Not only milk and curd, these ingredients also have special importance on Mahashivratri, Bholenath is pleased by offering them
आवाज द वाॅयस/ नई दिल्ली
हिंदू परंपरा के सबसे बड़े पर्वों में से एक है देवों के देव महादेव से जुड़ी महाशिवरात्रि. वैसे तो भोलेनाथ अपने भक्तों पर हमेशा विशेष कृपा बनाए रखते हैं, लेकिन महाशिवरात्रि वह दिन है जब आप भोलेनाथ को प्रिय सामग्री चढ़ाकर उन्हें और प्रसन्न कर सकते हैं.
मान्यता है कि भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की सालगिरह के रूप में मनाए जाने वाले इस पर्व में शिवलिंग पर दूध, दही के साथ कुछ और खास सामग्रियां चढ़ाने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और भगवान की विशेष कृपा मिलती है.
भगवान भोलेनाथ वैसे तो हमेशा ही भक्तों पर अपनी कृपा बनाए रखते हैं. माना जाता है कि उनकी पूजा में ज्यादा आडंबर की जरूरत भी नहीं होती है. भोलेनाथ की पूजा में पंचाक्षर मंत्र के जप का भी काफी महत्व है.
काशी के ज्योतिषाचार्य, यज्ञाचार्य एवं वैदिक कर्मकांडी पं. रत्नेश त्रिपाठी ने बताया कि महाशिवरात्रि हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है. पंचांग के अनुसार, इस साल महाशिवरात्रि 26 फरवरी को होगी। इस दिन भगवान भोलेनाथ की पूजा में कुछ खास चीजों को जरूर शामिल करना चाहिए.
पं. रत्नेश त्रिपाठी ने कहा कि सबसे पहले तो यह जानने की जरूरत है कि बाबा की पूजा किस समय करें. उन्होंने बताया, “इस दिन भोलेनाथ के पूजन-अर्चन, रुद्राभिषेक और उपवास का विशेष महत्व होता है. शिव-पार्वती का पूजन प्रदोष काल में करना उत्तम और कल्याणकारी माना जाता है.
“महाशिवरात्रि का अर्थ ‘शिव यानि कल्याणकारी रात्रि’ होता है. प्रदोष काल में गंगाजल, गाय का दूध, दही, शहद एवं चीनी शिवलिंग पर चढ़ाना चाहिए. इसके बाद शिवलिंग पर इत्र मल-मलकर लगाना चाहिए और फिर वस्त्र, रोली, भस्म, अक्षत, फूल, बेलपत्र, मौली, अष्टगंध, काला तिल, भांग चढ़ाकर पंचाक्षर मंत्र 'ऊं नमः शिवाय' का जाप करना चाहिए.
इसके बाद शिव जी को धतूरा, मन्दार का फूल, दूब (या दूर्वा) भी चढ़ाना चाहिए जो उन्हें अत्यन्त प्रिय होता है.”पं. रत्नेश त्रिपाठी ने बताया कि महादेव की पूजा करने के साथ ही माता पार्वती को सिंदूर, मेहंदी, आलता, चूड़ी, रोली, माला, फूल के साथ इत्र और श्रृंगार के अन्य सामान अर्पण करने चाहिए.
उन्होंने बताया कि शिवनगरी काशी में महाशिवरात्रि को लेकर विशेष उत्साह रहता है. पिछले चार दशकों से शिव बारात भी निकलती रही है. इस अवसर पर काशीवासी नागा साधुओं के साथ देसी-विदेशी भी बहुतायत संख्या में नजर आते हैं। महाशिवरात्रि के दिन भक्तगण जागरण करते हैं.