एम मिश्र /लखनऊ
कोरोना काल में ठंडे पड़े शाही रसोई के चूल्हे दो साल बाद इस बार मुहर्रम में दहक उठेंगे. नवाबीन ए अवध के वंशजों सहित सैकड़ों परिवारों को मिट्टी की हांडी में बांटा जाने वाला तबर्रुक इस शाही रसोई में तैयार होगा. साथ ही मजलिसों में शामिल होने वाले सैकड़ों अजादारों को बंटने वाला तबर्रुक भी शाही रसोई में पकेगा.
हुसैनाबाद ट्रस्ट ने तबर्रुक का बजट 34 लाख रूपये तय किया है.अवध के तीसरे बादशाह मोहम्मद अली शाह ने अवध की गंगा जमुनी तहजीब को जिंदा रखने के लिये समय-समय पर मजहबी आयोजन करने के लिये 1839 में हुसैनाबाद ट्रस्ट की स्थापना की थी.
ट्रस्ट का मकसद नवाबों के वंशजों को वसीका देने के साथ गरीब लड़कियों की शादी कराना, बच्चों को वजीफा देना, बेघर लोगों को रहने के लिये किराए पर मकान मुहैया कराने के अलावा इस्लामिक तारीखों में मजलिस व महफिल का आयोजन कराकर तबर्रुक बांटने का इंतजाम करना था.
हुसैनाबाद ट्रस्ट 182 साल से अपने रवायतों पर चलते हुए मुहर्रम के 10 दिनों तक मजलिसों में तबर्रुक बांटने और रमजान के 30 दिनों तक मस्जिदों और गरीब परिवारों को इफ्तारी बांटने का काम कर रहा है.
मुहर्रम का तबर्रुक और रमजान में इफ्तारी छोटे इमामबाड़े की शाही रसोई में तैयार किया जाता है. कोरोना काल में पहली बार दो साल तक मुहर्रम और रमाजन में शाही रसोई के चूल्हे ठंडे पड़े थे.
हुसैनाबाद ट्रस्ट के सुप्रींटेंडेंट अहमद मेंहदी के मुताबिक इस बार मुहर्रम का तबर्रुक शाही रसोई में ही तैयार किया जाएगा. मुहर्रम के तबर्रुक के लिये 34 लाख रूपये का टेंडर हुआ है.
कभी दाल रोटी तो कभी बंटेगी सालन रोटी
हुसैनाबाद ट्रस्ट मुहर्रम के नौ दिनों तक अपने अधीन आने वाले इमामबाड़ों में मजलिसों का आयोजन भी कराता है. ट्रस्ट की ओर से मजलिस के बाद शीरमाल बांटी जाएगी.
करीब आठ हजार लोगों को तबर्रुक बंटेगा. वहीं पहली से नौ मुहर्रम तक लगातार छोटे इमामबाड़े व शाहजनफ से मिट्टी के बर्तन में दाल रोटी व सालन रोटी बांटी जाएगी.
इसके अलावा अवध के नवाबों के वंशजों सहित करीब 300 परिवारों को खमीरी रोटी के साथ मिट्टी की हांडी में सालन, एक बाकरखानी बांटी जाएगी.
ट्रस्ट की ओर से कहां बंटेगा तबर्रुक
बड़ा इमामबाड़ा 2000 पैकेट
छोटा इमामबाड़ा 2000 पैकेट
इमामबाड़ा शाहनजफ 2000 पैकेट
गारवाली कर्बला 1500 पैकेट
रौजा ए काजमैन 1000 पैकेट
इमामबाड़ा आगा अबू साहब 1000 पैकेट
मकबरा सआदत अली खां 500 पैकेट