तस्लीमा नसरीन का उपन्यास ‘लज्जा’, जिसके कारण छोड़ना पड़ा बांग्लादेश, मांगी थी भारत की नागरिकता

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 11-09-2024
Taslima Nasreen's novel 'Lajja', due to which she had to leave Bangladesh, had sought Indian citizenship
Taslima Nasreen's novel 'Lajja', due to which she had to leave Bangladesh, had sought Indian citizenship

 

नई दिल्ली
 
बात साल 1993 की है, बांग्लादेश के बाजार में एक उपन्यास आया, जिसका नाम था “लज्जा”. जो साल 1992 में अयोध्या के विवादित ढांचे को गिराए जाने के बाद हुए दंगों पर आधारित है. इस उपन्यास में हिंदू परिवारों के साथ हुई हिंसा का जिक्र था. बाजार में आते ही यह उपन्यास कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गया और कुछ समय बाद ही इस पर प्रतिबंध लगाना पड़ा. लेकिन, छह महीने के भीतर ही इसने रिकॉर्ड तोड़ डाले और इसकी करीब 50 हजार से अधिक प्रतियों को हाथों-हाथ ले लिया गया.  
 
“लज्जा” को तो शोहरत मिली, लेकिन इसे लिखने वाली लेखिका को अपना मुल्क छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा. विवादित उपन्यास को लिखने वाली लेखिका का नाम है तस्लीमा नसरीन. जो अपने उपन्यास के चलते कट्टरपंथियों के निशाने पर आईं और उन पर इस्लाम की छवि को नुकसान पहुंचाने तक का आरोप लगा. कई मौलवियों ने उनके खिलाफ सजा-ए-मौत के फतवे जारी कर दिए. हालात इतने बिगड़े कि उन्हें बांग्लादेश की सरकार ने देश से निकाल दिया, जिसके बाद उन्हें भारत में शरणार्थी बनकर रहना पड़ा.
 
बांग्लादेश की विवादित लेखिका तस्लीमा नसरीन का बांग्ला भाषा में लिखा गया “लज्जा” पांचवां उपन्यास था. उन्होंने अपने लेखों में महिला उत्पीड़न और धर्म की आलोचना की. हालांकि, उनकी किताबों और उपन्यासों को पसंद तो किया गया, लेकिन उनके खिलाफ कई फतवे भी जारी किए गए. हजारों कट्टरपंथी सड़कों पर उतर आए और उन्हें फांसी की सजा देने की मांग की. तस्लीमा नसरीन की सबसे अधिक मुश्किल उस वक्त बड़ी, जब उनके नए उपन्यास “लज्जा” को लेकर विवाद खड़ा हो गया.
 
“लज्जा” के बाद अक्टूबर 1993 में एक कट्टरपंथी समूह ने उनकी मौत के लिए इनाम तक की घोषणा की. नौबत यहां तक आई कि उन्हें बांग्लादेश छोड़ना पड़ा. 1994 में बांग्लादेश छोड़ने के बाद नसरीन ने अगले दस साल स्वीडन, जर्मनी, फ्रांस और अमेरिका में निर्वासन में बिताए.
 
एक दशक से अधिक समय तक रहने के बाद वह 2004 में भारत आईं, इस दौरान उन्होंने कोलकाता को अपना नया ठिकाना बनाया. कोलकाता में भी उनका जीवन मुश्किलों से भरा रहा. यहां भी उनका विरोध होने लगा और उन्हें दिल्ली आना पड़ा. साल 2006 में बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन किया. लेकिन, इस पर सरकार की ओर से कोई फैसला नहीं लिया गया बल्कि उन्हें आवासीय परमिट दे दिया गया.
 
इस्लाम की आलोचना के लिए तस्लीमा नसरीन पर भारत में भी कई बार हमले की कोशिश की गई. मगर इन हमलों के बाद भी वह डरी नहीं. इस दौरान उन्होंने कविताएं, निबंध, उपन्यास समेत कई किताबें भी लिखीं. उनकी पुस्तकों का 20 अलग-अलग भाषाओं में अनुवाद किया गया. तस्लीमा नसरीन को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में उनके योगदान के लिए कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया.