बंगाल की दुर्गा पूजा में मुस्लिम समुदाय की होती है अच्छी भागीदारी

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 22-10-2023
People of Muslim community also participate well in Durga Puja of Bengal
People of Muslim community also participate well in Durga Puja of Bengal

 

जयनारायण प्रसाद/ कोलकाता

महानगर कोलकाता की दुर्गापूजा पूरी दुनिया में मशहूर है. कोलकाता में दुर्गापूजा पंडालों की खूबसूरत सजावट, पूजा मंडपों की लाइटिंग और थीम आधारित पूजा पंडालों की साज-सज्जा में चार चांद लगाने वाले कारीगरों में मुस्लिम समुदाय के लोगों की भागीदारी भी अच्छी-खासी होती है. यह और बात है कि ज्यादातर दर्शनार्थियों को इसकी जानकारी नहीं है.
 

बड़े-छोटे सभी पंडालों के निर्माण में मुस्लिम भी होते हैं
महानगर कोलकाता में बड़े-छोटे जितने भी दुर्गा मंडप बनते हैं, उसके निर्माण में हिंदू कारीगरों के साथ-साथ मुस्लिम भी हाथ बंटाते हैं. ये ज्यादातर बंगाली मुसलमान होते हैं और ऐसे मुसलमान कोलकाता में अमूमन दो-तीन माह पहले आकर डेरा-डंडा डाल कर पूजा पंडालों का निर्माण शुरू कर देते हैं. 
 
ऐसे मुसलमान बंगाल के पश्चिम मेदिनीपुर, मुर्शिदाबाद, माल्दह, उत्तर दिनाजपुर और बागनान से आते हैं. इनका कोलकाता आना किसी ठेकेदार के मार्फत ही होता है. चार-पांच महीने के काम में इन्हें मेहनताना भी ठीक-ठाक मिल जाता है. मुर्शिदाबाद जिले से दक्षिण कोलकाता के खिदिरपुर इलाके के '74 पल्ली दुर्गा पूजा मंडप' में आए मोहम्मद इरशाद ने बताया - पिछले सात सालों से मैं कोलकाता के विभिन्न पूजा पंडालों के निर्माण के लिए आता रहा हूं. 
 
इस दफा कोलकाता के खिदिरपुर अंचल में हूं. ठेकेदार को जैसा काम मिलता है, उस हिसाब से हमें भी चलना पड़ता है. इरशाद आगे जोड़ता है - इस तरह की पूजा अब हमलोगों की जिंदगी का खास हिस्सा है। इसी पर हमारी फैमिली भी टिकी है. बाल-बच्चे भी पढ़-लिख रहे हैं.
 
मुर्शिदाबाद, माल्दह और उत्तर दिनाजपुर में है सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी
बंगाल के तीन जिलों में बंगाली मुसलमानों की तादाद सबसे ज्यादा है. मुर्शिदाबाद में 66.27 प्रतिशत, माल्दह में 51.27 प्रतिशत और उत्तर दिनाजपुर में 49.92 प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या है. ये सरहदी इलाके हैं. इन जिलों की सीमा बांग्लादेश से मिलती है. 
 
काम की तलाश में यहां के बंगाली मुसलमान केरल समेत दक्षिणी राज्यों में आते-जाते रहते हैं. सीजन देखकर ये मूव करते हैं और जब ठेकेदार से कोलकाता में इन्हें काम मिल जाता है, तो बाहर क्यों जाए !
 
मोहम्मद सलीम कहते हैं - इस साल मार्च-अप्रैल के आसपास मैं केरल से लौटा था। वहां भी मुझे पैसा ठीक-ठाक ही मिल रहा था, लेकिन घर लौटते ही ठेकेदार ने पकड़ लिया।‌ बोला - इस बार कोलकाता चलना है. दुर्गापूजा का ऑर्डर आ गया है और मैं कोलकाता चला गया. घर के लोग भी खुश हो गए कि मुर्शिदाबाद से कोलकाता चार-पांच घंटे का सफर है बस !
 
