नफरत के सिद्धांतों ने Radicalism and Terrorism बढ़ायाः Dr. Al-Issa

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 12-07-2023
नफरत के सिद्धांतों ने कट्टरपंथ और आतंकवाद बढ़ायाः डॉ. अल-इस्सा
नफरत के सिद्धांतों ने कट्टरपंथ और आतंकवाद बढ़ायाः डॉ. अल-इस्सा

 

आतिर खान / मलिक असगर हासमी / तृप्ति नाथ

नई दिल्ली. उदारवादी इस्लाम का प्रमुख चेहरा, सऊदी अरब के पूर्व न्याय मंत्री और वर्ल्ड मुस्लिम लीग के महासचिव डॉक्टर मोहम्मद बिन अब्दुल करीम अल-इस्सा ने कहा कि विडंबना यह है कि नफरत फैलाने वाली किताबें, सकारात्मक, बहुलवादी और रचनात्मक संदेशों को बढ़ावा देने वाली किताबों की तुलना में अधिक व्यापक हैं. उन्होंने कहा कि सभ्यतागत टकराव को रोकने के लिए, हमें बचपन से ही अगली पीढ़ी की रक्षा और मार्गदर्शन करने की आवश्यकता है. नफरत के सिद्धांत और गलत धारणाओं ने कट्टरपंथ से आतंकवाद तक का रास्ता तेज कर दिया है.

डॉ. अल-इस्सा चाणक्यपुरी क्षेत्र स्थित विवेकानन्द इंटरनेशनल फाउंडेशन में ‘क्षेत्रों के बीच सद्भाव के लिए संवाद’ विषयक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे. कार्यक्रम में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल विशेष रूप से मौजूद रहे और उन्होंने डॉ. अल-इस्सा का स्वागत किया. एनएसए अजीत डोभाल के विशिष्ट स्नेह निमंत्रण स्वीकार करके डॉ. अल-इस्सा भारत में एक सप्ताह के दौरे पर हैं और यहां विभिन्न कार्यक्रम में भाग ले रहे हैं.

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भारत की संस्कृति की प्रशंसा करते हुए डॉ. अल इस्सा ने कहा कि भारत में विचारों की विविधता ने मुझे बहुत प्रभावित किया है. भारत में धार्मिक नेतृत्व के साथ मेरी बातचीत से मुझे एहसास हुआ कि हमें मानवीय मूल्यों को बनाए रखने और एक साथ खड़े होने की जरूरत है.

विश्व में भारत की भागेदारी को रेखांकित करते हुए डॉ. अल इस्सा ने कहा कि दुनिया भारत की बुद्धिमत्ता से लाभान्वित हो सकती है. भारतीय दर्शन मानव जाति की प्रगति के लिए महत्वपूर्ण रहा है.

 


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‘विश्व कौटुम्बकम्’ जैसी भारतीय अवधारणा की तरह उन्होंने अपने विचार प्रस्तुत किया कि हमें अंतर का जश्न मनाने और फिर भी एकजुट रहने की जरूरत है. हम मानते हैं कि हम एक ही पेड़ के विभिन्न हिस्से हैं. हमारा धर्म मानवता है. हम सब एक ही वंशावली से हैं.

वर्तमान धर्म आधारित संघर्षों की ओर संकेत करते हुए उन्होंने कहा कि हमें फैलाई जा रही भ्रांतियों का समाधान खोजने की जरूरत है. हमें दो मोर्चों पर काम करने की जरूरत है- शिक्षा और युवाओं को प्रचार से बचाना. युवाओं से व्यवहार के लिए निवारक और शमन उपाय दोनों महत्वपूर्ण हैं.

अंतरधार्मिक संवाद की वकालत करने हुए उन्होंने कहा कि अंतरधार्मिक संवाद ही भविष्य का एकमात्र रास्ता है. अंतर धार्मिक संवाद इन चुनौतियों को कम करने में सहायक हो सकते हैं.

