यूपी: गुलाब यादव की आवाज सुनकर मुसलमान करते हैं सुहूर

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 19-03-2025
A Ramazan drummer (File photo)
A Ramazan drummer (File photo)

 

आजमगढ़. रमजान माह पूरी दुनिया के मुसलमानों के लिए बेहद मुकद्दस होता है लेकिन अन्य धर्मों को मानने वाले कुछ लोगों की भी इससे जुड़ाव है. आजमगढ़ के कौड़िया गांव के गुलाब यादव भी ऐसे ही लोगों में शामिल हैं, जिनकी पुकार रोज भोर में रोजेदारों को सहरी के लिए जगाती हैं.

बनारसी साड़ियों के लिए मशहूर उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के मुबारकपुर कस्बे के निकट के गांव कौड़िया में भोर में जब सभी लोग सो रहे होते हैं, तब गुलाब यादव और उनके 12 वर्षीय बेटे रात एक बजे से अगले दो से तीन घंटों तक गांव के मुस्लिम परिवारों को रमजान में सहरी के लिए जगाने निकल पड़ते हैं.

किसी ने खूब कहा है कि ‘‘दोस्ताना इतना बरकरार रखो कि मजहब बीच में न आये कभी तुम उसे मंदिर तक छोड़ दो, वो तुम्हें मस्जिद छोड़ आये कभी.’’ यादव के यह जज्बात इसी का अक्स हैं. वैसे तो रमजान के दिनों में मस्जिदों से ऐलान करके लोगों को सहरी के लिए उठाया जाता रहा है लेकिन उच्चतम न्यायालय के लाउडस्पीकर को लेकर जारी किए गए निर्देशों का सरकार द्वारा कड़ाई से पालन कराये जाने के बाद अब गुलाब यादव की इस जिम्मेदारी भरी कवायद का महत्व और बढ़ गया है.

गुलाब यादव ने कहा कि वो अपने परिवार की 50 साल पुरानी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं, जिसकी शुरुआत 1975 में उनके पिता चिरकिट यादव ने की थी. उस वक्त मैं काफी छोटा था और तब मुझे पिताजी की इस कवायद की वजह भी समझ नहीं आती थी. मगर वक्त के साथ मैंने इसके पीछे की भावना को समझा, अब उन्हें इस काम से बहुत सुकून मिलता है. पेशे से दिहाड़ी मजदूर गुलाब यादव (45) ज्यादातर वक्त दिल्ली में रहते हैं, लेकिन रमजान आने पर वह अपने परिवार की पांच दशक पुरानी परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए अपने गांव लौट आते हैं.

गुलाब यादव ने अपने पिता द्वारा शुरू की गई इस परंपरा को लेकर अपनी अगली पीढ़ी में भी जिम्मेदारी का भाव पैदा करना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि इसीलिए मैं रोज अपने 12 साल के बेटे अभिषेक को भी साथ लेकर जाता हूं. एक हाथ में टॉर्च और दूसरे हाथ में आवारा कुत्तों से बचने के लिए डंडा लिये यादव और उनका बेटा अभिषेक गांव के सभी मुस्लिम लोगों के घरों पर दस्तक देते हैं और उन लोगों के जागने तक वहां से नहीं हटते हैं.

उन्होंने कहा कि मेरे पिता की मृत्यु के बाद मेरे बड़े भाई ने कुछ वर्षों तक यह काम किया, लेकिन उनकी आंखों की रोशनी कम होने के बाद उन्हें मजबूरन यह काम छोड़ना पड़ा. उनके बाद मैंने यह जिम्मा उठाया है और अब मैं हर रमजान में इसी काम के लिए यहां लौट आता हूं. गुलाब यादव के इस नेक काम की पूरी इलाके में सराहना होती है. उनके पड़ोसी शफीक ने कहा, ‘‘रोजेदारों को सहरी के लिए जगाना बेहद सवाब (पुण्य) का काम है.’’

उन्होंने कहा, ‘‘गुलाब भाई लोगों को जगाने के लिए पूरे गांव का चक्कर लगाते हैं. इसमें दो घंटे का वक्त लगता है. इसके बाद वह यह पक्का करने के लिए एक बार फिर पूरे गांव में घूमते हैं कि कोई भी रोजेदार सहरी करने से बाकी न रहे. इससे ज्यादा मुकद्दस जज्बा और क्या हो सकता है.’’

जब मोहब्बत लिखी हुई है गीता और कुरान में, फिर ये कैसा झगड़ा हिन्दू और मुसलमान में का जिक्र करते हुए शफीक कहते हैं, ‘‘रमजान इस्लाम के प्रमुख कर्तव्यों में से एक है. उस फर्ज को निभाने में इतनी शिद्दत से मदद करके गुलाब यादव हिंदू-मुस्लिम एकता की अनूठी मिसाल पेश कर रहे हैं.’’