नई दिल्ली
दिल्ली की एक अदालत ने 1984 के सिख विरोधी दंगों के दौरान सरस्वती विहार इलाके में पिता-पुत्र की हत्या से जुड़े एक मामले में पूर्व कांग्रेस सांसद सज्जन कुमार को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. इस फैसले के साथ ही एक और अहम कड़ी जुड़ी है, जिसमें 1984 के दंगों से जुड़े कई मामलों में सज्जन कुमार को दोषी ठहराया गया था.
कोर्ट का फैसला
विशेष न्यायाधीश कावेरी बावेजा ने सज्जन कुमार को हत्या (धारा 302) और अवैध सभा (धारा 149) के तहत सजा सुनाई. इसके अलावा, उन्हें संपत्ति को आग से नष्ट करने (धारा 436) और अवैध सभा (धारा 149) के आरोप में भी आजीवन कारावास की सजा दी गई. कोर्ट ने यह फैसला दंगा पीड़ितों की ओर से दर्ज की गई शिकायतों और मामले में संलिप्तता के आधार पर सुनाया.
सज्जन कुमार पर आरोप
यह मामला 1 नवंबर 1984 को सरस्वती विहार इलाके में जसवंत सिंह और उनके बेटे तरुणदीप सिंह की हत्या से संबंधित है. आरोप है कि सज्जन कुमार ने सिख विरोधी दंगे भड़काए और अपने समर्थकों के साथ मिलकर इन दोनों की हत्या को अंजाम दिया.
पीड़ितों की ओर से मृत्युदंड की मांग
दंगा पीड़ितों ने सज्जन कुमार के लिए मृत्युदंड की मांग की थी। 17 फरवरी को अभियोजन पक्ष ने दलील दी थी कि यह मामला "दुर्लभतम मामलों" में से एक है, और आरोपी की सजा के तौर पर मृत्युदंड उचित रहेगा. मनीष रावत, अतिरिक्त लोक अभियोजक (एपीपी) ने कहा कि यह मामला मानवता के खिलाफ अपराध की श्रेणी में आता है और आरोपी को कड़ी सजा मिलनी चाहिए.
सज्जन कुमार का बचाव
सज्जन कुमार के वकील, अधिवक्ता अनिल शर्मा ने अदालत में यह दलील दी थी कि उनका नाम इस मामले में शुरुआत में नहीं था और गवाहों द्वारा आरोप लगाने में 16 साल की देरी हुई. उन्होंने यह भी कहा कि सज्जन कुमार को दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दोषी ठहराए गए एक अन्य मामले में अपील लंबित है और इसलिए इस मामले में भी न्याय प्रक्रिया में कोई छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए.
इसके अलावा, उन्होंने कहा कि यह घटना एक असाधारण स्थिति में हुई थी और इसलिए इसमें अंतरराष्ट्रीय कानून के बजाय भारतीय कानून को ही लागू किया जाना चाहिए.
वरिष्ठ वकील एचएस फुल्का की दलील
वरिष्ठ वकील एचएस फुल्का, जो दंगा पीड़ितों के प्रतिनिधि के रूप में पेश हुए, ने दलील दी कि सिख विरोधी दंगों में पुलिस की जांच में हेराफेरी की गई थी. उन्होंने यह भी कहा कि यह घटना एक बड़े नरसंहार का हिस्सा थी, जिसमें दिल्ली में 2,800 सिखों की हत्या की गई. फुल्का ने यह भी उल्लेख किया कि उच्च न्यायालय ने इसे "मानवता के खिलाफ अपराध" करार दिया था.
कानूनी दृष्टिकोण और अदालत के आदेश
अदालत ने इस मामले में कई जटिल तथ्यों और गवाहों के बयान के आधार पर सज्जन कुमार को दोषी ठहराया. 1984 के दंगे और उसके बाद हुई घटनाओं को लेकर पुलिस जांच में अनियमितताओं के बावजूद विशेष जांच दल (SIT) ने मामले की पुनः जांच की और आरोपियों के खिलाफ मजबूत प्रमाण पेश किए.
1 नवंबर 2023 को, सज्जन कुमार का बयान दर्ज किया गया, जिसमें उन्होंने सभी आरोपों से इनकार किया था। हालांकि, अदालत ने इस मामले को लेकर एक मजबूत निर्णय लिया और सज्जन कुमार को सजा सुनाई।
सज्जन कुमार का पिछला इतिहास
सज्जन कुमार पहले ही 2018 में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा एक अन्य मामले में 1984 के सिख विरोधी दंगों से जुड़े अपराधों में दोषी ठहराए जा चुके हैं, जिसमें उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गई थी. इस फैसले ने उनके खिलाफ चल रहे विभिन्न मामलों में महत्वपूर्ण मोड़ ला दिया है.
1984 के सिख विरोधी दंगे और उनकी न्यायिक प्रक्रिया
1984 के सिख विरोधी दंगे भारत के इतिहास के काले अध्यायों में से एक हैं. इन दंगों ने लाखों सिखों के जीवन को प्रभावित किया और सिख समुदाय में गहरी चोट पहुंचाई. इस दौरान हुई हिंसा और अपराधों को लेकर कई वर्षों तक न्याय की प्रक्रिया अटका रही, लेकिन बाद में विशेष जांच दल (SIT) के गठन के साथ इन मामलों की फिर से जांच शुरू हुई.
इन दंगों के बारे में कई वरिष्ठ न्यायविदों ने यह राय दी थी कि यह नरसंहार और मानवता के खिलाफ अपराध के रूप में देखा जाना चाहिए. 1984 के दिल्ली कैंट मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने इसे "मानवता के खिलाफ अपराध" करार दिया था, और अब सज्जन कुमार के मामले में अदालत ने उसी दृष्टिकोण को अपनाया है.
सज्जन कुमार के खिलाफ सजा का फैसला 1984 के दंगों से जुड़ी न्यायिक प्रक्रिया में एक अहम कदम है. यह निर्णय न केवल दंगा पीड़ितों के लिए न्याय का प्रतीक है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि भारतीय न्याय व्यवस्था में किसी भी आरोपी के खिलाफ अपराधों का सामना किया जाएगा, चाहे वह किसी भी राजनीतिक पृष्ठभूमि से क्यों न हो.
यह फैसला इस बात की ओर भी इशारा करता है कि भारत में न्याय के साथ कोई समझौता नहीं होता, और दंगों के अपराधियों को किसी भी परिस्थिति में बचने का कोई मौका नहीं मिलेगा.