आवाज द वॉयस/ नई दिल्ली
एप्पल के सह-संस्थापक स्टीव जॉब्स की विधवा लॉरेन पॉवेल जॉब्स 13जनवरी, 2025से शुरू होने वाले उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ मेले में भाग लेंगी. इस पवित्र हिंदू समागम में उनकी यात्रा इस आयोजन की सार्वभौमिक अपील को उजागर करती है. पॉवेल जॉब्स मेले के दौरान प्रचलित एक प्राचीन आध्यात्मिक अनुशासन कल्पवास करने वाली हैं.
कल्पवास, हिंदू परंपराओं में गहराई से निहित है और महाभारत जैसे शास्त्रों में संदर्भित है, यह तपस्या और आध्यात्मिक ध्यान की एक महीने की अवधि है. पौष पूर्णिमा से शुरू होकर माघी पूर्णिमा पर समाप्त होने वाले कल्पवासी के रूप में जाने जाने वाले प्रतिभागी आधुनिक सुख-सुविधाओं को त्यागकर संगम के पास अस्थायी तंबुओं में रहते हैं - गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती नदियों का संगम. वे नदी में पवित्र डुबकी लगाने, आध्यात्मिक प्रवचनों में भाग लेने और भक्ति संगीत सुनने सहित दैनिक अनुष्ठानों में संलग्न होते हैं. यह अभ्यास आंतरिक शुद्धि और आध्यात्मिक विकास पर जोर देता है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, लॉरेन कथित तौर पर निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद के शिविर में रहेंगी. उनसे विभिन्न अनुष्ठानों में भाग लेने और संगम में पवित्र डुबकी लगाने की उम्मीद है, जिससे वे महाकुंभ के आध्यात्मिक सार को पूरी तरह से आत्मसात कर सकेंगी. उनका प्रवास 29जनवरी तक चलेगा, जिसके दौरान वे इस आयोजन की अनूठी सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं में खुद को डुबोएंगी.
हर बारह साल में आयोजित होने वाला महाकुंभ मेला हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक समारोहों में से एक है. इसमें दुनिया भर से लाखों भक्त, संत और साधक आते हैं. माना जाता है कि संगम का पानी पापों को धोता है और आध्यात्मिक आशीर्वाद देता है, जिससे यह भक्ति और आस्था का केंद्र बन जाता है.
इस आयोजन की भावना को मूर्त रूप देने वाले कल्पवासी अस्थायी आश्रयों में रहते हैं और अपना समय प्रार्थना, ध्यान और सामुदायिक पूजा के लिए समर्पित करते हैं. यह मेला भौगोलिक और सांस्कृतिक सीमाओं को पार करते हुए आध्यात्मिक ज्ञान और जुड़ाव के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है.
लॉरेन की भागीदारी महाकुंभ की वैश्विक गूंज को रेखांकित करती है, जो विभिन्न पृष्ठभूमियों से व्यक्तियों को आकर्षित करती है. उनकी उपस्थिति इस कालातीत परंपरा में एक अनूठा आयाम जोड़ती है, जो आज की दुनिया में इसकी स्थायी प्रासंगिकता को दर्शाती है. प्रयागराज में लाखों लोगों के इकट्ठा होने के साथ, मेला भक्ति, एकता और आध्यात्मिक नवीनीकरण को प्रेरित करता रहता है.