मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 25-04-2022
मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना

 

मेहमान का पन्ना

प्रो. अख्तरुल वासे
 
हमारे देश में इस महीने जो कुछ हुआ, खासकर मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, ‎‎झारखंड, राजस्थान और दिल्ली में, वह अत्यंत दर्दनाक भी है और शर्मिंदा करने वाला भी. ‎सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि यह खेल अधिकतर जगहों पर मर्यादा पुरुषोत्तम राम और उनके अनुयायी हनुमान के नाम ‎पर खेला गया. अगर कुछ लोग इस गलतफहमी में हैं कि वह इस देश को मुसलमानों के ‎लिए स्पेन बना सकते हैं तो वह इस भूल से जितनी जल्दी निकल आएं, बेहतर है. ‎

इसी तरह इस देश को इजरायल बनाने और फिलिस्तीनियों की तरह हिन्दुस्तानी मुसलमानों ‎को मजबूर और परेशान करने की हर कोशिश नाकाम ही होगी. हमने पहले भी देखा है ‎और एक बार फिर कहते हैं कि वह लोग जो खुले तौर पर मुसलमानों के खिलाफ ‎सामने आ रहे हैं वह शायद भूल गए कि वह मुसलमान का नहीं बल्कि हिन्दुस्तान ‎का नुकसान कर रहे हैं.
 
उन्हें इस बात का भी ख्याल नहीं कि विश्व में भारत की छवि ‎‎धूमिल हो रही है. जिस देश में इस तरह के सांप्रदायिक तनाव और हिंसा की बात सामने ‎आती हो, जहां आए दिन टकराव की स्थिति बनती हो, वहां बाहरी दुनिया से कौन निवेश ‎करेगा ? स्वयं देश का उद्योग और व्यापार प्रभावित होगा.
 
हिन्दुस्तान जो विश्व में अपने ‎‎धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र, निष्पक्षता और सच कहने के लिए जाना जाता है वह किस तरह से ‎अपनी इस पहचान को कायम रख पाएगा ? इसकी किसी को फिक्र नहीं.
‎खरगोन से कर्नाटक तक एवं गुजरात से दिल्ली तक जो कुछ हुआ उसमें सब कुछ ‎बुरा नहीं हुआ है.
 
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करौली (राजस्थान) में एक  महिला मधुलिका सिंह राजपूत ने ‎जिस बहादुरी से दंगाईयों का सामना किया, 15 मुसलमानों को अपने यहां शरण दी, ‎उनकी जान बचाई और उनके भांजे ने बाद में उनका साथ दिया, वह असाधारण बात है.
 
‎मधुलिका ने साबित कर दिया कि वह श्रीराम के सच्चे वंशज हैं और उन्होंने श्रीराम के नाम ‎पर जितने लोगों की जान बचा सकती थी, बचाई और उन्हें बचाकर यह साबित ‎किया कि इस देश का बहुसंख्यक मधुलिका सिंह राजपूत की तरह ही है.
 
मुट्ठी भर ‎दंगाइयों और फासीवादियों की तरह नहीं. इसी तरह कटिहार (बिहार) में स्वयं हिन्दुओं ने ‎राम नवमी के जुलूस के बीच मानव श्रृंखला बनाकर कटिहार की जामा मस्जिद की रक्षा की. ‎इसी तरह मुसलमानों ने कई जगहों पर राम नवमी के जुलूस में शामिल होने वालों को गर्मी ‎के मौसम में पानी पिलाया, उन पर फूल बरसाए.
 
इसी तरह मध्य प्रदेश के भोपाल के बुद्धा ‎‎धाम मंदिर के अधिकारियों ने कोरोना काल में अपने अभिभावकों को खोने वाले बच्चों को ‎नए कपड़े वितरित किए. स्वयं जहांगीपुरी (दिल्ली) में हनुमान जयंती के मौके निकलने वाले ‎पहले दो जुलूसों का मुसलमानों ने स्वागत किया.
 
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इन सभी बातों से यह पता चलता है ‎कि हिन्दुस्तान इसी से बनता है. साम्प्रदायिकता के अंधेरे में यह थोड़ी सी रोशनी ‎गलतफहमियों के अंधेरे को दूर करने के लिए एक सकारात्मक प्रयास साबित होगी.
 
