संभल हिंसा: अदालत ने 15 आरोपियों की जमानत याचिका की खारिज

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 31-01-2025
Sambhal violence: Court rejects bail plea of ​​15 accused
Sambhal violence: Court rejects bail plea of ​​15 accused

 

संभल. उत्तर प्रदेश के संभल की एक स्थानीय अदालत ने पिछले साल शाही जामा मस्जिद में एक सर्वेक्षण के दौरान भड़के दंगों के सिलसिले में 15 आरोपियों की जमानत याचिका गुरुवार को खारिज कर दी. 24 नवंबर, 2024 को भड़की हिंसा में चार लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए. सर्वेक्षण एक याचिका से जुड़ा था जिसमें दावा किया गया था कि मस्जिद की जगह पर कभी हरिहर मंदिर था, जिससे इलाके में तनाव पैदा हो गया था.

अतिरिक्त जिला न्यायाधीश (एडीजे)-द्वितीय निर्भय नारायण सिंह ने जमानत याचिकाओं पर सुनवाई की, लेकिन अदालत में पेश किए गए मजबूत सबूतों का हवाला देते हुए आरोपियों को राहत देने से इनकार कर दिया. सरकारी वकील हरिओम प्रकाश सैनी ने इस घटनाक्रम की पुष्टि करते हुए कहा कि अदालत ने आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत पाए हैं, जिससे न्यायिक प्रक्रिया जारी रखने की जरूरत है.

सैनी ने फैसले का हवाला देते हुए कहा, ‘‘सभी आरोपियों की पहचान सीसीटीवी फुटेज में की गई थी और शिकायतकर्ता ने एफआईआर में उनका नाम दर्ज कराया था. निषेधाज्ञा लागू होने के बावजूद, वे भीड़ का हिस्सा थे, जिन्हें तितर-बितर होने के लिए कहा गया था. हालांकि, उन्होंने इनकार कर दिया और इसके बजाय पुलिस पर पत्थरों और आग्नेयास्त्रों से हमला किया.’’

सैनी ने कहा, ‘‘घटना में कई नागरिक मारे गए और लगभग 25 पुलिसकर्मी घायल हो गए. सरकारी वाहनों को आग लगा दी गई और मैगजीन और रबर बुलेट सहित पुलिस उपकरण लूट लिए गए.’’

अदालत ने संभल पुलिस स्टेशन में दर्ज मामले के साक्ष्य सहित केस रिकॉर्ड की समीक्षा की, जिसमें 13 आरोपी शामिल थे - आमिर, समीर, याकूब, सजाउद्दीन, मोहम्मद रेहान, मोहम्मद अली, शारिक, नईम, मोहम्मद गुलफाम, मोहम्मद सलीम, तहजीब, मोहम्मद फिरोज और मोहम्मद शादाब. इन सभी की जमानत याचिका खारिज कर दी गई.

अधिकारियों ने बताया कि इसी तरह, नखासा पुलिस स्टेशन में दर्ज एक मामले में अदालत ने आरोपी रुकैया और फरहाना को जमानत देने से इनकार कर दिया. 19 नवंबर को स्थानीय अदालत ने हिंदू पक्ष की याचिका पर गौर करने के बाद अधिवक्ता आयुक्त द्वारा मस्जिद का सर्वेक्षण करने के लिए एकपक्षीय आदेश पारित किया, जिसमें दावा किया गया था कि मस्जिद का निर्माण मुगल बादशाह बाबर ने 1526 में एक मंदिर को ध्वस्त करके किया था. 24 नवंबर को दूसरे दौर के सर्वेक्षण के दौरान विरोध कर रहे स्थानीय लोगों की सुरक्षाकर्मियों से झड़प हो गई, जिसके कारण हिंसा भड़क उठी थी.