन दोनों सीटों पर लगातार शिवसेना ने जीत हासिल की है. हालांकि इस सीट पर शिवसेना का काफी प्रभाव है, लेकिन अब यहां शिवसेना-बीजेपी गठबंधन नहीं है. ऐसे में शिवसेना के लिए अपने ‘हिंदू वोट बैंक’ को बरकरार रखना और यह देखना जरूरी होगा कि गठबंधन में सहयोगी दलों के वोट उसकी ओर कैसे शिफ्ट होंगे.

‘इंडी अलायंस’ का घटक दल होने के नाते ठाकरे की शिवसेना को इसका फायदा मिल सकता है. राजनीतिक विश्लेषक नचिकेत कुलकर्णी ने कहा, ‘‘1992 के दंगों के बाद मुंबई में मुस्लिम वोट बैंक कुछ समय के लिए समाजवादी पार्टी में स्थानांतरित हो गया था. समय के साथ इसकी कांग्रेस में वापसी हो गई है. इंडी गठबंधन में उद्धव ठाकरे के आने से कांग्रेस के वोटों का फायदा निश्चित तौर पर शिव सेना को होगा. इसकी पूरी संभावना है कि मुस्लिम समुदाय उन लोगों के पीछे खड़ा होगा, जो बीजेपी को हराने की क्षमता रखते हैं. अतीत में जो कुछ हुआ, उससे भी ज्यादा मुस्लिम समुदाय अपने भविष्य को लेकर चिंतित है. परिधि पर मौजूद समाज को हमेशा एक मजबूत सामाजिक समर्थन की जरूरत होती है, जिसे मुस्लिम समुदाय कांग्रेस के साथ महसूस करता है. यही बात ठाकरे की शिव सेना के साथ भी महसूस की जा सकती है.’’

गठबंधन को मुंबई की तीन सीटों पर मुस्लिम वोटों का बहुमत चाहिए, लेकिन यह वोट शिवसेना के उम्मीदवार को मिलेगा, इस पर संदेह व्यक्त किया जा रहा है. जब शिवसेना के विभाजन के बाद उद्धव ठाकरे ने नई शाखाएं बनानी शुरू कीं, तो उन्होंने मुस्लिम बहुल मोहम्मद अली रोड पर मेमनवाड़ा में एक शिव सेना शाखा खोली. इस शाखा के प्रमुख मुख्तार पोपेरे गर्व से कहते हैं, ‘‘मैं शिव सेना का पहला मुस्लिम शाखा प्रमुख हूं. हम शिवसैनिक इस बात से नाराज हैं कि कैसे ठाकरे को मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा. मुस्लिम समाज में देशद्रोह का कोई स्थान नहीं है. इसलिए मुस्लिम समुदाय शिवसेना के साथ रहेगा.’’

कांग्रेस नेता और पूर्व सांसद हुसैन दलवई ने संभावना जताई है कि महाराष्ट्र में मुस्लिम वोट शिव सेना की ओर शिफ्ट होंगे, क्योंकि वह इंडी गठबंधन का हिस्सा है. वह कहते हैं, ‘‘मुस्लिम समुदाय की प्रबल भावना है कि बीजेपी को सत्ता में नहीं आना चाहिए. बीजेपी ने अपने ही लोगों को पकड़कर शिवसेना पार्टी को तोड़ दिया. उसके बाद भी उद्धव ठाकरे ने बीजेपी के सामने जो चुनौती खड़ी की है, वह सराहनीय है. बीजेपी ने कांग्रेस के घोषणापत्र पर मुस्लिम लीग की छाप होने की आलोचना की है.’’

इस बीच, उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस की आलोचना का जवाब देते हुए आलोचना की कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने खुद समय-समय पर मुस्लिम लीग से हाथ मिलाया है. कांग्रेस और शिवसेना के एक साथ आने से चुनाव में दोनों पार्टियों को इसका फायदा मिलेगा.

मेरे विचार में, मुस्लिम समुदाय की शिक्षा, रोजगार और आश्रय के मुद्दों को शिवसेना किस तरह से देखती है, यह महत्वपूर्ण है. मुंबई में, शहर में रहने वाले 80 प्रतिशत मुस्लिम समुदाय झुग्गियों में रहते हैं. केवल 20 प्रतिशत मुसलमान उच्च वर्ग के हैं, उन्हें मुस्लिम समाज की समस्याओं के बारे में कोई जानकारी नहीं है. 75 प्रतिशत मुस्लिम छात्र 10वीं कक्षा से आगे नहीं पढ़ते. कांग्रेस शासनकाल में मुसलमानों की इन समस्याओं को गंभीरता से लिया गया. इसीलिए दलवई ने महाविकास अघाड़ी को शिवसेना के साथ मजबूत होने की जरूरत बताई.

पिछले ‘हिंदू वोट बैंक’ का ख्याल रखना भी मुसलमानों का वोट पाने के लिए ठाकरे के लिए एक कौशल साबित होने वाला है. पिछले कुछ वर्षों में, ठाकरे ने यह समझाकर खुद को भाजपा की हिंदुत्व विचारधारा से दूर कर लिया है कि शिवसेना का हिंदुत्व कोई दिखावा नहीं है. ठाकरे की ये भूमिकाएं शिवसेना के प्रति मुस्लिम समुदाय का नजरिया बदलने में मदद कर सकती हैं.

इसकी पूरी संभावना है कि मुस्लिम समुदाय उन लोगों के पीछे खड़ा होगा, जो बीजेपी को हराने की क्षमता रखते हैं. अतीत में जो कुछ हुआ, उससे भी ज्यादा मुस्लिम समुदाय अपने भविष्य को लेकर चिंतित है. 

राज्य में ढाई साल तक महा विकास अघाड़ी सरकार के मुख्यमंत्री रहे उद्धव ठाकरे कहीं भी आक्रामक हिंदू चेहरे के तौर पर नजर नहीं आए. इसलिए, मुसलमान खुद को ठाकरे की शिव सेना के करीब महसूस कर सकते हैं. इसके अलावा, चूंकि कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस एक साथ है, इसलिए उस पर भरोसा किया जा सकता है.

 

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