हमें खुशी है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने घोषणा की है कि बिना इजाजत किसी ‎जुलूस को निकलने की अनुमति नहीं दी जाएगी और नए जुलूस निकालने की भी कोई ‎इजाजत नहीं होगी.
 
उन्होंने यह भी कहा कि मस्जिदों में लाउडस्पीकर की आवाज उतनी ‎ही होनी चाहिए जितनी मस्जिद के अंदर जरूरी हो. हमें इस बात की भी खुशी है कि ‎मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली, प्रसिद्ध युवा धार्मिक विद्वान और लखनऊ की ईदगाह ‎के इमाम व खतीब ने मुख्यमंत्री के इन फैसलों का समर्थन किया है.
 
इस देश में अजान ही ‎लाउडस्पीकर से नहीं दी जाती. हर तरह के भजन, सत्संग, शब्द कीर्तन, रास लीला, ‎और राम लीला में लाउडस्पीकर का प्रयोग होता है और उन पर अकारण ही प्रतिबंध की ‎बात नहीं करनी चाहिए, बल्कि ध्वनि प्रदूषण न फैले इसकी चिंता करनी चाहिए.
 
हिंदुस्तान ‎की सिविल सोसायटी के साथ मुसलमानों को भरपूर सहयोग करना चाहिए और ऐसा कुछ ‎भी नहीं करना चाहिए जिससे उन्हें ठेस पहुंचे.हमें अपनी प्रतिक्रिया में इस बात का ध्यान रखना होगा कि यह लोग हमारी वजह ‎से शर्मिंदा और कमजोर न पड़ पाएं.
 
हमने पहले भी कई बार कहा और लिखा है कि वक्त ‎आ गया है कि सभी मुस्लिम जमाअतें (पार्टियां) और व्यक्ति हर तरह के पूर्वाग्रहों से ऊपर ‎उठकर एकजुट हो जाएं और मिलकर गैर-मुस्लिमों से बातचीत की शुरूआत करे.
 
पीड़ितों ‎की मदद के लिए जरूरी कदम उठाएं. कानूनी लड़ाई के लिए रणनीति तैयार करें ताकि ‎बेगुनाहों को जेलों में रहने से बचाया जा सके. दमनकारियों के खिलाफ साहस के साथ ‎‎एफ.आई.आर. दर्ज कराई जा सके और वह लोग जो बेगुनाह होते हुए भी जेलों में डाल ‎दिए गए हैं उनके परिवारों की आर्थिक मदद की व्यवस्था की जाए. साथ में ‎सरकार से भी पूछना चाहिए कि इस चुप्पी का क्या अर्थ है और वह क्या चाहती है ?‎
 
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आखिर में हमें आम मुसलमानों से बस यही कहना है कि वह हालात से उदास न ‎हों बल्कि हिम्मत के साथ खुद पर और खुदा पर भरोसा रखते हुए अपने गैर-मुस्लिम ‎भाईयों की साथ शिष्टता में कोई कमी न आने दें.
 
जो दंगाई हैं वह हमारे और हमारे ‎देशवासियों के बीच दूरियां पैदा करना चाहते हैं. हमें उन्हें सफल नहीं होने देना है. ‎हमें उनको यह बता देना चाहिए कि हम एक खुदा और एक आदम को मानने वाले हैं.
 
हम ‎‎एक दूसरे के साथ सैकड़ों साल से रहते आए हैं और आगे भी रहते रहेंगे. भारत के ‎साथ हमारे प्यार और जुड़ाव को किसी के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं. हम पहले भी ‎भारत से मोहब्बत करते थे और हमेशा करते रहेंगे.
 
जिस तरह हम अपने धर्म का पालन ‎करना जारी रखना चाहते हैं, उसी तरह हर हिन्दुस्तानी के इस अधिकार को दिल व जान ‎से स्वीकार करते हैं कि वह अपने धर्म का पालन करता रहे. हमारा धर्म हमें सिखाता है कि ‎धर्म में कोई बाध्यता नहीं और आपका धर्म आपके लिए है और मेरा धर्म मेरे लिए है. ‎अल्लामा इकबाल के अनुसारः‎
 
मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना,‎

हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा!

‎(लेखक जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रोफेसर एमरिटस (इस्लामिक स्टडीज) हैं।)