डा. फैयाज अहमद फैजी
आज के ज़माने में जब उर्दू अदब अपने कलात्मक मेयआर से नीचे गिरता चला जा रहा है और शायरी सिर्फ मुशायरो में लयबद्ध तरन्नुम से गाये गए नज्मों और गजलो को ही समझा जाने लगा है ऐसे समय में नसीम युसुफपुरी उर्दू शायरी को उसके उरूज़ वा बलागत के कवायद के अनुसार बरत कर उर्दू शायरी के कलात्मकता की लौ को जिंदा रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहें हैं. वैसे भी आज कल उर्दू शायरी में ऐसे बहुत कम शायर है जो उरूज़ व बलागत और तकतीअ के मेयारी उसूल के अनुसार शायरी करते हैं आजकल आहंग पर शेर कहने का चलन बढ़ता जा रहा हैं. जिसमें उरूज़ वो बलागत के कलात्मत ऐब साफ तौर से परिलक्षित होते हैं.
उन्हीं का शेर है,
वकार ए उर्दू न गिरने पाए
जुबान में ऐसा कमाल रखना
हमारे शहर में फनकार हैं बहुत लेकिन
खुदा किसी को अनोखा कमाल देता है
मोहम्मद नसीम, अदबी नाम नसीम युसूफपुरी का जन्म 15 जून 1972 में उत्तर प्रदेश के जिला गाजीपुर के कस्बा युसुफपुर के दर्जी मोहल्ला में एक निर्धन एवं साधारण परिवार में हुआ था. खामोश गाजीपुरी के शहर गाजीपुर से मात्र 20 किलोमीटर की दूरी पर बसा कस्बा युसूफपुर- मुहम्मदाबाद अपने अदबी फजा के लिए जाना जाता रहा है जहां शेयरी नशिस्तें रोज मर्रा की जिन्दगी का हिस्सा हुआ करती हैं और चाय खाने से लेकर महफिलों तक उर्दू शायरी पर चर्चा और आलोचन की परंपरा रही हैं.
ऐसे ही अदबी माहौल में नसीम युसुफपुरी ने होश संभाला और इंटरमीडिएट की पढ़ाई के दौरान से ही शेअर कहना शुरू कर दिया था. गुरबत ने आपकी शिक्षा में बाधा डालने का प्रयास किया लेकिन आपने हिम्मत नहीं हारी और आगे की पढ़ाई का खर्च ट्यूशन पढ़ा का पूरा किया, बचपन में अच्छे इलाज के अभाव में आपकी एक आंख खराब हो गई, आपने जामिया मिल्लिया इस्लामी में बीएससी में दाखिला लिया लेकिन दिल्ली में पढ़ाई का खर्च न संभाल सके और वतन वापसी करना पड़ा.
वतन आकर आपने गुरबत और आंख खराब होने के सबब साइंस की पढ़ाई छोड़ कर बीए पास किया, इसके बाद काशी विद्यापीठ वाराणसी से उर्दू से एमए पास किया. शिक्षा हासिल करने के इस कठिन सफर में मजबूत सहारा रहें आपके बड़े भाई का साया भी वक्त से पहले ही सर से उठ गया. इन विपरित परिस्थितियों का सामना करते हुए आपने उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा में अध्यापक की नौकरी हासिल कर अदब की खिदमत के सिलसिले को टूटने नहीं दिया. शायरी में आपके उस्ताद देयार के मशहूर उस्ताद शायर रफी युसुफपुर और मौलवी जमाल दानिश युसुफपुरी रहें.
आप बहुत ही नरम और नेक दिल तबीयत के मालिक हैं. आपकी एक विशेषता यह भी है कि मिलने वाले को कभी ग़ैर होने का एहसास ही नहीं होने देते, बात करने का अंदाज ऐसा है कि लगता है कि अपने ही किसी घर के आदमी से बात कर रहे हैं. अपने अभावग्रस्त जीवन में भी उन्होंने साहित्य से अपना नाता नहीं तोड़ा और लगातार लिखते रहें इलाके में अच्छे शेर कहने वाले के रूप में जाने जाते रहे हैं.
