नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार से 'वक्फ बाय यूजर' (उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ) से संबंधित प्रावधानों पर गंभीर सवाल उठाए हैं.
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने बुधवार को सुनवाई के दौरान केंद्र से स्पष्ट किया कि यदि इस व्यवस्था को खत्म किया गया, तो इसके दूरगामी और जटिल प्रभाव होंगे.
'वक्फ बाय यूजर' का मतलब उन संपत्तियों से है जिनका लंबे समय से धार्मिक या सामाजिक उपयोग किया जा रहा है और इस आधार पर उन्हें वक्फ मान लिया गया, भले ही उनके पास रजिस्टर्ड दस्तावेज या सेल डीड न हो। यह ऐतिहासिक मस्जिदों, दरगाहों और कब्रिस्तानों पर लागू होता है, जिनकी उत्पत्ति 14वीं से 16वीं सदी के बीच हुई थी.
पीठ ने केंद्र से पूछा –
"क्या 'वक्फ बाय यूजर' को खत्म करना वाजिब होगा? यदि मस्जिदें सैकड़ों साल पुरानी हैं और उनके पास दस्तावेज नहीं हैं, तो क्या हम उनसे अब रजिस्ट्री मांग सकते हैं?"
"अगर संपत्ति पर उपयोग लंबे समय से धार्मिक है, तो फिर उसे कैसे खारिज किया जाएगा?"
सुप्रीम कोर्ट ने इस पर भी सवाल उठाया कि कलेक्टर को यह अधिकार क्यों दिया गया कि वह तय करे कि कोई संपत्ति वक्फ है या नहीं? यह कार्य तो न्यायपालिका का होना चाहिए.
वक्फ संपत्ति दान करने वाले व्यक्ति को कम से कम 5 वर्षों से मुस्लिम होना अनिवार्य किया गया है.
सरकारी ज़मीन को वक्फ संपत्ति घोषित नहीं किया जा सकता, चाहे उसका उपयोग वर्षों से धार्मिक हो.
कलेक्टर को यह निर्णय लेने का अधिकार दिया गया है कि कोई संपत्ति वक्फ है या नहीं.
एक बार संपत्ति वक्फ घोषित हो जाए, तो उसकी पुनर्समीक्षा की अनुमति नहीं होगी (धारा 3(सी)).
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अदालत में कहा:
"इस्लाम में उत्तराधिकार मृत्यु के बाद होता है. फिर सरकार कैसे तय करेगी कि कौन मुस्लिम है?"
"राज्य यह कैसे तय करेगा कि महिलाओं को वक्फ में हिस्सा मिलेगा या नहीं?"
उन्होंने इसे मुस्लिम पर्सनल लॉ में अनुचित सरकारी हस्तक्षेप बताया और कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन है.
मुख्य न्यायाधीश ने कहा:
"धर्मनिरपेक्ष कानून सभी धर्मों पर समान रूप से लागू होते हैं. जैसे हिंदू कोड बिल में बदलाव हुआ, वैसे ही मुस्लिम समुदाय के लिए भी संसद कानून बना सकती है."
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार की ओर से दलील दी:
"यह कानून व्यापक विचार-विमर्श के बाद बना है। JPC ने लगभग 98 लाख ज्ञापनों की समीक्षा की है।.
"इसका मकसद पारदर्शिता और वक्फ संपत्तियों का सही प्रबंधन है."
"कलेक्टर कैसे तय कर सकता है कि कोई संपत्ति वक्फ है या नहीं?"
"पुरानी मस्जिदों से सेल डीड की उम्मीद कैसे की जा सकती है?"
"अगर संपत्ति वक्फ नहीं मानी जाएगी जब तक कलेक्टर निर्णय नहीं देता, तो उस अवधि में किराया किसे जाएगा?"
इस कानून के खिलाफ 73 से अधिक याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई हैं
विरोध में शामिल प्रमुख संगठन और पार्टियां:
कांग्रेस, AAP, DMK, JDU
जमीयत उलेमा-ए-हिंद, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड
असदुद्दीन ओवैसी और अन्य सामाजिक कार्यकर्ता
कुछ याचिकाएं गैर-मुस्लिम नागरिकों की ओर से भी दायर की गई हैं, जिनमें इसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया गया है.
अब यह मामला सिर्फ कानून तक सीमित नहीं रहा। यह सवाल उठा रहा है:
क्या सरकार धार्मिक समुदायों के आंतरिक मामलों में दखल दे सकती है?
क्या राज्य यह तय कर सकता है कि कौन मुस्लिम है?
क्या वक्फ संपत्तियां सामान्य ट्रस्ट संपत्तियों की तरह नियंत्रित की जा सकती हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह सभी याचिकाओं को एक साथ नहीं सुनेगा, बल्कि संवैधानिक मुद्दों की प्राथमिकता के आधार पर विचार करेगा। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि वह संसद के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करेगा, परंतु संविधान के मूल ढांचे की रक्षा करेगा.