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डॉ. अल इस्सा ने कहा कि विडंबना यह है कि नफरत फैलाने वाली किताबें सकारात्मक, बहुलवादी और रचनात्मक संदेशों को बढ़ावा देने वाली किताबों की तुलना में अधिक व्यापक हैं. उन्होंने कहा कि सभ्यतागत टकराव को रोकने के लिए, हमें बचपन से ही अगली पीढ़ी की रक्षा और मार्गदर्शन करने की आवश्यकता है.  नफरत के सिद्धांत और गलत धारणाओं ने कट्टरपंथ से आतंकवाद तक का रास्ता तेज कर दिया है.

उन्होंने कहा कि यह प्यार, मानवता और सह-अस्तित्व है, जो दिलों को जीतता है. हमने वर्तमान बिगड़ती स्थिति से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र के स्तर तक विभिन्न देशों में धार्मिक नेतृत्व को शामिल करने की मांग की है. हमने पुल निर्माण की परियोजना के लिए संयुक्त राष्ट्र महासचिव को नियुक्त किया है. लेकिन हमें सभी की भागीदारी और साझेदारी की जरूरत है.

 


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उन्होंने कहा कि सत्ता पर कब्जा जमाने के लिए, कई नेताओं ने अपना नियंत्रण और प्रासंगिकता सुनिश्चित करने के लिए नफरत भरी कहानियों का इस्तेमाल किया है.  धार्मिक नेता आज चुप हैं और समझ को बढ़ावा देने के लिए काम नहीं कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि कुछ संगठनों, भारतीय संस्थानों और नेताओं के विपरीत, जिनसे मैं मिला, उन्होंने अपना प्रभुत्व जताने के बजाय शांति, सहिष्णुता और समझ के बारे में बात की.

भारत के संविधान को सलाम

भारत में मैंने जो शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व देखा वह अद्वितीय है. मैं भारत के संविधान को सलाम करता हूं. मैं तहे दिल से भारतीय लोकतंत्र को सलाम करता हूं. मैं उस भारतीय दर्शन और परंपरा को सलाम करता हूं, जिसने दुनिया को सद्भावना की शिक्षा दी. उन्होंने कहा कि मैं भारतीय नेतृत्व, जनसंख्या और संविधान के साथ-साथ उस प्राचीन परंपरा की सराहना और सलाम करता हूं, जिसने विश्व को सद्भाव का संदेश दिया है.

उनके सारगर्भित भाषण के बाद लोगों ने खड़े होकर जमकर तालियाँ बजाईं.

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए वीआईएफ के अध्यक्ष डॉ. अरविंद गुप्ता ने कहा कि धर्मों के बीच संयम और मेल-मिलाप की आवश्यकता सर्वोपरि है. वासुदेव कुटुंबकम पीएम मोदी की विदेश नीति का मूल दर्शन है. उन्होंने कहा कि हर धर्म कुएं में मेंढक की तरह है. यह केवल महासागर की माप की कल्पना ही कर सकता है. दुनिया से बाहर जाकर बाहर देखना महत्वपूर्ण है. डॉ. इस्सा के साथ यह चर्चा सत्र हमारे दायरे से बाहर निकलकर दुनिया को देखने जैसा है.

 


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विवेकानन्द इंटरनेशनल फाउंडेशन की ओर से वरिष्ठ पत्रकार एस गुरुमूर्ति ने डॉ. अल इस्सा का स्वागत करते हुए कहा कि जैसा कि डॉ. अल इस्सा ने सही कहा है कि भारतीय नेता शासन और प्रभुत्व के बारे में बात नहीं करते हैं, क्योंकि यह भारत का विचार नहीं है. हमारा एकमात्र जनादेश सद्भाव का संदेश है.

एस गुरुमूर्ति ने कहा कि वैश्विक ताकतों द्वारा बहुत सारा युवा खून बहाया गया है, जो युवाओं को अपने एजेंडे के लिए गलत दिशा दे रहे हैं. उन्होंने कहा कि संवाद का अभाव संघर्ष को बढ़ावा दे रहा है. लेकिन वह संवाद ईमानदार और सच्चाई पर आधारित होना चाहिए. उन्होंने कहा कि समरसता के संदेश की जन्मस्थली भारत का उत्थान ही विश्व शांति ला सकता है. भारतीय और अरबी सभ्यताएँ सहस्राब्दियों से ज्ञान संचारित करने में सहयोग करती आ रही हैं.

 


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