2027 उप्र चुनाव: ओबीसी से जुड़ने के लिए बसपा फिर दोहराएगी 'भाईचारा', क्या है पूरा समीकरण

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 20-04-2025
2027 UP elections: BSP will again repeat 'bhaichara' to connect with OBC, what is the whole equation
2027 UP elections: BSP will again repeat 'bhaichara' to connect with OBC, what is the whole equation

 

आवाज द वॉयस/नई दिल्ली

 
अपने लगातार गिरते जनाधार से बेचैन बहुजन समाज पार्टी (बसपा) नेतृत्व ने 2027 में उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से जुड़ने के लिए अपने सफल 'भाईचारा' प्रयोग को फिर दोहराने की योजना पर काम शुरू कर दिया है. ‘भाईचारा’ एक प्रयोग था जो 2007 के चुनावों से पहले किया गया था। इसी प्रयोग के तहत राज्य की 403 विधानसभाओं में भाईचारा समितियां बनाई जाएंगी और ओबीसी के 100 लोगों से संपर्क साधा जाएगा। ये 100 लोग बूथ स्तर पर पार्टी के दूत के रूप में काम करेंगे.
 
इन ओबीसी भाईचारा समितियों के जरिए पार्टी अपने बिखरे हुए ग्रामीण वोट बैंक को जोड़ना चाहती है और समाजवादी पार्टी के पीडीए (पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक ) के दांव का जवाब भी तलाशना चाहती है. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल ने ‘पीटीआई-भाषा’ से बातचीत में कहा, ''बसपा ने प्रदेश के सभी जिलों में ओबीसी भाईचारा समितियां गठित की हैं. प्रत्येक जिले में दो संगठनात्मक संयोजक नियुक्त किए गए हैं. जिला अध्यक्ष और प्रभारी नियुक्त किए गए हैं.’’ उनका कहना है कि इन जिला अध्यक्षों और प्रभारियों में एक दलित समुदाय से है और दूसरा ओबीसी से. ये पदाधिकारी अब प्रदेश के सभी 403 विधानसभा क्षेत्रों में ओबीसी भाईचारा समितियां बना रहे हैं.
 
उन्होंने कहा, ‘‘ ये पदाधिकारी गांव-गांव जाकर लोगों के बीच जा रहे हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में बसपा की नीतियों को फैलाने का काम शुरू कर दिया है. ताकि ओबीसी समाज और अन्य गरीब व अल्पसंख्यक समाज के लोग भी इन भाईचारा समिति से जुड़ सकें और आगामी 2027 के उप्र विधानसभा चुनाव में बसपा 2007 की तरह फिर से सत्ता हासिल कर सके.’’ उन्होंने कहा कि विधानसभा प्रभारी हर गांव में ओबीसी वर्ग के 100 लोगों का समूह बनाएंगे और उन्हें पार्टी के कार्यक्रमों और नीतियों की जानकारी देकर प्रशिक्षित कार्यकर्ता बनाएंगे.
 
'गांव-गांव में लोगों को छल-कपट के बारे में जागरुक किया जाएगा'

प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं को पार्टी का सक्रिय सदस्य भी बनाया जाएगा. बसपा प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि पार्टी के अभियान के दौरान गांव-गांव में लोगों को कांग्रेस, भाजपा और सपा की दलित विरोधी नीतियों के साथ-साथ उनके द्वारा लगातार किए जा रहे छल-कपट के बारे में जागरुक किया जा रहा है. यह पूछे जाने पर कि क्या यह समाजवादी पार्टी के पीडीए फॉर्मूले से प्रेरित है, पाल ने कहा, ‘‘ एसपी पीडीए के नाम पर ओबीसी समुदाय को बेवकूफ बना रही है. एसपी के पीडीए का मतलब है 'परिवार विकास प्राधिकरण’’ पीडीए एसपी द्वारा पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक के लिए दिया गया एक संक्षिप्त नाम है. 
 
उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘ यादव समुदाय की ओबीसी में सबसे बड़ी हिस्सेदारी है, लेकिन सपा ने लोकसभा चुनाव में परिवार के सदस्यों को छोड़कर यादव समुदाय के किसी भी व्यक्ति को पार्टी का टिकट नहीं दिया. यादव समुदाय भारी संख्या में समाजवादी पार्टी को वोट देता है, लेकिन जब टिकट की बात आती है तो सपा प्रमुख को केवल पत्नी, भाई और भतीजे दिखाई देते हैं.
 
पाल ने उम्मीद जताई कि ओबीसी भाईचारा समितियां एक बार फिर कड़ी मेहनत करेंगी और उत्तर प्रदेश में बसपा को सत्ता में वापस लाने में सफल होंगी. उन्होंने कहा कि 2007 में मायावती ने सभी वर्गों की भाईचारा समिति बनाई थी, जिसके बाद 2007 में बसपा ने भारी बहुमत से सरकार बनाई थी. पार्टी ने 403 विधानसभा सीटों में से 206 सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की थी.
 
मायावती द्वारा दिए गए निर्देश

बसपा की प्रदेश इकाई के अध्यक्ष ने कहा कि पिछले महीने पार्टी प्रमुख मायावती द्वारा दिए गए निर्देशों के बाद कार्यकर्ता राज्य के प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में जाकर दलित समुदाय के साथ-साथ अन्य पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यकों को बसपा शासन के दौरान किए गए कार्यों की विस्तृत जानकारी दे रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘‘एक बार फिर इतिहास दोहराया जाएगा और 2027 में मायावती फिर उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनेंगी. 2007 से 2012 तक प्रदेश की जनता ने सबके साथ न्याय करने वाली बसपा सरकार देखी. फिर 2012 से 2017 तक हमने समाजवादी पार्टी की गुंडागर्दी देखी और अब 2017 से अब तक जनता राज्य में सांप्रदायिक सरकार देख रही है.’’
 
फिलहाल उत्तर प्रदेश विधानसभा में पार्टी का सिर्फ एक सदस्य है, जबकि 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी का एक भी उम्मीदवार संसद नहीं पहुंच सका
शायद इसीलिए राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना ​​है कि अपनी स्थापना के बाद से सबसे बुरे दौर से गुजर रही बसपा इस बार 2027 के चुनावों के लिए काफी सतर्क है और सफल रहे ‘भाईचारा’ प्रयोग को फिर से लागू कर रही है. दलित चिंतक और लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफेसर रविकांत कहते हैं, ''अगर बसपा प्रमुख इन ओबीसी भाईचारा समितियों को अन्य पिछड़े वर्गों और दलितों तक सीमित रखेंगी तो उन्हें निश्चित रूप से सफलता मिलेगी.’’
 
उन्होंने कहा कि हालांकि, अगर इन समितियों में उच्च वर्ग के ब्राह्मण और ठाकुरों को भी शामिल किया गया तो बसपा को एक बार फिर सत्ता से दूर रहना पड़ सकता है क्योंकि यह वर्ग बसपा से फायदा लेता है लेकिन अपना वोट भाजपा को ही देता है. राजनीतिक जानकार भी मानते हैं कि यह तभी संभव होगा जब 2027 के चुनाव में बसपा एक मजबूत विकल्प के रूप में उभरेगी. बसपा प्रमुख मायावती ने पिछले महीने बसपा के अन्य पिछड़ा वर्ग की राज्य स्तरीय विशेष बैठक में कहा था कि बहुजन समाज के लोग आरक्षण के संवैधानिक लाभ से उसी तरह वंचित हैं, जिस तरह दलितों के लिए आरक्षण को विभिन्न नए नियमों और कानूनों में बांधकर लगभग अप्रभावी बना दिया गया है. उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं को निर्देश दिया था कि बहुजन समाज के सभी अंगों को आपसी भाईचारे के आधार पर संगठित कर तथा राजनीतिक ताकत पैदा कर सत्ता की चाबी हासिल करने के संकल्प को और मजबूत करने के लिए एक नया जोरदार अभियान शुरू किया जाना चाहिए.