नई दिल्ली. ब्रिटिश-भारतीय उपन्यासकार सलमान रुश्दी का विवादास्पद उपन्यास ‘द सैटेनिक वर्सेज’ धार्मिक समूहों के दबाव में राजीव गांधी सरकार द्वारा प्रतिबंधित किए जाने के 36साल बाद भारत में फिर से प्रकाशित हो गया है. इस पुस्तक ने अपनी कथित ईशनिंदा वाली सामग्री के कारण दुनिया भर में विरोध प्रदर्शन को जन्म दिया था.
इस पुस्तक की प्रतियां हाल के दिनों में नई दिल्ली में बहरिसंस बुकसेलर्स पर खरीदने के लिए उपलब्ध हैं. आईएएनएस से बात करते हुए एक खरीदार ने कहा, ‘‘यह एक बहुत प्रसिद्ध किताब है, लोगों ने इसके बारे में नहीं सुना है. मैं इस किताब से एक व्यक्तिगत जुड़ाव महसूस करता हूं क्योंकि लेखक सलमान रुश्दी मेरे क्षेत्र कश्मीर से हैं. दूसरी बात, इसने दुनिया भर में जो उथल-पुथल मचाई, वह उल्लेखनीय है. यहां तक कि उनके खिलाफ एक ‘फतवा’ भी जारी किया गया था. हालांकि, समय के साथ यह लोगों की नजरों से ओझल हो गया. आज सुबह, मैंने अखबारों में पढ़ा कि यह फिर से चर्चा में है. सलमान रुश्दी एक उदारवादी रहे हैं. वे इस्लाम के खिलाफ एक निडर आवाज रहे हैं. वे सत्य के खोजी रहे हैं. इसलिए, मैं इसे एक एजेंडे के रूप में नहीं देखता. यह एक बौद्धिक अभ्यास है और शायद आज के समय में भारत में अधिक प्रासंगिक है. हां, हर धर्म का विश्लेषण किया जा सकता है, खासकर कुछ ऐसे धर्मों का, जिनके बारे में कोई बात नहीं करना चाहता. उस हद तक, मुझे लगता है कि यह सामाजिक बदलाव के लिए सही समय है और उन सभी राजनीतिक रूप से प्रेरित लोगों को यह समझना चाहिए कि इसके पीछे कोई राजनीति नहीं है और उन्हें यह देखने की जरूरत है कि हर धर्म में अच्छाई और बुराई होती है और हर किसी को इस पर बात करने की जरूरत है.’’
किताब की दुकान पर एक और खरीदार कहता है, ‘‘ज्ञान का महत्व जीवन में हमेशा बना रहता है, चाहे वह किसी भी तरह का ज्ञान हो. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह ऐतिहासिक है या नहीं. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मेरा मानना है कि ज्ञान न तो नया होता है और न ही पुराना और जब भी मिले, उसे स्वीकार कर लेना चाहिए. लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें शुरू से ही लगा कि इस किताब पर प्रतिबंध क्यों लगाया गया? यह किताब एक ऐसे लेखक की है जो दुनिया भर में प्रसिद्ध है और जिसे कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, तो इस पर प्रतिबंध क्यों लगाया गया? अब, इसे समझने के लिए हमें इसे पढ़ना होगा. किताब हमारे हाथ में है, इसलिए हमें इसे पढ़ना चाहिए.’’
एक अन्य पाठक कहते हैं, ‘‘मुझे याद है कि जब मैं कलकत्ता में ‘द स्टेट्समैन’ में सहायक संपादक था, तब इस पुस्तक पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. उन्होंने जो किया वह इस पुस्तक के आयात पर प्रतिबंध लगाना था, और मैं भाग्यशाली था कि मुझे इसकी शुरुआती प्रतियों में से एक मिली. मैं विशेष रूप से इस प्रति को खरीदने आया था, ताकि पुस्तक के फिर से उपलब्ध होने की याद दिलाई जा सके. यह बहुत महत्वपूर्ण है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए खड़ा होना महत्वपूर्ण है, लेखकों के लिए खड़ा होना महत्वपूर्ण है, भले ही आप उनसे सहमत हों या नहीं, भले ही आपकी राजनीति और उनकी राजनीति एक-दूसरे से सहमत हों या नहीं. इसलिए, पूरा विचार यह है कि मैं इस क्षण को कैद करना चाहता था. दुर्भाग्य से, राजीव गांधी के नेतृत्व में भारत दुनिया का पहला देश था, जिसने ‘द सैटेनिक वर्सेज’ पर प्रतिबंध लगाया था. यह पुस्तक पर प्रतिबंध लगाने वाला दुनिया का पहला देश बन गया और इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि पुस्तक एक बार फिर उपलब्ध हो. मुझे बहुत खुशी है कि पुस्तक एक बार फिर उपलब्ध है.’’
एक पाठक ने कहा, “यह कहने के लिए, काफी बदनाम है, लेकिन मेरा मानना है कि जब तक आप इसे नहीं पढ़ेंगे, तब तक आप वास्तव में समझ नहीं पाएंगे कि समस्या क्या थी या इसमें छिपाने के लिए क्या था. इसलिए, जब कुछ, आप जानते हैं, ऐसी किताबें आपकी नजर में आती हैं, तो यह अक्सर ज्ञानवर्धक होता है, और फिर आप इसे पढ़ना चाहते हैं.”