बहुत ही कमगो और खामोश मिजाज और इनकिसारी वाले आदमी हैं लेकिन उनके शेर उनके मिजाज के उलट हलचल सी मचा देते हैं. शायद यही शायर का कमाल होता है. उनके श्रोता हमेशा उनसे नए अंदाज के शेअर के मुंतज़िर रहते हैं. जब भी आप अदबी नशिस्तों में पहुंचते है तो अक्सर लोग कहते मिलेंगे की नसीम युसूफपूरी आ गए हैं, अब अच्छे शेर सुनने को मिलेंगे. उर्दू शायरी को इश्क मोआश्का से बाहर निकाल कर आम लोगो के रोजमर्रा के संघर्ष की तर्जुमानी तक ले आने में नसीम युसुफपुरी का भी एक अहम किरदार है.
कुछ अशआर देखें,
भरपेट मेरे बच्चे को रोटी ना मिल सकी
यूं तो तमाम उम्र कामता ही रह गया
अपने आप बीती को यूं बयां करते हैं -
हर कदम पर दिया उसने धोखा
जिसको अपना मददगार समझा
खूब खेली गई सियासत भी
मेरी बेदाग जिंदगी के साथ
दुनिया के पेचौ खम से जो वाखिफ़ नहीं नसीम
हर गाम पे वे ठोकरें खाता ही रह गया
ग़म की हवाये जब भी बुझाने बढ़ी हमें
दिल में कुछ आरजू के दिए और जल गए
वे खुद अपने बारे में कहते हैं -
हमारा नाम है तारीख में सफे अव्वल
हम इस दयार की अजमत बढ़ाने वाले हैं
नसीम युसुफपुरी ने हम्द और नाअत में भी अपना हुनर आजमाया है,
कितनी पुरकैफ़ जिंदगी होगी
दिल से जब उसकी बंदगी होगी
मकसदे जिन्दगी यही है नसीम
लौ खुदा से लगा के जाता हूं
नसीम आओ नाते नबी मिल कर पढ़ लें
खुदा जाने फिर कब मुलाकात होगी
देश भक्ति के जज्बे को भी बखूबी उभारा है
यह शेर देखें,
कभी न लौटे जो मायूस अपनी सरहद से
ये प्यारा मुल्क सदा ऐसे लाल देता है
आप के कुछ मुनफरिद अशआर देखें जो लोगो के जुबान पर चढ़े हुए हैं,
किसी के दिल को न ठेस पहुंचे
गजल न ऐसी सुना के चलना
सफर भी करके हमारे वतन में तुम देखो
यहां पे अ़हदे वफ़ा को निभाने वाले हैं
जब से तू रुखसत हुई बादे नसीम
सारा ये सहने चमन स़हरा हुआ
चादर जो खामोशी की बदन पर लपेटे ली
सर से मेरे बालों के तूफान टल गए
खुद पे नजरें नहीं तो किसी और के
ढूंढा करते हो ऐबों हुनर किस लिए
उस चमन का मैं फूल हूं यारों
जिसकी खुशब कभी न कम हो
यह एक बिडम्बना ही है कि ऐसे उच्च कोटि के कलाकार हमेशा हाशिये पर ही रह जाते हैं.
यह बहुत ही अफसोस की बात है कि उरूज़ वो बलागत पर महारत व दस्तरफ रखने वाले और अपनी शायरी में सिंफे शायरी के उसूल वा कवायद का सख्ती से पालन करने वाले अपने आप में एक मुनफरिद शायर, नसीम युसुफपुरी की पिछले तीस वर्षों से भी अधिक समय से लिखी जा रही बेशुमार नज्मों गजलो कताआत का कोई संग्रह किताबी शक्ल में पाठको के सम्मुख नहीं आ सका है लेकिन फिर भी शायरी की शुरुवात से ही आपके कलाम “जनवर्ता” “आवाज ए मुल्क” “बगावत” “दैनिक जागरण” आदि समाचारपत्रों में प्रकाशित होते रहें हैं.
इसके अलावा आपके कलाम रिसाले इंसानियत, अरबाबे कलम, आदाबे सुखन, परिंदे पूरब के, ख़याले शगुफ्ता आदि कविता संग्रह में प्रकाशित होकर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुके हैं. गुरबत के बावजूद घर गृहस्ती की अपनी तामामतर जिम्मेदारियों को निभाते हुए समुचित संसाधन के अभाव के बाद भी नसीम साहब आजकल अपनी पहली कविता संग्रह को तरतीब देने और प्रकाशित करवाने में प्रयासरत हैं. हम यह उम्मीद करते हैं कि बहुत शीघ्र ही उर्दू साहित्य के पाठको को एक कलात्मक कविता संग्रह से लाभान्वित होने का अवसर मिलेगा.
जहां में करके अदब की खिदमत
मकाम अपना बना गए हो