इंसानी जिंदगी बचाते हुए बिल्कुल नहीं डरी: मधुलिका

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 19-04-2022
इंसानी जिंदगी बचाते हुए बिल्कुल नहीं डरी: मधुलिका
इंसानी जिंदगी बचाते हुए बिल्कुल नहीं डरी: मधुलिका

 

आतिर खान / नई दिल्ली

मधुलिका सिंह को करौली दंगों के दौरान 15लोगों की जान बचाने के लिए धन्यवाद देने को अब तक किसी भी राजनेता या प्रशासन से फोन नहीं आया है. लेकिन जो बात उन्हें खुश करती है वह यह कि उनके आसपास के लोग उन्हें बता रहे हैं कि उन्होंने इंसानी जिंदगी बचाकर एक मिसाल कायम की है. मधुलिका के लिए यही सबसे बड़ा सम्मान है.

बढ़ती सांप्रदायिक नफरत के सामने मधुलिका ने एक प्रेरक मिसाल कायम की है. वह कहती हैं, ‘‘ सवाई माधोपुर की राजपूतनी हूं. मैं लोगों की जान बचाने से कैसे डर सकती .‘‘उनका कहना है कि सांप्रदायिक नफरत हमें पता नहीं कहां ले जाएगी. उन्होंने कहा मानवता कहती है कि हमें शांति से रहना चाहिए. उन्होंने जो कुछ भी किया वह मानवता के लिए ही किया है .

हाल ही में, राजस्थान के करौली में एक धार्मिक जुलूस के दौरान सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे थे. दंगाई बाजार में आग लगा रहे थे और निर्दोषों को निशाना बना रहे थे. मगर 48साल की मधुलिका खड़ी हुईं और उन्होंने हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोगों की जान बचाई.

वह कहती हैं,‘‘मैं दुकान पर अकेली थी.‘‘ वह उन भयानक पलों को याद करते हुए बताती हंै, मेरा बेटे काम से बाहर गए थे. मेरा भाई भी नहीं था. अचानक मैंने शोर सुना और देखा कि लोग अपने शटर नीचे कर रहे हैं. फिर उसने आसपास पूछा कि क्या हो रहा है. मुझे बताया गया कि दंगा हो गया है. गुस्साई भीड़ बाजार की ओर बढ़ रही है.‘‘ वह उसी इमारत में रहती है जिसमें वह अपनी दुकान चलाती है.

उन्होंने कहा कि दानिश, तालिब और नरेंद्र और अन्य पड़ोसी दुकानदार, जिनकी दुकानें एक ही शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में हैं, ने मदद के लिए उनसे संपर्क किया. ‘‘वे मेरे भाइयों की तरह हैं. वे सभी डरे हुए थे, इसलिए मुझे उन्हें बचाने के लिए कुछ करना पड़ा.

उन्होंने एक टेलीफोन साक्षात्कार में आवाज द वॉयस को बताया,,‘‘हर दिन, हम एक साथ काम करते हुए एक ही संघर्ष से गुजरते हैं. जो कुछ भी हम कपड़े बेचकर कमाते हैं वह हमारे उद्देश्य की पूर्ति करता है.‘‘

मधुलिका जानती हैं कि दुकानदार के घर दुर्गम स्थानों पर हैं और कोई रास्ता नहीं है कि वे अपने घरों तक सुरक्षित न पहुंच सकें. उनकी मानसिक उपस्थिति ने काम किया. वह बताती हैं, मैंने उन सभी को अपने घर के एक कमरे में छिपने को कहा. फिर उसने दुकान के शटर बंद गिरा कर खुद भी घर में बंद हो गई.

हिंसक भीड़ वहां से गुजरी, लेकिन कोई उनकी तरफ नहीं आया. घंटों तक दुकानदार घर के अंदर रहे. शाम को उनके परिजन लेने आए और उन्हें ले गए.मधुलिका के पति की सालों पहले मौत हो गई थी. उन्होंने अपने दो बेटों की परवरिश की है, जो अब शिक्षित हैं और काम की तलाश में हैं. वह कहती हैं, ‘‘अभी तो मैं दुकान में कपड़े बेचती हूं जिससे दाल रोटी चलती है, लेकिन वह अपने बेटों को अपनी जिंदगी में बेहतर करते हुए देखना चाहती हैं.‘‘