जयनारायण प्रसाद/ कोलकाता
हिंदुस्तान की संस्कृति भी कितनी निराली है ! अपने समाज में तरह-तरह के अनूठे लोग हैं, जो दूसरों की परवाह किए बगैर अपनी ही धुन पर एकबार चलने की ठान लेते हैं, तो उसे अपना धर्म, कर्म और जीविका सबकुछ बना लेते हैं.
ऐसे हैं नूर मोहम्मद चौधरी
कोलकाता से कुछ घंटों की दूरी पर है पूर्व मेदिनीपुर जिला. इस जिले के तहत एक सब-डिवीजन है हल्दिया और इस सब-डिवीजन के तहत एक गांव पड़ता है आंदुलिया. इसी आंदुलिया गांव में नाती-पोते के साथ रहते हैं 57 वर्षीय नूर मोहम्मद चौधरी. दुर्गा पूजा आते ही नूर मोहम्मद के पास मूर्ति बनाने का ऑर्डर इतनी भारी मात्रा में आ जाता है कि वह बढ़ती उम्र की परवाह किए बगैर दिन और रात एक कर देते हैं और सभी पूजा कमिटियों को समय पर मूर्ति बनाकर दे देते हैं.
नूर मोहम्मद ने ऐसे सीखा मूर्ति बनाना
बचपन में स्कूल जाने के दौरान विसर्जित हुई मूर्तियों को नूर मोहम्मद चौधरी तालाब या पोखर से निकालते थे. फिर गीली मिट्टी और खर को मिलाकर मूर्ति बनाते थे आधी-अधूरी। यह नूर मोहम्मद का खेल था. खेलते-खेलते उसने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी और रोजाना मूर्ति गढ़ना नूर मोहम्मद चौधरी की आदतों में शुमार हो गया.
उसकी इस आदत से पड़ोसी मुसलमान नाराज रहने लगे
अपने पड़ोसी मुस्लिम भाइयों की परवाह किए बगैर नूर मोहम्मद चौधरी ने हिंदू देवी-देवताओं की मूर्ति बनाना बंद नहीं किया. इसी बीच, नूर मोहम्मद को एक गुरु मिल गया. वह मूर्ति गढ़ने में पारंगत था. गुरु का पूरा नाम ईश्वर राधाकांत सामंत था. गुरु राधाकांत ने भी मुस्लिम समाज की परवाह किए बगैर उसे अपना शिष्य बनाया और नूर मोहम्मद को मूर्ति गढ़ने की कला की अच्छी तरह ट्रेनिंग देने लगे. उसे मूर्ति बनाने का एक तरह से रोजगार मिल गया.
आज संपूर्ण मेदिनीपुर में नूर मोहम्मद से ही लोग मूर्ति बनवाते हैं
गुरु की मौत के बाद आज संपूर्ण मेदिनीपुर जिले में पूजा समितियां नूर मोहम्मद चौधरी से देवी-देवताओं की मूर्ति बनवाते हैं। दुर्गा पूजा का मौसम आते हैं नूर मोहम्मद के पास आर्डर का तांता लग जाता है। नूर मोहम्मद की बीवी नूरजहां गुजर चुकी है जिनका एक बेटा राजू है.
अब नूर मोहम्मद चौधरी अपने बेटे और नाती-पोते को लेकर मूर्ति बनाने का फुलटाइम कारोबार करता है. हल्दिया के जितने भी बड़े मंडप है, सबमें नूर मोहम्मद चौधरी की बनाईं मूर्तियां ही स्थापित होती हैं.
मुस्लिम समाज नूर मोहम्मद चौधरी के इस काम पर गर्व
मुस्लिम समाज के कुछ लोगों ने हिंदू देवी-देवताओं की मूर्ति बनाने के लिए कभी नूर मोहम्मद चौधरी की आलोचना की थी. कुछ ने तो उसके खिलाफ फतवा भी जारी किया था. अब वही मुस्लिम समाज नूर मोहम्मद चौधरी के इस काम पर गर्व करता है. कहते हैं कि नूर मोहम्मद चौधरी को पेशेवर रूप से मूर्ति गढ़ने का काम करते हुए 23 साल से ज्यादा हो गए हैं.
सद्भाव का सबसे बड़ा त्योहार है दुर्गा पूजा
नूर मोहम्मद चौधरी कहते हैं - 'बिना ऊपर वाले की दुआ के यह मुमकिन ही नहीं था. उसने चाहा है, तभी मैंने यह किया है. यह तो हिंदू-मुस्लिम सद्भाव और सौहार्द की सबसे बड़ी पूजा है. यह करते हुए मुझे फक्र है !' यह कहते हुए नूर मोहम्मद चौधरी भावुक हो जाता है.
हिंदू-मुस्लिम सद्भाव की एक दुर्गा पूजा, जो इस साल नहीं हो रही है
कोलकाता के अलीमुद्दीन स्ट्रीट में हिंदू-मुस्लिम सद्भाव की एक दुर्गा पूजा इस साल किसी वजह से नहीं हो रही है. सोलह साल पहले अलीमुद्दीन स्ट्रीट में यह दुर्गा पूजा हिंदुओं ने शुरू की थी. फिर पूजा करने वाले हिंदू लोग इलाका छोड़कर दूसरी जगह चले गए। और दुर्गा पूजा यहां बंद हो गई.
वर्ष 2021में अलीमुद्दीन स्ट्रीट के कुछ समर्पित युवा मुस्लिम युवकों ने यहां की दुर्गा पूजा को फिर से अपने बल पर करना शुरू किया. वर्ष 2021 और 2022 में दुर्गा पूजा यहां धूमधाम से हुई थीं. इस साल यानी 2023 में यह नहीं हो रही है. कुछ निजी वजह है.
इस बारे में यहां के शिशुपाल फाउंडेशन के प्रमुख तौसीफ रहमान कहते हैं - पहले मुख्य सड़क पर यह दुर्गा पूजा होती थी. एक सड़क दुघर्टना हो जाने की वजह से पुलिस ने इस बार हमें दुर्गा पूजा की अनुमति नहीं दी है. अगले साल यानी वर्ष 2024 में कुछ दूरी पर यह दुर्गा पूजा होगी और अगले साल हम इसे और धूमधाम से मनाएंगे.
गोलगप्पे से सजाया गया है पूरा दुर्गा मंडप
दक्षिण कोलकाता के बेहला इलाके में 'नतून दल' नामक एक दुर्गा पूजा कमिटी ने इस बार अपने पूजा मंडप को आकर्षक ढंग से गोलगप्पे से सजाया है. इसे देखने के लिए दर्शनार्थियों की भारी भीड़ उमड़ रही है. गोलगप्पे की सजावट वाले इस पूजा मंडप में दो आर्टिस्ट डच लोग भी हैं. यह काम करने के लिए उन्हें नीदरलैंड्स से कोलकाता बुलाया गया है.