मंजीत ठाकुर
जब आप यह आलेख पढ़ रहे होंगे उस वक्त तक या तो लोकसभा चुनाव 2024 की मतगणना शुरू होने वाली होगी या तकरीबन रुझान आने लगे होंगे. आप में से कई लोगों ने टीवी पर विभिन्न पोलस्टर्स या एजेंसियों को एक्जिट पोल देखे होंगे.मोटे तौर पर ज्यादातर एजेंसियों ने भाजपानीत एनडीए को कम से कम साढ़े तीन सौ सीटें दी हैं. एक्सिस माई इंडिया और एकाध अन्यों ने 400 पार भी बताया है.
सवाल है कि एक्जिट पोल कितने सटीक होते हैं
अगर एक्जिट पोलों का अध्ययन किया जाए तो एकतरफ सही विजेता की भविष्यवाणी में खासकर एक्जिट पोल में करीबन सटीकता रहती है. अपनी किताब ‘भारतीय जनादेश’ में प्रसिद्ध पत्रकार डॉ. प्रणय रॉय ने 833चुनावी सर्वेक्षणों के अध्ययन के बाद लिखा हैः “भारत की अनूठी फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट व्यवस्था के बुनियादी उसूलों के तहत, लोकसभा चुनावों में 1 फीसदी वोट की बढ़त करीबन 10-15 सीटों में बदलाव ला देता है.
परिणाम यह होता है कि अमूमन वोटों की गणना में +/- 3%की खामी आ जाती है, और यही वह खामी का दायरा है जिसके तहत अधिकतर वैश्विक ओपिनियन रहने की कोशिश करते हैं, और मोटे तौर पर यह विचलन +/- 35 सीटों के रूप में दिखता है.”
इसका अर्थ यह हुआ कि अगर किसी विजेता राजनीतिक पार्टी को 300सीटें हासिल होती हैं. तो किसी भी सर्वेक्षण को यथोचित रूप से सटीक माना जाएगा, अगर इसके द्वारा पूर्वानुमान में विजेता के लिए सीटों की संख्या 300से +/- 35लोकसभा सीटें हों. इसलिए अगर कोई सर्वेक्षण अपने पूर्वानुमान में 265से 335सीटों का दायरा दे रहा हो, तो इसे सटीक माना जाना चाहिए.
फिर भी किसी एक्जिट पोल के सटीक होने का पहला मानदंड तो यही है कि वह चुनाव में विजेता दल या गठबंधन के बारे में सही नतीजे या रुझान बताए.अब अगला प्रश्न है कि सीटों की भविष्यवाणी वास्तविक चुनावी नतीजों के कितने निकट होते हैं?
अगर सिर्फ सही विजेता दल या गठबंधन की भविष्यवाणी करनी हो (यानी सीटों की संख्या की बात न हो) तो एक्जिट पोल की कामयाबी की दर 97फीसद तक ऊंची है.
लोकसभा के एक्जिट पोल कितने सटीक?
लोकसभा के सर्वेक्षणों में सही विजेता का पूर्वानुमान 97फीसद सही होता है, लेकिन क्या वे सीटों की सही संख्या की भी भविष्यवाणी सटीक तरीके से कर सकते हैं? सीटों की सही संख्या के मामले में स्ट्राइक रेट 27फीसद ही है.एक्जिट पोल की सटीकता दर में इस खराब 27फीसदी का प्रदर्शन का जवाब यही है कि सर्वेक्षकों के पास प्राथमिकताओं का एक स्पष्ट क्रम होता हैः पहला, सही विजेता का पता लगाइए, उसके बाद ही सीटों की सही संख्या का अनुमान लगाइए.
सीटों की संख्या की भविष्यवाणी में सर्वेक्षक अमूमन बहुत परंपरावादी होते हैं और सुरक्षित रहने के विकल्प पर जोर देते हैं—यह एहतियात और भी बढ़ जाता है क्योंकि सर्वेक्षणों का प्रकाशन चुनाव परिणामों के दिनों के अधिक पास होता है.
सर्वेक्षणों के अतीत पर इस आंकड़े से जो सबक सीखे जा सकते हैं कि हालांकि, किसी भी चुनाव में सही विजेता की ओर संकेत करने के लिए सर्वेक्षणों पर पूरा भरोसा किया जा सकता है, लेकिन विजेता को कितनी सीटें मिलेंगी इस बात पर यकीन करने को लेकर सावधान रहें. चुनाव सर्वेक्षण जितनी सीटों के बारे में भविष्यवाणी करते हैं वह सटीकता से काफी दूर हुआ करते हैं.
क्या एक्जिट पोल विजेताओं के सीटों को कम करके बताते हैं?