 
कोई खिलौना बेचता है, तो कोई  बैलून !
कोलकाता में इन दिनों थीम आधारित दुर्गापूजा भी खूब होने लगी है. ऐसे में बहुतों को समय रहते काम भी नहीं मिलता. थीम आधारित पूजा में ठेकेदार पंडाल निर्माण से लेकर लाइटिंग तक का पूजा कमिटियों से अनुबंध साल भर पहले कर लेता है. जाहिर है, बाहरी राज्यों से जो मुस्लिम मजदूर पूजा के करीब अपने घर लौटते हैं उन्हें काम नहीं मिलता. ऐसे में वे लोग पूजा के दौरान खिलौना या बैलून बेचने का काम भी करते हैं.
 
माल्दह से आए पचास से ऊपर के नसीरुद्दीन मियां बांग्ला जुबान में कहते हैं - कि कोरबो ! क्या करूं, देर हो गई तो खिलौना ही सही ! पेट तो चलना चाहिए ना. शेख नदीम ने सुनाया - बैलून बेचकर भी मैं खुश हूं. ठीक-ठाक बिक जाता है. मंडप निर्माण ना सही, बैलून ही सही.
 
 
बिहारी मुसलमान गोलगप्पे और आइसक्रीम बेचने आते हैं 
जो मुसलमान दुर्गापूजा पंडाल या लाइटिंग के काम से बंचित रह जाते हैं, वो पूजा में गोलगप्पे या आइसक्रीम बेचते हैं. इनमें बिहारी मुसलमानों की संख्या ज्यादा है. बिहार में गया, मनेर और पटना के मुसलमान दुर्गा पूजा के दौरान गोलगप्पे खूब बेचते हैं. कुछ आइसक्रीम बेचने का काम करते हैं. गया के रहने वाले शेख मुजीबुर कहते हैं - मैं हर साल यहां गोलगप्पे बेचता हूं और मेरा भाई आइसक्रीम.
 
गुरुवार से पूजा पंडालों में बढ़ेगी भीड़
बिहार में नवादा के रहने वाले और अंडा रोल बेचने वाले जावेद कहते हैं - जिसने कलकत्ते की पूजा नहीं देखी वह बेवकूफ है. मैं अंडा रोल बेचकर अच्छा कमा लेता हूं. वह आगे बताता है - पंचमी गुरुवार को है. उसके बाद षष्ठी, फिर सप्तमी. भीड़ हर बार पंचमी से ही बढ़ती है यहां. अष्टमी, नवमी और दशमी को तो भीड़ यहां बेकाबू हो जाती है. इन्हीं कुछ दिनों में जिसने पीट लिया, वह मालामाल हो जाएगा.
 
 
बिरियानी की दुकानों में लगी रहती है कतार
अर्सलान, अमीनिया, रॉयल, सिराज और मुनाफ की दुकानों पर दुर्गापूजा के दौरान भीड़ देखते ही बनती है। बिरियानी खाने को लोग कतार में खड़े रहते हैं. इनमें ज्यादातर महिलाएं, बच्चे और पुरुष होते हैं और युवतियां भी। ये सभी गैर-मुस्लिम समुदाय से होते हैं. 
 
उत्तर से दक्षिण कोलकाता तक जितनी भी बिरियानी दुकानें हैं, सभी की चांदी रहती है. छोटे दुकानदार भी खूब पैसा पीटते हैं. कुम्हारटोली, आहिरीटोला, लेकटाउन श्रीभूमि स्पोरटिंग क्लब, मोहम्मद अली पार्क और इकडालिया एवरग्रीन के पूजा पंडालों में देर रात तक दर्शनार्थियों की चहल-पहल रहती है. आखिरी दिन सुबह से ही उदासी छा जाती है। सबको लगता है कल से मां दुर्गा का विसर्जन शुरू हो जाएगा.