राकेश चौरासिया / नई दिल्ली - मधेपुरा
इंडोनेशिया में दुनिया की सबसे ज्यारा मुस्लिम आबादी रहती है और यहां के मुस्लिम भाई शंकर, राम, कृष्ण आदि देवी-देवताओं को अपना पूर्वज मानते हैं. ऐसा ही सामंजस्य और सौहार्द भारत में भी दिखाई पड़ता है. अपने देश के हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई संस्कृति और कई परंपराएं साझा करते हैं. गंगा-जमुनी की ऐसी तस्वीर मधेपुरा में भी देखने को मिलती है, जहां लोकेश्वरी देवी की पूजा हिंदू तो करते ही हैं, बल्कि मुस्लिम भाई भी पूजा करते है और चढ़ावा भी चढ़ाते हैं.
मधेपुरा की बेलो पंचायत में चामगढ़ चौक पर मैया लोकेश्वरी देवी का स्थान है. माता लोकेश्वरी देवी की यहां पूजा करने का इतिहास सदियों पुराना है. बुजुर्ग लोग बस इतना बताते हैं कि वे यहां कई पीढ़ियों से पूजा होते देख रहे हैं. मैया की महत्ता देखकर प्रशासन और उत्साही युवाओं के सहयो गसे बनी एक समिति यहां का प्रबंधन करती है. यहां दूर से आने वाले भक्तों के लिए एक धर्मशाला भी बनवाई की है.
यहां मैया के निराकार स्वरूप की पूजा की जाती है. मैया के इस धाम में स्थूल रूप में केवल एक वट वृक्ष है. क्षेत्र के लोगों की आस्था है कि मैया बरगद के इसी पेड़ पर विराजमान हैं. उनका यहां कोई मंदिर नहीं है. न ही कोई विधिवत पुजारी है. यहां पर मैया के निराकार स्वरूप में पूजा की जाती है. लोग बरगद के पेड़ के नीचे ही पूजा करते हैं और शक्कर का चढ़ावा चढ़ाकर प्रसाद ग्रहण करते हैं और भक्तों में भी प्रसाद का वितरण किया जाता है.
इलाके में लोकेश्वरी देवी की बहुत मान्यता है. क्षेत्रवासियों का मानना है कि जो भी मैया के दरबार में हाजिरी लगाता और अपनी श्रद्धा पेश करता है, उसकी माता द्वारा मनौती अवष्य पूर्ण की जाती है. मैया संतान, धन-धान्य या फिर जीवन के किसी भी सुख-सुविधा के लिए यहां पहुंचने वाले याचक कभी निराश नहीं होते. मैया उनकी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण करती हैं. यही कारण है कि लोग यहां दूर-दूर से आते हैं. दूरस्थ क्षेत्रों से आने वालों में अधिकतर वे लोग होते हैं, जो मैया के चढ़ावा का संकल्प लेकर मनौती मानते हैं और मनौती पूर्ण होने पर मैया के प्रति श्रद्धा और आभार व्यक्त करने आते हैं. यहां आने वाले लोगों में नेपाल के नागरिक भी सम्मिलित होते हैं.
यहां की पंचायत के मुखिया दयानंद यादव का कहना है कि यहां मैया के निराकार स्वरूप को इसलिए पूजा जाता है, क्योंकि यहां अतीत में मैया के भवन का निर्माण के कुछ प्रयास किए गए हैं, लेकिन वे निष्फल हो गए. बरगद के पेड़ के कारण यहां मंदिर नहीं बन सकता. इसलिए यहां बरगद के पेड़ के नीचे ही पूजा होती है.
लोकेश्वरी देवी के धाम पर मंगलवार के दिन सबसे ज्यादा भीड़ जुटती है. इनमें काफी संख्या में मुस्लिम भाई भी शामिल होते हैं. मैया में हर वर्ग की आस्था है, उनके स्थान पर सभी की मुरादें पूरी होती हैं. मुस्लिम भाई भी यहां हिंदुओं की तरह पूजा करते हैं और चढ़ावा चढ़ाते हैं.
मैया के धाम पहुंचे बुजुर्ग मो. इस्माइल ने बताया कि उन्होंने मैया की कृपा प्राप्त करने के लिए उन्हें दंड प्रणाम किया है और शक्कर का चढ़ावा चढ़ाया है. उन्होंने बताया कि यहां लोग मनौती मांगने आते हैं और मैया उनकी मनौतियां जरूर पूरी करती हैं. यहां सभी का यही विश्वास है.
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