यूरोप में पेट्रोलियम विस्फोट, भारत की बढ़ती ताकत से दुनिया हैरत में

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 03-09-2024
Petroleum export
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राकेश चौरासिया / नई दिल्ली

भारत से यूरोप को पेट्रोलियम निर्यात में 2018-2019 से 2023-2024 के बीच 2,53,788 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है. यह आंकड़ा किसी भी प्रगति और विकास के पायदान पर सबसे ज्यादा धमाकेदार और चौंकाने वाला है. यह वृद्धि पहले तो महामारी के बाद लॉजिस्टिक समस्याओं के कारण हुई और फिर 2022 में यूक्रेन संकट के बाद और भी ज्यादा हो गई.

हालांकि मात्रा के लिहाज से यह वृद्धि बेहद तेज रही, लेकिन मूल्य के हिसाब से 250 प्रतिशत की रही. इस हिसाब से भी यह भारत की बड़ी छलांग है. भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के व्यापार आंकड़ों के एक विश्लेषण के अनुसार, 15 से 17 यूरोपीय देश हर साल उन शीर्ष 100 देशों में शामिल रहे हैं, जिन्हें भारत ने पेट्रोलियम उत्पाद निर्यात किए.

मुख्य यूरोपीय बाजार

यूरोपीय देशों में नीदरलैंड्स सबसे ऊपर रहा, जहां 2018-2019 में 9,740.51 मीट्रिक टन पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात हुआ, जो 2023-2024 में बढ़कर 24.73 मिलियन मीट्रिक टन हो गया. इस वृद्धि का कारण नीदरलैंड्स में स्थित रॉटरडैम पोर्ट है, जो यूरोप का सबसे बड़ा बंदरगाह है और पूरे क्षेत्र के अन्य प्रमुख बाजारों के लिए एक हब के रूप में कार्य करता है.

इस सूची में यूके, फ्रांस, रोमानिया, स्विट्जरलैंड, रूस, स्पेन, इटली, बेल्जियम, नॉर्वे, पोलैंड, बुल्गारिया, स्लोवेनिया, ग्रीस, यूक्रेन, जर्मनी और पुर्तगाल भी शामिल हैं. फिनलैंड भी एक महत्वपूर्ण बाजार है, हालांकि पिछले छह वर्षों में इसके आयात में उतार-चढ़ाव देखा गया है.

महामारी के दौरान वृद्धि

भारतीय निर्यात संगठनों के महासंघ (एफआईईओ) के निदेशक-जनरल और सीईओ अजय सहाय के अनुसार, 2020-2021 में महामारी के दौरान यूरोपीय देशों को पेट्रोलियम निर्यात में उछाल आया था, क्योंकि उस समय तेल की अत्यधिक आपूर्ति थी. नीदरलैंड्स जैसे देशों में बंदरगाह सस्ती दरों पर विशाल भंडारण क्षमता की पेशकश कर रहे थे. इस समय, कई विदेशी तेल कंपनियों ने अपने ठिकाने बदल लिए और यूरोप में अपने आयातों को स्थानांतरित कर दिया.

भारतीय रिफाइनर्स की ताकत

भारतीय पेट्रोकेमिकल कंपनी में कार्यरत एक शीर्ष उद्योग नेता के अनुसार, 2020-21 में भारतीय रिफाइनरियों ने सस्ते कच्चे तेल का लाभ उठाते हुए इसे पूरी क्षमता से शुद्ध किया और इसके उप-उत्पादों, विशेष रूप से डीजल, को तेजी से निर्यात किया. इस समय, भारत में डीजल की घरेलू मांग कम थी, लेकिन एलपीजी और पेट्रोल की मांग बनी हुई थी, जिससे भारतीय रिफाइनरियों को निरंतर शुद्धिकरण करना पड़ा.

यूक्रेन संकट के बाद भारी इजाफा

महामारी के बाद, 2021-22 के दौरान भी इन कारकों का प्रभाव जारी रहा और यूरोपीय देशों को भारतीय पेट्रोलियम उत्पादों का उच्च निर्यात हुआ. इसके बाद, रूस-यूक्रेन युद्ध और उसके परिणामस्वरूप पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों ने इस वृद्धि को और अधिक बढ़ावा दिया. भारतीय निजी रिफाइनरियों ने इस स्थिति का लाभ उठाते हुए यूरोप को शुद्ध तेल का प्रमुख निर्यातक बन गया.

भारत के पेट्रोलियम निर्यात से यूरोपीय देश हैं खुश

यूक्रेन संकट के बाद, रूस पर लगाए गए पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों ने यूरोप को ऊर्जा संकट में धकेल दिया, जिससे उन्हें नए आपूर्तिकर्ताओं की तलाश करनी पड़ी. इस संदर्भ में, भारत ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इस तरह, भारतीय पेट्रोलियम उत्पादों की उपलब्धता और सप्लाई चेन ने यूरोपीय अर्थव्यवस्था को डूबने से बचा लिया.

