प्रयागराजः श्री कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद में हिंदू पक्ष ने बुधवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय को बताया कि दोनों पक्षों के बीच 1968 में किया गया समझौता सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और मस्जिद समिति द्वारा किया गया एक “धोखाधड़ी” था.
हिंदू पक्ष के वकील ने यह भी कहा कि यह संपत्ति 1,000 से अधिक वर्षों से देवता कटरा केशव देव की थी और भगवान कृष्ण के जन्मस्थान को 16वीं शताब्दी में ध्वस्त कर दिया गया था और ईदगाह के रूप में एक ‘चबूतरा’ का निर्माण किया गया था.
मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि मंदिर से सटे शाही ईदगाह मस्जिद को ‘हटाने’ की मांग करने वाले मुकदमे को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई के दौरान ये दलीलें दी गईं. मुकदमे की पोषणीयता को लेकर मुस्लिम पक्ष की ओर से लगाई गई याचिका पर न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन मामले की सुनवाई कर रहे हैं.
बुधवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मुस्लिम पक्ष की ओर से पेश वकील तसलीमा अजीज अहमदी ने फिर कोर्ट को बताया कि मुकदमा परिसीमा से बाधित है. उनके अनुसार, दोनों पक्षों ने 12 अक्टूबर, 1968 को एक ‘समझौता’ किया था और 1974 में तय किए गए एक नागरिक मुकदमे में उक्त समझौते की पुष्टि की गई थी.
अहमदी ने कहा कि किसी समझौते को चुनौती देने की सीमा तीन साल है, लेकिन वर्तमान मुकदमा 2020 में दायर किया गया है और इस प्रकार यह सीमा से वर्जित है.
उन्होंने आगे कहा कि शाही ईदगाह की संरचना को हटाने के बाद कब्जे के साथ-साथ एक मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए मुकदमा दायर किया गया है. अहमदी ने कहा कि मुकदमे में नमाज से पता चलता है कि ईदगाह की संरचना वहां है और मस्जिद प्रबंधन समिति का उस पर कब्जा है.
हिंदू पक्ष की ओर से दलील दी गई कि मुकदमा चलने योग्य है और गैर-बरकरार संबंधी याचिका पर प्रमुख सबूतों के बाद ही फैसला किया जा सकता है. इसमें कहा गया है कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 7 नियम 11 के तहत मुस्लिम पक्ष द्वारा मुकदमे की स्थिरता पर सवाल उठाने वाला आवेदन खारिज किया जा सकता है.
हिंदू पक्ष के वकील ने आगे कहा कि 1968 में दावा किए गए समझौते में देवता एक पक्ष नहीं थे और न ही 1974 में पारित अदालती डिक्री में एक पक्ष थे. हिंदू पक्ष ने यह भी तर्क दिया कि 1968 में दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते या 1974 में पारित अदालती फैसले में देवता एक पक्ष नहीं थे.
हिंदू पक्ष के वकील ने यह भी कहा कि दावा किया गया समझौता श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान द्वारा किया गया था, जिसे इस तरह के किसी भी समझौते में प्रवेश करने का अधिकार नहीं था.
हिंदू पक्ष ने कहा कि संस्थान का उद्देश्य केवल मंदिर की रोजमर्रा की गतिविधियों का प्रबंधन करना था और उसे इस तरह का समझौता करने का कोई अधिकार नहीं था.
मामले में गुरुवार को भी सुनवाई जारी रहेगी.
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