आखिर क्यों सीता माता ने दिया था फल्गु नदी को श्राप!

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 21-01-2024
why did Mother Sita curse the Falgu River?
why did Mother Sita curse the Falgu River?

 

राजीव कुमार सिंह

महर्षि वाल्मीकी द्वारा रचित रामायण में माता सीता द्वारा पिंडदान देकर राजा दशरथ की आत्मा को मोक्ष मिलने का संदर्भ आता है. वनवास के दौरान भगवान राम, सीता माता और लक्ष्मण पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए गया धाम पहुंचे थे. बात त्रेतायुग की है.

भगवान राम प्रसिद्ध गया तीर्थ पर लक्ष्मण जी के साथ अपने पिता स्वर्गीय राजा दशरथ का पिंडदान करने आए थे. सामग्री इकट्ठा करते-करते दोपहर का समय होने को आया था. पिंडदान का निर्धारित समय निकलता जा रहा था. परिणामस्वरूप माता सीता की व्याकुलता बढ़ती जा रही थी.

पौराणिक कथा अनुसार, पिंडदान ग्रहण करने के लिए स्वयं राजा दशरथ का हाथ फल्गु नदी से बाहर निकला था. गया जी के आगे फल्गु नदी पर अकेली माता सीता असमंजस में पड़ गईं.

उन्होंने फल्गु नदी के साथ वटवृक्ष (बरगद), केतकी के फूल, अग्नि, तुलसी, गाय और गया के ब्राह्मणों को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर स्वर्गीय राजा दशरथ के निमित्त पिंडदान दे दिया.

भगवान राम ने मांगा था श्राद्ध का प्रमाण

वहीं जब थोड़ी देर बाद भगवान राम और लक्ष्मण लौट कर आए तब सीता जी ने कहा कि समय निकल जाने के कारण मैंने स्वयं पिंडदान कर दिया. लेकिन सीता द्वारा पिंडदान की बात का श्रीराम को विश्वास नहीं हुआ, वह बेहद चिंतित एवं नाराज हुए.

सके लिए राम ने सीता से प्रमाण मांगा. तब सीता जी ने गवाही के लिए फाल्गु नदी, बरगद के पेड़, अग्नि, गाय, तुलसी, केतकी के फूल और गया के ब्राह्मणों को बुलाया, जिनकी उपस्थिति में पिंडदान का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ था. 

लेकिन फल्गु नदी, गाय, तुलसी, गया ब्राह्मण और केतकी के फूल ये सब इस बात से मुकर गए. तब फल्गु ने खुद को गंगा जैसी पापहारिणी नदी बनने के लोभ में झूठी गवाही दी. सिर्फ वट वृक्ष ने सही बात कही थी. इन सब के मुकर जाने के बाद सीता जी ने राजा दशरथ का ध्यान करके उनसे ही गवाही देने की प्रार्थना की. 

राजा दशरथ ने स्वयं दी थी गवाही

सीता माता की प्रार्थना स्वीकार कर के राजा दशरथ ने ये घोषणा की कि ऐन वक्त पर सीता ने ही मुझे पिंडदान दिया. तब जा के राम आश्वस्त हुए लेकिन वही केवल वटवृक्ष द्वारा सही गवाही और बाकी फल्गु नदी, गाय, अग्नि, तुलसी, गया ब्राह्मण और केतकी के फूल के झूठी गवाही देने पर इन सभी को सीता माता का श्राप झेलना पड़ा. फल्गू नदी को श्राप मिला की- जा तू सिर्फ नाम की नदी रहेगी, इस कारण फल्गू नदी आज भी गया में सूखी रहती है. इसमें बस नाम का पानी होता है.

फल्गु नदी रेत के नीचे बहती है इसीलिए फल्गु को अंत:सलिला अर्थात सतह से नीचे बहने वाली नदी कह जाता है. वहीं गाय को श्राप मिला कि तू पूज्य होकर भी लोगों का जूठा खाएगी और तुम्हारा मुख हमेशा अपवित्र रहेगा.

गाय के मुख के मुकाबले उसका पिछला हिस्सा ज्यादा पवित्र माना जाता है. इसके बाद दान-दक्षिणा की लालच में असत्य बोलने वाले ब्राह्मणों को श्राप दिया कि ब्राह्मण दान-दक्षिणा को लेकर कभी संतुष्ट नहीं हो सकेगा. 

तुलसी की झूठी गवाही पर सीता जी ने कहा कि वह गया में कभी पनप नहीं सकेगी. अग्नि को उनके झूठ पर, उन्हें मित्रविहीन होने का श्राप दिया और केतकी के फूल को श्राप दिया कि तुझे पूजा में कभी नहीं चढ़ाया जाएगा. 

सीता माता ने क्यों दिया था फल्गु नदी को श्राप

वटवृक्ष को सीता जी द्वारा लंबी आयु प्राप्त होने का आशीर्वाद मिला. वह दूसरों को छाया प्रदान करेगा और पतिव्रता स्त्री तेरा स्मरण करके अपने पति की दीर्घायु की कामना करेगी.

यही कारण है कि गाय को आज भी जूठा खाना पड़ता है, केतकी के फूल को पूजा पाठ में वर्जित रखा गया है और फल्गु नदी के तट पर सीताकुंड में पानी के अभाव में आज भी सिर्फ बालू या रेत से पिंडदान दिया जाता है.