नई दिल्ली. गुजरात के जामनगर में आयोजित सामूहिक विवाह समारोह की पृष्ठभूमि में भड़काऊ गीत के साथ संपादित वीडियो पोस्ट करने के मामले में कांग्रेस सांसद और कवि इमरान प्रतापगढ़ी को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि प्रतापगढ़ी के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी.
सुप्रीम कोर्ट ने प्रतापगढ़ी के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द न करने के गुजरात हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई की. न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने प्रतापगढ़ी द्वारा दायर अपील पर गुजरात सरकार और शिकायतकर्ता किशनभाई दीपकभाई नंदा को नोटिस जारी किए.
गुजरात उच्च न्यायालय ने हाल ही में अपने एक फैसले में कहा कि कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द नहीं की जाएगी. यह मामला जामनगर निवासी किशन नंदा की शिकायत के आधार पर दर्ज किया गया है. उन्होंने आरोप लगाया कि इमरान प्रतापगढ़ी ने 29 दिसंबर को सामूहिक विवाह कार्यक्रम में भाग लेने के तीन दिन बाद 2 जनवरी को सोशल मीडिया पर वीडियो पोस्ट किया.
इस वीडियो में इमरान प्रतापगढ़ी फूलों की वर्षा के बीच लोगों का स्वागत करते नजर आ रहे हैं. लेकिन वीडियो की पृष्ठभूमि में बज रहे गाने के बोलों को धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला और हिंसा भड़काने वाला बताया गया है. पुलिस अधीक्षक के अनुसार, वीडियो पर आम जनता की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया आई है. एक उपयोगकर्ता ने वीडियो की तुलना सीरिया और इराक से की. पुलिस का मानना है कि वीडियो में आवाज इमरान प्रतापगढ़ी की हो सकती है.
जानकारी के मुताबिक, इमरान प्रतापगढ़ी पर बीएनएस की धारा 57 भी लगाई गई है, जो दस या उससे अधिक लोगों को अपराध करने के लिए उकसाने से संबंधित है. इस धारा के तहत सात साल तक की कैद हो सकती है. यह सामूहिक विवाह कार्यक्रम अल्ताफ खफी के जन्मदिन के अवसर पर आयोजित किया गया, जिसमें 51 जोड़ों का विवाह सम्पन्न हुआ. इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी को आमंत्रित किया गया था.
एफआईआर दर्ज होने के बाद कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने गुजरात उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. गुजरात उच्च न्यायालय ने इस संबंध में प्रतापगढ़ी की याचिका खारिज कर दी थी. न्यायमूर्ति संदीप भट्ट ने अपने आदेश में कहा था कि जांच अभी शुरुआती चरण में है, मुझे भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 528 या संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करने का कोई कारण नहीं दिखता. यह याचिका खारिज की जाती है.