पूजा स्थल अधिनियम: कांग्रेस भी पहुंची सुप्रीम कोर्ट

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 16-01-2025
Places of Worship Act: Congress also reached Supreme Court
Places of Worship Act: Congress also reached Supreme Court

 

नई दिल्ली. कांग्रेस ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की वैधता के खिलाफ दायर याचिकाओं का विरोध किया. यह अधिनियम धार्मिक स्थलों की स्थिति को 15 अगस्त 1947 के अनुसार बनाए रखता है. विपक्षी दल ने सर्वोच्च न्यायालय से भारतीय जनता पार्टी नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिका में हस्तक्षेप करने का आग्रह किया.

याचिका में उपाध्याय ने इस कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है. याचिका में कांग्रेस ने कहा कि यह कानून भारत में धर्मनिरपेक्षता की रक्षा के लिए आवश्यक है और इस पर उठाए गए सवाल धर्मनिरपेक्षता के स्थापित सिद्धांतों को कमजोर करने का जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण प्रयास प्रतीत होते हैं.

कांग्रेस ने कहा कि उसे डर है कि यदि कानून में कोई बदलाव किया गया, तो इससे भारत में सांप्रदायिक सद्भाव और धर्मनिरपेक्षता को खतरा हो सकता है, जिससे देश की संप्रभुता और अखंडता को भी खतरा हो सकता है.

कांग्रेस ने यह भी कहा कि वह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्ध है और जब वह और जनता दल लोकसभा में बहुमत में थे, तब उन्होंने इस कानून को पारित कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. पार्टी ने आगे कहा कि वह अपने निर्वाचित सदस्यों के माध्यम से पूजा स्थल अधिनियम पारित करने के लिए जिम्मेदार है, इसलिए उसे मामले में हस्तक्षेप करने और पूजा स्थल अधिनियम की वैधता का बचाव करने की अनुमति दी जानी चाहिए.

विपक्षी दल ने आरोप लगाया कि उपाध्याय ने संदिग्ध और गुप्त उद्देश्यों से याचिका दायर की है. याचिका में झूठा दावा किया गया है कि पूजा स्थल अधिनियम केवल हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध समुदायों पर लागू होता है. यह कानून सभी धार्मिक समुदायों के पूजा स्थलों पर समान रूप से लागू होता है तथा 15 अगस्त 1947 के बाद की यथास्थिति सुनिश्चित करता है, न कि किसी विशेष समुदाय पर, जैसा कि दावा किया गया है.

देश की संसद ने 18 सितम्बर 1991 को उपासना स्थल अधिनियम, 1991 (अधिनियम) पारित किया. पूजा स्थलों से संबंधित कानून के सात भाग हैं. प्रारंभिक खंड में कहा गया है कि कानून का उद्देश्य किसी भी पूजा स्थल में परिवर्तन को रोकना तथा 15 अगस्त 1947 तक किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को बनाए रखना है. इस कानून को उस समय चुनौती दी गई जब सुप्रीम कोर्ट अयोध्या में विवादित ढांचे के मुद्दे पर अपना फैसला सुना रहा था. 9 नवंबर, 2019 को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से विवादित संपत्ति का स्वामित्व श्री रामलला विराजमान को सौंप दिया.

इस निर्णय से 450 वर्ष पुराने विवाद की फाइल बंद हो गई. इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने उपासना स्थल अधिनियम 1991 की वैधता को बरकरार रखा. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर कर दावा किया गया कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26 और 29 का उल्लंघन करता है.

इन मामलों में याचिकाकर्ताओं में भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय, पूर्व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी, धार्मिक नेता स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती और देवकीनंदन ठाकुर, काशी नरेश विभूति नारायण सिंह की बेटी कुमारी कृष्णा प्रिया और सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी अनिल कबूतरा शामिल हैं.