लोकतांत्रिक भारत में मुसलमान - दुनिया के लिए एक शानदार उदाहरण

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 01-10-2024
Muslims in democratic India
Muslims in democratic India

 

डॉ. शुजात अली कादरी

भारत में लोकतंत्र एक समृद्ध उद्यम है. अपनी खामियों के बावजूद, यह जीवंत बना हुआ है. लंबी दौड़ के घोड़े की तरह, यह एक क्षण के लिए रुकता है और अपनी गति फिर से शुरू कर देता है. इसमें अपने सभी नागरिकों के लिए जगह है, चाहे उनकी जाति, पंथ और रंग कुछ भी हो. यह इसका मूल मार्गदर्शक सिद्धांत है. मुसलमानों के लिए, यह और भी खास है, क्योंकि यह केवल भारत में ही है, जहां उन्होंने 75 वर्षों तक निर्बाध लोकतंत्र का आनंद लिया है.

जबकि पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव और म्यांमार जैसे पड़ोसी देशों में लोकतंत्र या तो लड़खड़ा गया है या फिर अपनी राह पर बने रहने के लिए संघर्ष कर रहा है, लेकिन भारत एक विजेता हाथी की तरह आगे बढ़ रहा है.

लोकतंत्र का मुस्लिम अनुभव लगातार अप्रिय असफलताओं से भरा हुआ है. फिर भी, वे भारत में लोकतंत्र के सबसे महत्वाकांक्षी समर्थक हैं. दरअसल, हाल के वर्षों में मुसलमानों ने अपने अधिकारों के लिए संवैधानिक तरीकों से ही जोरदार आवाज में और अब तक न देखे गए तरीके से दावा किया है.

जब केंद्रीय और प्रांतीय विधानसभाओं के लिए चुनाव हुए, तो मुसलमानों ने उन सभी में जोश के साथ हिस्सा लिया. वे सबसे चर्चित सामाजिक समूह थे, जिनके वोट इतने मायने रखते थे कि राजनीतिक दल उन्हें लुभाने की होड़ में लग जाते थे. उत्तर भारत में, वे हमेशा अपने चुनावी वजन के कारण मीडिया के चहेते बने रहते हैं. उनके मतदान पैटर्न पर सर्वेक्षणकर्ताओं और शोधार्थियों दोनों ने गौर किया है.

भारतीय लोकतंत्र की एक अनोखी विशेषता यह है कि दो विशेष मुस्लिम-उन्मुख राजनीतिक दल - इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग और ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) - न केवल अस्तित्व में हैं, बल्कि वे राजनीति में सक्रिय रूप से भाग भी ले रहे हैं. इन दोनों दलों के चार सांसद हैं. एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी वर्तमान समय के सबसे मुखर राजनेताओं में से एक हैं. वे भारतीय संसद के मंच से पूरी स्वतंत्रता के साथ बोलते हैं.

भारत के मुसलमान अपने अधिकारों का आनंद ले रहे हैं, जैसा कि वे वर्षों से करते आ रहे हैं. उनकी अथक भावना भारत में लोकतंत्र को मजबूत करेगी और दुनिया को दिखाएगी कि भारतीय लोकतांत्रिक तरीकों से ही अपने मतभेदों को सुलझाने की क्षमता विकसित करके भविष्य की ओर कदम बढ़ा रहे हैं.

जब हम भारतीय लोकतंत्र में मुसलमानों के भरोसे और उम्मीदों पर चर्चा कर रहे हैं, तो मुस्लिम बहुल राज्य जम्मू और कश्मीर में 10 साल में पहली बार विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. घाटी में रहने वाले कश्मीरी, यानी मुसलमान, इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया में उत्साहपूर्वक हिस्सा ले रहे हैं. वे मीडिया साक्षात्कारों में अपनी सारी शिकायतें रख रहे हैं, लेकिन साथ ही उन्हें चुनाव के नतीजों की भी पूरी उम्मीद है. हिंसा के शिकार लोगों को अपने वोट की ताकत से जीतते हुए और अपने दुखों को अतीत कहे जाने वाले देश में छोड़ते हुए देखना रोमांचकारी है.

कश्मीरी हर भारतीय मुसलमान को याद दिलाते हैं कि लोकतंत्र में समस्याओं के समाधान का एकमात्र रास्ता संवाद के मंच पर चढ़ना और उनके नेताओं को अपनी आवाज सुनाना है. अगर वे निराश करते हैं, तो उन्हें दंडित करें और विकल्प तलाशें. इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है. दुष्ट दिमागों द्वारा कुछ दुष्ट योजनाएं बनाई गई थीं और उन्होंने उन सभी के लिए दुर्भाग्य पैदा किया, जो उनका हिस्सा बन गए.

कश्मीर अभी भी उनके द्वारा दिए गए घावों को सह रहा है. उम्मीद है कि लोकतंत्र उनके लिए मरहम बनेगा और ऐसे जख्मों को भर देगा. इसी तरह, आम भारतीय मुसलमानों के लिए एक कठोर चेतावनी है कि अगर वे अपने साथ हुए अन्याय का बदला लेने के लिए घातक तरीके अपनाते हैं, तो वे केवल अपने लिए विनाश को आमंत्रित करेंगे.

चूंकि भारत का पड़ोस उथल-पुथल से गुजर रहा है, इसलिए विदेशी ताकतें कुछ जीर्ण-शीर्ण मुस्लिम युवाओं को भारतीय राज्य के खिलाफ भड़का सकती हैं, जैसा कि कुछ पिछली दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं में हुआ था. यह एक भयानक परिदृश्य है. कुछ युवाओं द्वारा किए गए पिछले दिनों के गलत कामों की घिनौनी यादों के कारण भी उनका जीवन बर्बाद हो गया और उनके कारण पूरे समुदाय को शैतान बना दिया गया.

वर्तमान समय में भारतीय मुसलमानों के लिए देश में हर लोकतांत्रिक गतिविधि में नेतृत्व करने का समय आ गया है. उन्हें जिस राजनीतिक दल का हिस्सा हैं, उसकी हर शाखा में सक्रिय होना चाहिए. उन्हें समाज सेवा और अन्य रचनात्मक गतिविधियों के नए विचारों के साथ आगे आना चाहिए. उन्हें अपने साथी देशवासियों के साथ घुलना-मिलना चाहिए, उनके उत्सवों में भाग लेना चाहिए और उन्हें अपने उत्सवों में आमंत्रित करना चाहिए.

यह भले ही घिसी-पिटी बात हो, लेकिन 1970 की फिल्म गरम हवा का ऐतिहासिक विषय आज भी सच है - मुसलमान कितने समय तक अकेले रह सकते हैं - उन्हें भारतीय लोकतांत्रिक लोकाचार के सुर में सुर मिलाना होगा और उम्मीद की लौ जलाए रखनी होगी.