एक ओर तो एक्जिट पोल विजेता के बारे में पूर्वानुमान लगाने में काफी सटीक होता है—लेकिन क्या वे अपनी भविष्यवाणियों में पक्षपाती भी हो सकते हैं? यानी क्या एक्जिट पोल विजेता दल की सीटों के अनुमानों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखा सकते हैं या सीटो की संख्या का आकलन कमतर करते हैं?
चुनाव सर्वेक्षणों के पिछले चार दशकों के रिकॉर्ड बताते हैं कि हालांकि एक्जिट पोल विजेताओं का सही अनुमान लगाते हैं, लेकिन एक्जिट पोल जीतने वाली पार्टी के सीटों की संख्या को कम करके दिखाते हैं.चार दशकों से अधिक समय से, हिंदुस्तान में सर्वेक्षणों में विजेता दलों की सीटों की संख्या का औसतन 17फीसद कम करके दिखाया है. लेकिन इस आकलन में 2004का लोकसभा चुनाव के आंकड़े शामिल नहीं है.
इस आंकड़े के आधार पर, यह साफ है कि आप किसी भी पोल पूर्वानुमान के सीटों की संख्या में अपनी तरफ से कुछ अतिरिक्त सीटें जोड़ लें तो आप सीटों की अधिक सटीक संख्या का अनुमान लगा पाएंगे. अगर विजेता के बारे में स्पष्ट भविष्यवाणी हो अभी तभी उनके सीटों की संख्या में जोड़े, लोकसभा के पूर्वानुमान में 30सीटें और राज्य विधानसभा के सर्वेक्षणों में 20फीसदी अतिरिक्त सीटें जोड़िए.
क्या सभी सर्वेक्षण सबसे बड़ी पार्टी के सीटों को कम आंकते हैं?
दुर्भाग्य से, ऐसा लगता है कि भारत में विजेता दल के सीटों की भविष्यवाणी करने में एक व्यवस्थागत पक्षपात है जिससे अधिकतर सर्वे में लगाया गया पूर्वानुमान वास्तविक नतीजों से कम होता है. डॉ. राय ने लिखा है, “असल में, सभी चुनावी सर्वेक्षणों के 75फीसदी सर्वे, विजेता दल की जीत के दायरे को कम करके आंकते हैं. इस कम करके आंकने वाले पक्षपात के पीछे कई कारण हैं—इनमें से अधिकतर का शुद्ध सांख्यिकीय मसलों से कुछ लेना देना नहीं है.”
मसलन आप, सर्वेक्षण के सीटों की भविष्यवाणी के आधार में कुछ सीटों की संख्या जोड़ सकते हैं, ताकि आप भविष्यवाणी को अधिक सटीक बना सकें. बहरहाल, सीटों की कितनी संख्या जोड़ी जाए उसमें व्यवस्थित होना और एहतियात बरतना बेहद अहम है, क्योंकि यह संख्या सर्वेक्षण के प्रकार पर निर्भर करती है और इस बात पर भी कि यह विधानसभा चुनावों के लिए किए गए हैं या लोकसभा चुनावों के लिए.
भारत में सर्वेक्षणों का सही विजेता का पूर्वानुमान लगाने में तो बहुत अच्छा रिकॉर्ड है जो लोकसभा चुनाव के लिए 97फीसद तक सटीक है, लेकिन सीटों की सही संख्या की भविष्यवाणी करना थोड़ी टेढ़ी खीर रहा है. सिर्फ 44फीसद लोकसभा सर्वेक्षणों (एक्जिट और ओपिनियन दोनों) और 48फीसद विधानसभा सर्वेक्षणों (एक्जिट और ओपिनियन दोनों) ने सबसे बड़ी पार्टी के सीटों की संख्या का पूर्वानुमान सही लगाया.
इस खामी का प्राथमिक कारण तो यही है कि विजेताओं की सीट को हमेशा कमतर आंका जाता है. लोकसभा सर्वेक्षणों में 8-14फीसद और विधानसभा सर्वेक्षणों में ओपिनियन पोल 15-23फीसद तक विजेता दलों की सीटों को कम आंकते हैं.
सर्वेक्षकों की प्राथमिकताएं स्पष्ट हैं—उनमें पहली, और सबसे महत्वपूर्ण है, सही विजेता का पता लगाना. दूसरी है, जब सीटों की संख्या का पूर्वानुमान लगाना हो तो सुरक्षित विकल्प चुनना.इसलिए, नतीजों को गौर से देखते रहे अगर एक्जिट पोल ने जिस दल को विजेता बताया है और नतीजों में वही दल या गठबंधन जीत रहा हो तो एक्जिट पोल के आंकड़ों में 30 सीटें और जोड़ लीजिए.