रूस-यूक्रेन युद्ध और यूरोपीय ऊर्जा संकट

2022 में रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण के बाद, पश्चिमी देशों ने रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए. इन प्रतिबंधों का उद्देश्य रूस की अर्थव्यवस्था को कमजोर करना था, लेकिन इसका एक अनपेक्षित परिणाम यूरोप में ऊर्जा संकट के रूप में सामने आया. रूस, जो यूरोप के लिए प्रमुख तेल और गैस आपूर्तिकर्ता था, अचानक से इस भूमिका से बाहर हो गया. इसके चलते यूरोपीय देशों को ऊर्जा के नए स्रोतों की तलाश करनी पड़ी.

भारत की भूमिका

भारत, जो पहले से ही अपने पेट्रोलियम उत्पादों का एक बड़ा हिस्सा निर्यात करता था, इस स्थिति का लाभ उठाने के लिए तैयार था. भारत ने रूस से सस्ते दरों पर कच्चे तेल का आयात करना शुरू किया और इसे शुद्ध कर यूरोप को निर्यात किया. भारत के पास अत्याधुनिक रिफाइनरियां हैं, जो उच्च गुणवत्ता के पेट्रोलियम उत्पादों का उत्पादन करती हैं. इसने भारत को यूरोप के लिए एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता बनने में मदद की.

यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

भारतीय पेट्रोलियम उत्पादों की उपलब्धता ने यूरोपीय अर्थव्यवस्था को कई तरीकों से लाभ पहुंचाया है. रूस पर प्रतिबंधों के कारण यूरोप को अचानक से ऊर्जा संकट का सामना करना पड़ा था. भारतीय पेट्रोलियम उत्पादों की आपूर्ति ने इस संकट को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. यूरोप को इस बात की आशंका थी कि उन्हें ऊर्जा की कमी के कारण उत्पादन और आर्थिक विकास में गिरावट का सामना करना पड़ेगा. लेकिन भारतीय आपूर्ति ने इस कमी को पूरा किया और यूरोप को ऊर्जा की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित की.

आपूर्ति श्रृंखला का स्थिरीकरण

महामारी और युद्ध के कारण वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भी विघटन हुआ था. भारतीय पेट्रोलियम उत्पादों की लगातार आपूर्ति ने यूरोप में आपूर्ति श्रृंखला को स्थिर करने में मदद की. इससे उत्पादन प्रक्रियाएं सुचारू रूप से चलती रहीं और उद्योगों को ऊर्जा की कमी का सामना नहीं करना पड़ा.

परिवहन और लॉजिस्टिक्स

रॉटरडैम जैसे प्रमुख यूरोपीय बंदरगाहों ने भारतीय पेट्रोलियम उत्पादों के आयात में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इन बंदरगाहों ने भारतीय तेल को यूरोप के विभिन्न हिस्सों में भेजने में मदद की, जिससे स्थानीय उद्योगों और परिवहन को आवश्यक ऊर्जा प्राप्त हुई. इसने यूरोपीय परिवहन प्रणाली को भी मजबूत किया, जो अर्थव्यवस्था की रीढ़ है.

आर्थिक स्थिरता

भारतीय पेट्रोलियम उत्पादों की आपूर्ति ने यूरोपीय अर्थव्यवस्था में स्थिरता बनाए रखने में मदद की. ऊर्जा की उपलब्धता के कारण उद्योगों और सेवाओं के क्षेत्र में उत्पादन बाधित नहीं हुआ, जिससे यूरोप की आर्थिक वृद्धि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा. भारतीय उत्पादों की किफायती कीमतों ने यूरोपीय उपभोक्ताओं को भी लाभ पहुंचाया, जिससे मुद्रास्फीति के प्रभाव को कम किया जा सका.

व्यापार की संभावनाएं

रूस पर प्रतिबंध जारी हैं, भारत और यूरोप के बीच पेट्रोलियम उत्पादों का व्यापार भविष्य में और भी मजबूत हो सकता है. भारतीय रिफाइनरियां रूस से कच्चे तेल का आयात कर उसे शुद्ध करके यूरोप को निर्यात कर सकती हैं, जिससे दोनों पक्षों को लाभ होगा. भारत के लिए यह अवसर आर्थिक वृद्धि को गति देने का एक महत्वपूर्ण साधन बन सकता है, जबकि यूरोप के लिए यह ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने का एक जरिया रहेगा.

यूक्रेन संकट के बाद के प्रतिबंधों ने यूरोप को एक कठिन परिस्थिति में डाल दिया था, लेकिन भारतीय पेट्रोलियम उत्पादों की उपलब्धता ने इस संकट को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. भारतीय उत्पादों की आपूर्ति ने यूरोपीय अर्थव्यवस्था को ऊर्जा संकट से उबरने में मदद की, आपूर्ति श्रृंखला को स्थिर किया, और आर्थिक स्थिरता में योगदान दिया. इस प्रकार, भारत और यूरोप के बीच इस ऊर्जा व्यापार ने वैश्विक आर्थिक संतुलन में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है.